Monday, 28 February 2022

चूल्हे में जाए ऐसी Soft Power वाली Diplomacy -

भारत के अधिसंख्य आबादी से कई बार न्यूनतम संवेदना की उम्मीद करना भी पहाड़ सा लगता है। यूक्रेन में फँसे अलग-अलग देशों के लोगों में से भारत और अफ्रीका के एक दो देशों को छोड़कर लगभग सभी देशों ने अपने लोगों को सुरक्षित बाहर अपने देश ला लिया है। भारत सरकार हजार दो हजार लोगों को लाकर पूरी बेशर्मी के साथ मीडियाबाजी करने में व्यस्त है, वहाँ बहुत सी भारतीय लड़कियों को रशियन आर्मी वाले अगवा करके ले जा रहे हैं, क्यों क्योंकि हमारा तथाकथित साफ्ट पाॅवर हाँ या ना कहने में विश्वास नहीं रखता है, अरे भई राजनयिक संबंधों का सवाल है, जब तक 500-1000 भारतीय लापता नहीं हो जाते, तब तक ढोल नगाड़े बजते रहने चाहिए, विश्वगुरू का जाप चलते रहना चाहिए, यही हो रहा है और यही होगा, मजदूरों के महापलायन, कोरोना की दूसरी लहर, किसान आंदोलन हर जगह यही हुआ, सरकारी भक्ति में कोई कमी देखने को नहीं मिली, एक तरफ लोग मर रहे थे, दूसरी तरफ लोग उस मौत को जस्टिफाई करने में लगे थे। लोग तब भी दुःख को दुःख की तरह देखने महसूस करने की न्यूनतम समझ तक विकसित नहीं कर पाए थे, इसलिए किसी तरह की संवेदना की उम्मीद करना भी बेमानी है। 
हमारे यहाँ के लोगों के अपने जीवन में इतना अधिक रायता फैलाया हुआ रहता है कि लोग दूसरों का दर्द महसूस कर ही नहीं पाते है, और समय के साथ इतने अधिक असंवेदनशील होते जाते हैं कि उल्टे आग में नमक छिड़कने का काम करते रहते हैं, हिंसक होते जाते हैं। ऐसी मानसिकता से क्या ही उम्मीद करना कि वे किसी के दुःख को महसूस कर पाएं। अरे भई, उस माँ बाप के जगह खुद को रखकर देखिए कि जिनकी बेटी को रशियन आर्मी अगवा करके ले गई, कहिए भारत सरकार में है हिम्मत तो वापस ला ले, दीजिए उन्हें भारत की कूटनीतिक शक्ति का ज्ञान‌, मनाइए उन्हें। वहाँ फंसे भारतीय छात्र रो रहे हैं, गिड़गिड़ा रहे हैं, बैग लिए लावारिस की तरह पैदल दिन रात भटक रहे हैं, बर्फबारी झेल रहे हैं और अलग-अलग आर्मी से मार खा रहे हैं, लगातार जान बचाने की भीख माँग रहे हैं, लेकिन हमारे यहाँ के जाहिल लोग कूटनीति और अंतराष्ट्रीय राजनयिक संबंधों का ज्ञान दे रहे हैं, संख्याबल का ज्ञान दे रहे हैं कि दूसरे देशों के कम लोग थे, हमारे यहाँ के ज्यादा लोग हैं इसलिए समय लगेगा। कुछ ज्ञान दे रहे कि क्यों गये बाहर पढ़ने। ध्यान रहे सिर्फ भारतीय होने के कारण आज वे छात्र अगवा हो रहे हैं क्योंकि अगवा करने वालों को अच्छे से यह बात पता है कि इनके ऊपर किसी का हाथ नहीं है, इन्हें पूछने वाला कोई नहीं है।
छात्रों को आखिर कब वापस लाएगी सरकार, जब वे मानसिक शारीरिक हर तरह का शोषण झेल चुके होंगे तब??
इनके अपने घर के बच्चे, इनकी अपनी बहन बेटियाँ भी फँसी होगी तो भी शायद यही न कह दें कि देश की डिप्लोमेसी पहले बच्चे बाद में, बीस हजार बच्चे ही तो हैं, हमारे विश्वगुरू वाली छवि पर आँच नहीं आनी चाहिए बस।
लानत है, थू है ऐसी मानसिकता के लोगों पर।

