भाग-2
- अपना उपनाम त्याग ना करे,
- अपनी एक पृथक पहचान को प्राथमिकता दे और अपने साथी की अलग पहचान का भी सम्मान कर ले,
- हमेशा लंबे समय एक साथ रहने की बाध्यता और अति-सामाजिकता में रिश्तों की मजबूती न खोजे,
- साथ रहने से कहीं अधिक अपनी निजता को सर्वोपरि माने, एक ही जीवन है, स्व का विकास रिश्तों की जीवंतता बनाए रखता है,
- समाज, जाति, धर्म, पंथ, विचारधारा वाली जकड़न सबमें कहीं न कहीं छिपी होती है, इसे रिश्तों में हावी न होने दे, पृथक रखे,
- सबकी एक अलग सोच होती है, हर कोई किसी से शत प्रतिशत सहमत नहीं हो सकता है, इसीलिए स्वस्थ असहमति के लिए जगह बनाती चले,
- मानसिक रूप से इतनी स्वस्थ हो कि जीवन में सही को सही और गलत को गलत की समझ उसे हो,
- मनुष्य की अपनी स्वतंत्रता सबसे बहूमूल्य होती है, रूपया पैसा देश समाज इन सब से इतर अपनी स्वतंत्रता की कीमत पहचानने का प्रयास करे,
- मुख्यधारा में चली आ रही ढोंग दिखावे वाली संस्कृति और उसमें व्याप्त खराबियों को आसानी से देख सके,
- निर्जीव वस्तुओं और सजीव रिश्तों में फर्क करना आता हो,
- स्वयं को लेकर संवेदनशील हो, हर तरह से अपना ख्याल रखना जानती हो,
- जीवन के प्रति इतनी न्यूनतम सहजता हो कि इंसान इंसान में भेद न कर पाती हो,
- नहाने खाने-पीने से लेकर सोच विचार में सबकी अपनी कुछ न कुछ कंडीशनिंग होती है, खराब कंडिशनिंग को पहचानने में स्वीकारने में बहुत अधिक संकोच न करे,
- सरकारी दफ्तर में जाकर बाबू टाइप लोगों को फटकार देने लायक न्यूनतम साहस हो और अगर न हो तो विकसित करने का प्रयास कर ले,
- मुद्रा को लेकर सहज हो, मुद्रा एकत्रण से कहीं अधिक मुद्रा के मजबूत प्रवाह में बने रहने में विश्वास रखे,
- अस्थिरता में ही जीवन का आनंद है, खुमारी है। यहाँ सिक्योर कुछ भी नहीं, इस सच को स्वीकारते हुए जीवन की हर अच्छी खराब परिस्थिति के लिए तैयार रहे,
- जीवन के प्रति इतनी सहज हो कि ऐसी भारी भरकम दार्शनिक बातें लिखने वालों के पीछे छिपे धूर्त को आसानी से पकड़ ले और साथ ही एक निरक्षर व्यक्ति जिसे बोलना तक न आता हो, उसके भीतर के बेहतरीन इंसान को पहचान ले।
No comments:
Post a Comment