Monday, 5 December 2016

~ सोनल ~

             कपड़े,गहने और कुछ जरूरी चीजें ये सब बड़ी खरीददारी नोटबदली के पहले ही हो चुकी है। सोनल की शादी को अब कुछ ही दिन रह गए हैं। नोटों में बदलाव के कारण बाजार में पैसे का प्रवाह काफी कम हो चुका है तो इस एक वजह से अभी तैयारी में थोड़ा धीमापन आ गया है।पर सोनल को इन सब से क्या, वो तो सगाई के दिन से ही चिंता में डूबी हुई है।
             सोनल जैसी लड़की के लिए किसी और के घर जा के हमेशा के लिए रहना मानो किसी पहाड़ से कम नहीं है भले ही वो पति-पत्नी के रिश्ते की परिपाटी ही क्यों न हो। हर कोई सोनल के हाव-भाव को देखकर उसे समझाते फिर रहे हैं कि शुरूआत में थोड़ा सा रहता है बस,बाद में धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है, बेटा तू इतनी चिंता ना किया कर।
सोनल की मां उसे कहती- देख मेरा भी तो घर बदला है, शुरूआती दिनों में मुझे भी तकलीफ होती थी, मन मानता नहीं था लेकिन समय सब ठीक कर देता है, देख अब ये हमेशा के लिए मेरा घर है।
सोनल रोज अपने भाग्य को कोसती। कोई भी ऐसा नहीं था जो सोनल के मन की गहराई को समझ पाता। उसकी सगाई को आज तीन महीने से ज्यादा हो चुके हैं, शादी कुछ दिनों में होने वाली है, आये दिन शादी को लेकर घर में चर्चा चल रही है, लेकिन सोनल के चेहरे में खुशी का एक भाव नहीं है।
                घर वालों,रिश्तेदारों को यही लग रहा है कि लड़की भावुक सी है इसलिए अपना घर छोड़कर जाने में इसे कुछ ज्यादा तकलीफ हो रही है और ये समस्या शायद हर उस लड़की के लिए सामान्य है जिसकी शादी होती है। लेकिन सोनल के साथ ऐसा नहीं है उसकी समस्या आम लड़कियों जैसी है भी नहीं। सोनल इसलिए भी चिंतित है कि उसे कोई समझ ही नहीं पा रहा है।
               सोनल के होने वाले पति ग्रेड-2 आफिसर हैं, यानी एक सधी हुई सरकारी नौकरी है, नाम है, पैसा है, रुतबा है। सगाई और शादी के बीच के इन दिनों में कितने बार सोनल की बात अपने होने वाले पति से हुई लेकिन सोनल को अभी तक उस लड़के से विश्वास की एक झलक भी नहीं मिल पाई है, जब जब वो लड़के से बात करती है तो वो भरसक कोशिश करती है कि कहीं से अपनत्व का भाव मिल जाए लेकिन उसके हाथ एक अधिकारी ही लगता है। लड़के ने अभी तक ढंग से कोई बात ही नहीं की, या यूं कहें कि उसे आता ही नहीं कि कैसे रिश्तों को मजबूती प्रदान की जाए। एक अधिकारी की तरह बात करता है, शादी को एक प्रक्रिया समझता है और उसे लगता है कि उसकी नौकरी शायद एक मील का पत्थर है जो एक सुखी जीवन और रिश्तों की मजबूती को यथावत बनाये रखने के लिए पर्याप्त है।लड़के के मनोविज्ञान से ये साफ मालूम होता है कि उसने रिश्ते निभाना सीखा ही नहीं और अभी तक के अपने जीवन में रिश्तों के समीकरणों को समझ पाने में असमर्थ रहा है।
                 जैसे-जैसे दिन गुजर रहे हैं, सोनल का मन और भारी होता जा रहा है, चिंता में डूबी लड़की जो अब रात-रात भर जागते रहती है।तरह-तरह के ख्याल उसके चारों ओर मंडराने लगे हैं।कभी-कभी सुधी खो बैठती है और एक नादान बच्चे की तरह खुद से ही बातें करने लग जाती है।