Thursday, 24 February 2022

वधू की आवश्यकता - 2

भाग-2

- अपना उपनाम त्याग ना करे,
- अपनी एक पृथक पहचान को प्राथमिकता दे और अपने साथी की अलग पहचान का भी सम्मान कर ले,
- हमेशा लंबे समय एक साथ रहने की बाध्यता और अति-सामाजिकता में रिश्तों की मजबूती न खोजे,
- साथ रहने से कहीं अधिक अपनी निजता को सर्वोपरि माने, एक ही जीवन है, स्व का विकास रिश्तों की जीवंतता बनाए रखता है,
- समाज, जाति, धर्म, पंथ, विचारधारा वाली जकड़न सबमें कहीं न कहीं छिपी होती है, इसे रिश्तों में हावी न होने दे, पृथक रखे,
- सबकी एक अलग सोच होती है, हर कोई किसी से शत प्रतिशत सहमत नहीं हो सकता है, इसीलिए स्वस्थ असहमति के लिए जगह बनाती चले,
- मानसिक रूप से इतनी स्वस्थ हो कि जीवन में सही को सही और गलत को गलत की  समझ उसे हो,
- मनुष्य की अपनी स्वतंत्रता सबसे बहूमूल्य होती है, रूपया पैसा देश समाज इन सब से इतर अपनी स्वतंत्रता की कीमत पहचानने का प्रयास करे,
- मुख्यधारा में चली आ रही ढोंग दिखावे वाली संस्कृति और उसमें व्याप्त खराबियों को आसानी से देख सके,
- निर्जीव वस्तुओं और सजीव रिश्तों में फर्क करना आता हो, 
- स्वयं को लेकर संवेदनशील हो, हर तरह से अपना ख्याल रखना जानती हो,
- जीवन के प्रति इतनी न्यूनतम सहजता हो कि इंसान इंसान में भेद न कर पाती हो,
- नहाने खाने-पीने से लेकर सोच विचार में सबकी अपनी कुछ न कुछ कंडीशनिंग होती है, खराब कंडिशनिंग को पहचानने में स्वीकारने में बहुत अधिक संकोच न करे,
- सरकारी दफ्तर में जाकर बाबू टाइप लोगों को फटकार देने लायक न्यूनतम साहस हो और अगर न हो तो विकसित करने का प्रयास कर ले,
- मुद्रा को लेकर सहज हो, मुद्रा एकत्रण से कहीं अधिक मुद्रा के मजबूत प्रवाह में बने रहने में विश्वास रखे,
- अस्थिरता में ही जीवन का आनंद है, खुमारी है। यहाँ सिक्योर कुछ भी नहीं, इस सच को स्वीकारते हुए जीवन की हर अच्छी खराब परिस्थिति के लिए तैयार रहे,
- जीवन के प्रति इतनी सहज हो कि ऐसी भारी भरकम दार्शनिक बातें लिखने वालों के पीछे छिपे धूर्त को आसानी से पकड़ ले और साथ ही एक निरक्षर व्यक्ति जिसे बोलना तक न आता हो, उसके भीतर के बेहतरीन इंसान को पहचान ले।

परिवार समाज से मिली प्रतिष्ठा के दुष्प्रभाव -

परिवार समाज वाली प्रतिष्ठा से बनी पहचान, उससे तैयार हुआ इगो और उसका गुरूर बहुत भयानक होता है, इसमें कई बार व्यक्ति ऐसा समा जाता है कि अपनी मूल नैसर्गिक पहचान खो देता है। कई बार प्रतिष्ठा हाथ से चली जाती है फिर भी उससे पैदा हुआ गुरूर बना रहता है।
आगे जाकर यह भी समझ आता है कि एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के प्रति कैसा भाव रखता है, उसका व्यवहार कैसा है, वह किसी को चोट तो नहीं पहुंचाना चाहता लेकिन अपना इगो भी नहीं छोड़ना चाहता है, खुद को दुनिया से अलग समझता है, खुद को अलग थलग रखता है, और इसका आधार खुद की पहचान नहीं वरन् विरासत में मिला इगो होता है, इस वजह से कई बार वह मानवीय संवेदनाओं को संपूर्णता में आत्मसात नहीं कर पाता है, लगातार अपने आसपास के लोगों को मनोवैज्ञानिक तरीकों से चोट पहुंचाता रहता है। अपने को सबसे ऊंचाई का व्यक्ति समझना, सबसे शुध्द सबसे पवित्र सबसे बेहतर समझ लेने का दंभ इनसे कभी छोड़ा नहीं जाता है, वे आजीवन इस सच को नहीं स्वीकार पाते हैं कि दुनिया में उनसे भी बेहतर लोग हो सकते हैं जो अपने दम पर शून्य से शुरू कर अपनी पहचान बनाते हैं।

