जब लगे सब खत्म हो गया,
जब लगे चारों ओर अंधेरा है,
जब खत्म हो जाए जीने की इच्छा,
तब कुछ देर के लिए सही,
लाठी समझ कर पकड़ लेना,
जब लगे वैसे ही छोड़ जाना,
जब जरूरत हो फिर थाम लेना।
ये लाठी अहसान नहीं जताती है,
इसने बस फर्ज निभाना सीखा है,
एक बेहतर इंसान हो जाने का फर्ज,
बिना जाने, बिना किसी उम्मीद के, दूर कहीं से,
किसी के दुःख को उसी की तरह,
महसूस कर लेने और बंद कमरे में रो लेने का फर्ज।
ताकि दुनिया से ये दुःख थोड़ा ही सही, कम हो जाए,
और हम फिर से जीने की एक कोशिश करने लग जाएं।
जब लगे चारों ओर अंधेरा है,
जब खत्म हो जाए जीने की इच्छा,
तब कुछ देर के लिए सही,
लाठी समझ कर पकड़ लेना,
जब लगे वैसे ही छोड़ जाना,
जब जरूरत हो फिर थाम लेना।
ये लाठी अहसान नहीं जताती है,
इसने बस फर्ज निभाना सीखा है,
एक बेहतर इंसान हो जाने का फर्ज,
बिना जाने, बिना किसी उम्मीद के, दूर कहीं से,
किसी के दुःख को उसी की तरह,
महसूस कर लेने और बंद कमरे में रो लेने का फर्ज।
ताकि दुनिया से ये दुःख थोड़ा ही सही, कम हो जाए,
और हम फिर से जीने की एक कोशिश करने लग जाएं।
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