भारत के अधिसंख्य आबादी से कई बार न्यूनतम संवेदना की उम्मीद करना भी पहाड़ सा लगता है। यूक्रेन में फँसे अलग-अलग देशों के लोगों में से भारत और अफ्रीका के एक दो देशों को छोड़कर लगभग सभी देशों ने अपने लोगों को सुरक्षित बाहर अपने देश ला लिया है। भारत सरकार हजार दो हजार लोगों को लाकर पूरी बेशर्मी के साथ मीडियाबाजी करने में व्यस्त है, वहाँ बहुत सी भारतीय लड़कियों को रशियन आर्मी वाले अगवा करके ले जा रहे हैं, क्यों क्योंकि हमारा तथाकथित साफ्ट पाॅवर हाँ या ना कहने में विश्वास नहीं रखता है, अरे भई राजनयिक संबंधों का सवाल है, जब तक 500-1000 भारतीय लापता नहीं हो जाते, तब तक ढोल नगाड़े बजते रहने चाहिए, विश्वगुरू का जाप चलते रहना चाहिए, यही हो रहा है और यही होगा, मजदूरों के महापलायन, कोरोना की दूसरी लहर, किसान आंदोलन हर जगह यही हुआ, सरकारी भक्ति में कोई कमी देखने को नहीं मिली, एक तरफ लोग मर रहे थे, दूसरी तरफ लोग उस मौत को जस्टिफाई करने में लगे थे। लोग तब भी दुःख को दुःख की तरह देखने महसूस करने की न्यूनतम समझ तक विकसित नहीं कर पाए थे, इसलिए किसी तरह की संवेदना की उम्मीद करना भी बेमानी है।
हमारे यहाँ के लोगों के अपने जीवन में इतना अधिक रायता फैलाया हुआ रहता है कि लोग दूसरों का दर्द महसूस कर ही नहीं पाते है, और समय के साथ इतने अधिक असंवेदनशील होते जाते हैं कि उल्टे आग में नमक छिड़कने का काम करते रहते हैं, हिंसक होते जाते हैं। ऐसी मानसिकता से क्या ही उम्मीद करना कि वे किसी के दुःख को महसूस कर पाएं। अरे भई, उस माँ बाप के जगह खुद को रखकर देखिए कि जिनकी बेटी को रशियन आर्मी अगवा करके ले गई, कहिए भारत सरकार में है हिम्मत तो वापस ला ले, दीजिए उन्हें भारत की कूटनीतिक शक्ति का ज्ञान, मनाइए उन्हें। वहाँ फंसे भारतीय छात्र रो रहे हैं, गिड़गिड़ा रहे हैं, बैग लिए लावारिस की तरह पैदल दिन रात भटक रहे हैं, बर्फबारी झेल रहे हैं और अलग-अलग आर्मी से मार खा रहे हैं, लगातार जान बचाने की भीख माँग रहे हैं, लेकिन हमारे यहाँ के जाहिल लोग कूटनीति और अंतराष्ट्रीय राजनयिक संबंधों का ज्ञान दे रहे हैं, संख्याबल का ज्ञान दे रहे हैं कि दूसरे देशों के कम लोग थे, हमारे यहाँ के ज्यादा लोग हैं इसलिए समय लगेगा। कुछ ज्ञान दे रहे कि क्यों गये बाहर पढ़ने। ध्यान रहे सिर्फ भारतीय होने के कारण आज वे छात्र अगवा हो रहे हैं क्योंकि अगवा करने वालों को अच्छे से यह बात पता है कि इनके ऊपर किसी का हाथ नहीं है, इन्हें पूछने वाला कोई नहीं है।
छात्रों को आखिर कब वापस लाएगी सरकार, जब वे मानसिक शारीरिक हर तरह का शोषण झेल चुके होंगे तब??
इनके अपने घर के बच्चे, इनकी अपनी बहन बेटियाँ भी फँसी होगी तो भी शायद यही न कह दें कि देश की डिप्लोमेसी पहले बच्चे बाद में, बीस हजार बच्चे ही तो हैं, हमारे विश्वगुरू वाली छवि पर आँच नहीं आनी चाहिए बस।
लानत है, थू है ऐसी मानसिकता के लोगों पर।
हमारे यहाँ के लोगों के अपने जीवन में इतना अधिक रायता फैलाया हुआ रहता है कि लोग दूसरों का दर्द महसूस कर ही नहीं पाते है, और समय के साथ इतने अधिक असंवेदनशील होते जाते हैं कि उल्टे आग में नमक छिड़कने का काम करते रहते हैं, हिंसक होते जाते हैं। ऐसी मानसिकता से क्या ही उम्मीद करना कि वे किसी के दुःख को महसूस कर पाएं। अरे भई, उस माँ बाप के जगह खुद को रखकर देखिए कि जिनकी बेटी को रशियन आर्मी अगवा करके ले गई, कहिए भारत सरकार में है हिम्मत तो वापस ला ले, दीजिए उन्हें भारत की कूटनीतिक शक्ति का ज्ञान, मनाइए उन्हें। वहाँ फंसे भारतीय छात्र रो रहे हैं, गिड़गिड़ा रहे हैं, बैग लिए लावारिस की तरह पैदल दिन रात भटक रहे हैं, बर्फबारी झेल रहे हैं और अलग-अलग आर्मी से मार खा रहे हैं, लगातार जान बचाने की भीख माँग रहे हैं, लेकिन हमारे यहाँ के जाहिल लोग कूटनीति और अंतराष्ट्रीय राजनयिक संबंधों का ज्ञान दे रहे हैं, संख्याबल का ज्ञान दे रहे हैं कि दूसरे देशों के कम लोग थे, हमारे यहाँ के ज्यादा लोग हैं इसलिए समय लगेगा। कुछ ज्ञान दे रहे कि क्यों गये बाहर पढ़ने। ध्यान रहे सिर्फ भारतीय होने के कारण आज वे छात्र अगवा हो रहे हैं क्योंकि अगवा करने वालों को अच्छे से यह बात पता है कि इनके ऊपर किसी का हाथ नहीं है, इन्हें पूछने वाला कोई नहीं है।
छात्रों को आखिर कब वापस लाएगी सरकार, जब वे मानसिक शारीरिक हर तरह का शोषण झेल चुके होंगे तब??
इनके अपने घर के बच्चे, इनकी अपनी बहन बेटियाँ भी फँसी होगी तो भी शायद यही न कह दें कि देश की डिप्लोमेसी पहले बच्चे बाद में, बीस हजार बच्चे ही तो हैं, हमारे विश्वगुरू वाली छवि पर आँच नहीं आनी चाहिए बस।
लानत है, थू है ऐसी मानसिकता के लोगों पर।
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