Monday, 14 February 2022

जीने की वजह -

तुम्हारे घर लौटने की खबर पाकर,
वे सिर्फ इंतजार नहीं करते थे,
उतने समय में वे जिंदगी को जी रहे होते थे।
एक समय ऐसा आ जाता है,
जब हम जिंदगी को जीने के लिए वजह खोजने लगते हैं,
तुम उनके लिए जिंदगी जीने का एक बहाना बन गयी थी।
भले वे कहते न होंगे, जाहिर न कर पाते होंगे,
क्योंकि इस्पात सा उनका व्यक्तित्व रहा, 
लेकिन मन उतना ही कोमल उतना ही मासूम,
घर के मुखिया जो रहे, इसलिए अडिग बने रहते।
असल में उनके लिए हँसने मुस्कुराने का बहाना थी तुम,
वे तुम्हें सामने पाकर अपने सारे गम भुला देते थे,
तुम्हें देखकर उनका पाव भर खून बढ़ जाता था,
इसलिए शायद तुम्हारे दूर होने से बैचेन से हो जाते थे।
गुमसुम से होकर तुम्हें खोजने लगते थे,
तुम्हारे जीने में ही अपना जीना ढूंढते फिरते थे।
इसलिए सुबह से शाम इतनी फिक्र किया करते थे।
जितना जीवन उन्होंने जिया, उसके बाद
दुनिया जहाँ की उपलब्धियों से बड़ी बन गई थी तुम,
इसलिए व्याकुल हो जाते थे तुम्हें लेकर।
तुम्हारे सुख में ही सुख खोजते,
तुम्हारी खुशी में ही आसमान भर खुशी पा लेते।
उनके लिए तुम साँस की तरह थी,
जीने की वजह बन गई थी तुम।

Friday, 11 February 2022

मिट्टी का बुलावा -

जब गुजरी सड़क पर एक बड़ी मशीन,
तब हुआ अहसास अपने छोटेपन का,
जब दूर बैठे पैरों तक झकझोरते पहुंचा कंपन,
तब लगा कि अभी पैरों के नीचे खिसक जाएगी जमीन,
और हम अभी कहीं इस अंधकार में समा जाएंगे,
जब जीवन और मृत्यु को एक दूसरे के सामने देखा,
तो लगा कि जीना भी क्या कमाल चीज है।

इसी हिलती डुलती मिट्टी को,
इस अल्पकालिक जीवन में,
हम अपने नाम अपनी हिस्सेदारी से,
कब्जा लेना चाहते हैं,
अपना लेना चाहते हैं,
लेकिन आखिर कब तक,
असल मायनों में,
हम कुछ भी कभी हासिल नहीं करते हैं,
हम बस जी सकते हैं,
और हमें एक बार मिली इस जिंदगी को,
जीने में ही लगा देना चाहिए,
क्योंकि एक दिन हमारे पास,
इस मिट्टी के कंपन को महसूस कर लेने,
और जीवन के इस छोटेपन को जी लेने लायक साँस नहीं होती,
अंततः हम मिट्टी के पास चले जाते हैं। 

तारा बन जाते होंगे -

जाने वाले चले जाते हैं, खाली जगह छोड़ जाते हैं,

लौटकर फिर कभी नहीं आते, तारा बन जाते होंगे।

अस्तित्व की शक्ति - 2

जब लगे सब खत्म हो गया,
जब लगे चारों ओर अंधेरा है,
जब खत्म हो जाए जीने की इच्छा,
तब कुछ देर के लिए सही,
लाठी समझ कर पकड़ लेना,
जब लगे वैसे ही छोड़ जाना,
जब जरूरत हो फिर थाम‌ लेना।
ये लाठी अहसान नहीं जताती है,
इसने बस फर्ज निभाना सीखा है,
एक बेहतर इंसान हो जाने का फर्ज,
बिना जाने, बिना किसी उम्मीद के, दूर कहीं से,
किसी के दुःख को उसी की तरह,
महसूस कर लेने और बंद कमरे में रो लेने का फर्ज।
ताकि दुनिया से ये दुःख थोड़ा ही सही, कम हो जाए,
और हम फिर से जीने की एक कोशिश करने लग जाएं।