कहती है:-

-> मेरा ही घर बदलेगा न, उनका कुछ नहीं बदलेगा।उनके तो घरवाले उनके पास ही रहेंगे, मेरे मम्मी-पापा मुझसे छीन जायेंगे। मेरे तो मां-बाप ही बदल जा रहे हैं यहां।

-> मेरा ये कमरा मुझसे छीन जायेगा, मेरा ये छत, मेरा ये सब कुछ। मेरे ये सारे कपड़े बेकार हो जायेंगे, इन कपड़ों को; ये सलवार ये जीन्स ये सब मैं अब कैसे पहनूंगी, उन्होंने इतने दिनों से जिस तरह मुझसे बात की है इससे तो यही लगता है कि मेरी बाकी की जिंदगी साड़ी में ही गुजर जाएगी।

-> मुझे अच्छे से पता है, मेरे सारे दोस्त यार भी मुझसे छीन जायेंगे, सब धीरे से खत्म हो जाएगा सिर्फ और सिर्फ मेरे लिए, आखिर मैं ही कुर्बानी क्यों दूं।

-> एक लड़का जब चिंताओं से घिर जाता है, जिंदगी से उब जाता है तो किसी दूसरे जगह किसी शांत सी पहाड़ी में या किसी दूसरे शहर को चला जाता है अपनी आत्मा को सहेज लेता है या यूं कहें की समस्याओं से कोसों दूर जाता भी है और खुद को इन सब वर्जनाओं से अलग करता है, एक नयी जिंदगी की शुरूआत कर लेता है, लेकिन क्या मैं ऐसा कर सकती हूं?
मेरे लिए तो मानो पग-पग पर एक नया खतरा है, एक लड़की होने के नाते मेरे लिए तो सारे रास्ते ही बंद हैं। मैं तो अब अपने लिए सोच भी नहीं सकती।

-> हां मेरी परिधि अब सीमित है, मेरे साथ अस्तित्व का संकट हो गया है, मेरे अस्तित्व का निर्धारण भी अब मेरे होने वाले जीवनसाथी के हिसाब से तय होना है।

-> सांस लूंगी और जी लूंगी। ये एक जीवन भी ऐसे ही कट जाना लिखा है तो यही सही। अगर ये पति-पत्नी का रिश्ता उनके लिए बस एक मानवीय प्रक्रिया है तो मैं भी इसे इसी तरह मानकर चलती हूं। इतने महीनों से इस रिश्ते को फलित करने की हरसंभव कोशिश तो की है लेकिन सामने वाला व्यक्ति इतना विवेकशून्य है कि अब समझ नहीं आता कि मैं इस रिश्ते की पौध को कैसे सहेजूं, कैसे सवारूं।

-> हर लड़की का एक सपना होता है कि ऐसा लड़का मिले, ऐसा घर मिले वगैरह वगैरह। लेकिन मेरी कभी ऐसी चाह नहीं रही है, कभी किसी से ज्यादा मांगा ही नहीं, ना ही कभी कोई उम्मीद रखी किसी से। फिर मेरे भाग्य में ये परेशानियां क्यों।

-> अभी तक की जिंदगी साधना की तरह बीत गई है भरोसे से कहती हूं कभी किसी के कांधे का बोझ ना बनूंगी।

-> एक सीधा-सादा जीवन चाहिए, थोड़ा सा सामने वाला मुझे समझ ले, मेरी इज्जत कर ले, मैं उसकी इज्जत कर लूं। अब मैं और कितना त्याग करूं।एक शादी के लायक लड़की से अलग कभी तो मुझे वो एक इंसान के रूप में देख लें।औरों की तरह गहने और महंगे कपड़ों का तो मुझे शौक भी नहीं,अपनापन मिल जाए यही जीने के लिए काफी है।

-> अब तो जी चाहता है अपने इस चेहरे की खूबसूरती ही बिगाड़ दूं, किसी धारदार हथियार से इसका नक्श ही बदल दूं।

-> है कोई जो मेरे हालात को समझेगा मुझे कोई रास्ता दिखलायेगा। है कोई जो सब ठीक कर दे, कहीं से कोई राहत दे दे, ये खाली स्थान भर दे। शायद अब सारे रास्ते बंद हैं, इसलिए किसी से अब कोई उम्मीद भी नहीं। ऊपर,नीचे, चारों दिशाओं में खाई है और बीच में मैं हूं।

     

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