जब गुजरी सड़क पर एक बड़ी मशीन,
तब हुआ अहसास अपने छोटेपन का,
जब दूर बैठे पैरों तक झकझोरते पहुंचा कंपन,
तब लगा कि अभी पैरों के नीचे खिसक जाएगी जमीन,
और हम अभी कहीं इस अंधकार में समा जाएंगे,
जब जीवन और मृत्यु को एक दूसरे के सामने देखा,
तो लगा कि जीना भी क्या कमाल चीज है।
तब हुआ अहसास अपने छोटेपन का,
जब दूर बैठे पैरों तक झकझोरते पहुंचा कंपन,
तब लगा कि अभी पैरों के नीचे खिसक जाएगी जमीन,
और हम अभी कहीं इस अंधकार में समा जाएंगे,
जब जीवन और मृत्यु को एक दूसरे के सामने देखा,
तो लगा कि जीना भी क्या कमाल चीज है।
इसी हिलती डुलती मिट्टी को,
इस अल्पकालिक जीवन में,
हम अपने नाम अपनी हिस्सेदारी से,
कब्जा लेना चाहते हैं,
अपना लेना चाहते हैं,
लेकिन आखिर कब तक,
असल मायनों में,
हम कुछ भी कभी हासिल नहीं करते हैं,
हम बस जी सकते हैं,
और हमें एक बार मिली इस जिंदगी को,
जीने में ही लगा देना चाहिए,
क्योंकि एक दिन हमारे पास,
इस मिट्टी के कंपन को महसूस कर लेने,
और जीवन के इस छोटेपन को जी लेने लायक साँस नहीं होती,
अंततः हम मिट्टी के पास चले जाते हैं।
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