अस्तित्व की शक्ति - 1

जब चारों ओर निराशा के बादल दिखाई देने लगे,
इतना धुंधलापन कि कहीं कुछ भी साफ न दिखता हो,
क्या वर्तमान क्या भविष्य, सब कुछ अंधेरे की गिरफ्त में हो,
तब हमें आँख मूंदकर खुद को किस्मत के हवाले कर देना चाहिए।
कई बार कुछ चीजें अपने आप होती है,
कोई हमें देख रहा होता है, 
हमारी कड़ी परीक्षा ले रहा होता है,
हमें एक बेहतर कल के लिए मजबूत ही कर रहा होता है।
हमें बस कुछ देर चुप रह जाना चाहिए,
चुप रह जाने से मौसम बदल जाता है।
हमें उस अदृश्य शक्ति के हाथों खुद को सौंप देना चाहिए,
कुछ इस तरह वक्त अपने आप बेहतर होने लगता है। 

Tuesday, 8 February 2022

कमजोर होती साख को मजबूत करने के प्रयास -

अभी देश के अलग-अलग हिस्सों में धर्म आधारित मामले बनाए जा रहे हैं और उनको राष्ट्रीय मुद्दा बनाया जा रहा है। कोरोना वायरस, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, महंगाई यह सब तो धार्मिक मुद्दों के आगे वैसे भी किनारे हो जाते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। असल में हिजाब वाली घटना में मुझे दोनों पक्षों पर हँसी आ रही है। ये वही लोग हैं, जिनको यूट्यूब में भारत को आजादी कब मिली जैसे सवालों का गलत जवाब देते हुए युवाओं का वीडियो सच लगता है, WWE के रेसलर अंडरटेकर की मृत्यु और पुर्नजन्म की घटना भी इन्हें सच लगती है, तो एक प्रधानमंत्री के मगरमच्छ पकड़ने और एनसीसी कैडेट हो जाने की बात को भी सच मान लेने और उस पर बहस कर समय जाया किया ही जा सकता है। ऐसे महान दूरदर्शी नागरिकों को ही हिजाब वाले वीडियो का स्क्रिप्ट समझ नहीं आ रहा है। लड़की के स्कूटी से एंट्री मारने से लेकर नारे लगाने तक इतने प्यार से वीडियो शूटिंग हो रही कि प्री वेडिंग शूट वाला शरमा जाए। क्या इतना पिच्चर वेब सीरीज देखते हो यार, इतना नहीं समझ पा रहे। कोई उसमें हिन्दू मुस्लिम नहीं हैं, सब ससुरे एजेंट पहले हैं जो नेशनल मीडिया को बाइट दे रहे हैं। बाकी आपको तो इतना नजरबंद कर ही दिया गया है, और आपको दिमाग से इतना खाली, इतना नल्ला बना दिया गया है तो आप हिन्दू मुस्लिम एंगल पकड़ के ही खून गरम करते रहिए।

असल में यह धर्म आधारित माहौल सिर्फ यूपी चुनाव जीतने भर के लिए नहीं बनाया जा रहा है, यह तो एक बड़ा कारण है ही, साथ ही अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए धर्म से जुड़े हथकंडे फेंके जा रहे हैं ताकि आने वाले कुछ एक दशक ये टिके रहें। कांग्रेस के एक लंबे समय के शासन के बाद एक दूसरी पार्टी एक दूसरी विचारधारा के रूप में खुद को स्थापित कर 2014 में पूर्ण बहुमत की सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा आई और इनका जो मजबूत नेटवर्क पूरे देश में कायम हुआ उसे पिछले एक दो साल में कोरोना और खासकर किसान आंदोलन ने काफी हद तक फीका कर दिया। कोई भी पार्टी इतने दशकों के बाद आती है और बहुमत से आती है तो देश भर में उसका एक सिस्टम बन जाता है जो इतनी आसानी से नहीं टूटता है, भाजपा हारे जीते फर्क नहीं पड़ता लेकिन उसका एक सिस्टम बन‌ गया है, शायद आने वाले एक दो दशक यही राज करें तो जिन्हें समस्या है वे इनकी आदत डाल लें। भाजपा का अपना सिस्टम, उसकी जड़ें किसान आंदोलन के बाद कमजोर हुई हैं, ये धार्मिक मुद्दे उसी जड़ को मजबूत करने की तैयारी भर है। सोशल मीडिया की वजह से न्यूज फैलाव की वजह से ये हिजाब वाला मुद्दा बहुत बड़ा लग रहा होगा लेकिन पहले की सरकारों के समय इससे भी बड़े बड़े मामले हुआ करते थे, सत्ता लोभी सरकारों ने उस समय भी लोगों को बाँटने के लिए कोई कमी नहीं छोड़ी थी। जहाँ तक दंगे और धार्मिक उन्माद पैदा करने की बात है, आजादी के बाद से सबसे बड़े-बड़े दंगे तो कांग्रेस और वाम संचालित सरकारों के समय ही हुए हैं, आपको हमको पीछे जाकर यह सब देखना होगा। 1984 का दंगा ही याद कर लिया जाए, सोचिए आज भाजपा के शासन में जो किसान आंदोलन हुआ, यही अगर कांग्रेस के शासनकाल में होता तो आंदोलन और कितना बड़ा होता, पूरे देश भर में कांग्रेसियों को कूटा जा रहा होता, छुपने के लिए जगह न मिलती। चौरासी के दंगों के समय एक धर्म विशेष के लोगों के साथ कई-कई दिन तक खून की होली खेली गई थी, रेप हुए थे, लोगों ने अपनी पहचान बदलने के लिए अपने केश कटवा लिए थे, कुछ ऐसे भी रहे कि जान बचाने के लिए रातों रात धर्म ही बदल लिया, पंजाब से देश के अलग-अलग कोनों में बड़ी मात्रा में पलायन हुआ, जो दुबारा वापस ही नहीं लौटे। सोचिए कितना डरावना मंजर होगा, सोचिए आपके हमारे हाथ में तब इंटरनेट और सोशल मीडिया होता तो?? विडम्बना देखिए आज वही कांग्रेस पंजाब के जनमानस के लिए हितैषी बन गई है। भाजपा तो इनके काले कारनामों के सामने अभी कुछ भी नहीं है, इसलिए यह भी धर्म का कार्ड खुलकर खेलते हैं। यह सब करके ये भी देश हित में कुछ नया नहीं कर रहे हैं, देश को समाज को पीछे ही लेकर जा रहे हैं। 
अभी शायद यूपी चुनाव तक धर्म से जुड़े कुछ और संवेदनशील मुद्दे राष्ट्रीय पटल पर आएंगे, बस हमें यह ध्यान रखना है कि हमारे भीतर हिंसा और नफरत कम से कम प्रवेश करे और हमें इतनी बेसिक समझ तो हो कि हम ऐसे वीडियो के पीछे की स्क्रिप्ट समझ जाएं।

वधू की आवश्यकता - 1

- धार्मिक राष्ट्रवादी सोच की हो,
- वर्तमान जिसकी भी सरकार हो, उसकी समर्थक हो,
- जिस भी धर्म की हो, सच्ची उपासक हो,
- धर्मग्रंथों को पढ़कर, सुनकर उसका Dopamine लेवल बढ़ता हो,
- देशभक्ति गानों से उसे भरपूर Adernaline Rush मिलता हो,
- साड़ी को शादी शुदा स्त्री का राष्ट्रीय वस्त्र मानती हो, व्यक्तित्व का गहना मानती हो,
- सुबह उठकर भले वह गरम पानी और शहद का सेवन करे लेकिन आसपास हवा पानी जहर हो चुका है इस पर ध्यान‌ न देती हो,
- योग करती हो, फिट रहती हो, स्वास्थ्य के लिए बहुत जागरूक हो लेकिन दिन के दो से तीन टाइम खाने में बाजार से पेस्टिसाइड युक्त फल सब्जी वाला भोजन करने कराने से परहेज न करती हो,
- गाँव में रहने की विरोधी हो, शहर में फ्लैट में रहने की समर्थक हो, शहरों से अकूत प्रेम हो और ज्वाइंट फैमली से अलग पति के साथ अकेले रहने में विश्वास रखती हो,
- माता-पिता को भगवान मानती हो, सास-ससुर के साथ भी यही न्याय कर ले तो सोने पे सुहागा,
- प्री वेडिंग शूट और शादी के लिए फार्महाउस वाले कांसेप्ट की समर्थक हो, क्योंकि एक ही बार तो शादी होती है,
- अगर बच्चे के लालन-पालन संबंधी प्रक्रिया से उसे नफरत हो, खुद को इन सब से अलग रखना चाहती हो, फिर भी बच्चा चाहिए हो तो बच्चा गोद ले लेंगे,
- फिगर को लेकर बहुत चितिंत हो और बच्चे के लिए सिजेरियन वाले मोड में जाने को सही मानती हो तो उस पर जाएंगे, दूध भी पैकेट वाला ही देख लेंगे,
- बच्चे होने के बाद हर महीने केक काटने आदि में रिश्ते को जीने का आनंद लेने लायक सामर्थ्य हो,
- घर का अधिकतर सामान शापिंग माॅल से आएगा, सप्ताह में कभी फूट कोर्ट या चौपाटी जाएंगे लेकिन पश्चिमी संस्कृति और नव-पूंजीवादी देशों की धुर विरोधी हो,
- शापिंग, फिल्म या टूर आदि के लिए त्रिया चरित्र को जीती हो, क्योंकि आग का दरिया है डूब के जाना है,
- देश समाज संस्कृति के प्रति गहरी आस्था हो, लाॅजिकल हो लेकिन इन मामलों को आस्था से ओवरलेप कर लेती हो,
- वर्ल्ड बेस्ट हसबैण्ड कहकर साल में एक दो बार अपने पति के लिए सोशल मीडिया में फोटो या पोस्ट पब्लिश कर दिया करे,
- शादी के बाद अपने नाम और सरनेम के आजू बाजू कहीं पति का नाम लिखकर समर्पण दिखाने में उसे समस्या न हो,
- In a nutshell वधू सरकारी नौकर हो, long distance relationship भी जी लेंगे सनम।

Sunday, 6 February 2022

लव जिहाद के फर्जीवाड़े और हमारा हिंसक समाज -

तो हुआ यूं कि नेपाल में एक 18 साल की हिन्दू लड़की को और एक मुस्लिम लड़के को एक-दूसरे से प्यार हो गया। लड़का पहले से शादीशुदा था, लड़की के जानकारी में यह बात पहले से थी, लड़का का अपना रिश्ता शायद ठीक ना चल रहा हो, पहली पत्नी से शायद बच्चा भी है। लेकिन इस युवा लड़की और लड़के को किसी चीज ने बाँध लिया तो वह है प्रेम, जाति-धर्म की बेड़ियों को चीरता हुआ प्रेम। लड़की ने लड़के का हाथ थाम लिया और अब वह लड़के को छोड़ना नहीं चाहती है, उस लड़के की पहली शादी से हुए बच्चे को भी स्वीकारने से भी उसे गुरेज नहीं है, माँ-बाप मिलना चाहते हैं तो उनसे भी नहीं मिलना चाहती है, सीधे मना कर देती है कि मैं इन्हें नहीं जानती हूं। माता-पिता हलाकान परेशान, रो-रोकर बुरा हाल है। सब करके देख लिया, लेकिन लड़की झुकना ही नहीं चाहती, घर लौटना ही नहीं चाहती। थक हारकर माता-पिता ने सामाजिक धार्मिक संगठन और पुलिस का सहारा ले लिया। मेरा मजबूती से मानना है अपने बच्चे के लिए बिना हिंसा और प्रतिशोध की भावना के कोई माता-पिता ऐसा कदम नहीं उठा सकते हैं। ऐसे संवेदनशील मामले ही तो लव जिहाद जैसे मुद्दे बनाने के लिए खाद पानी का काम करते हैं।
तो ये बेसिक बातें हुई है जो अभी मार्केट में चल रही है। जिन बातों को लोग नहीं सोच पा रहे हैं, अब मैं उस पर बात करता हूं। लड़की की उम्र महज 18 साल है, बालिग हो चुकी है लेकिन जानबूझकर ऐसा फैलाया जा रहा है कि नाबालिग है और इसे धर्म विशेष के लोगों ने बहलाया फुसलाया है, जबकि लड़की ने खुद अपनी मर्जी से लड़के का हाथ थामा है। दूसरा झूठ यह फैलाया जा रहा है कि लड़के की बहुत सी पत्नियाँ थी, बहुत लोगों के साथ धोखा किया गया, जबकि सब बेबुनियाद बातें हैं। हिन्दू संगठनों द्वारा इस मुद्दे को अच्छा भुनाया जा रहा है। कुछ-कुछ स्कूली लड़कियों का, उस लड़की की दोस्तों का फेक इंटरव्यू तक लिया जा रहा है, और उसमें यह प्रोजेक्ट किया जा रहा है कि लड़का अपराधी है, गाँजा तस्कर है, लड़कियों को शादी का झांसा देकर उनका जीवन बर्बाद करता है आदि आदि। यूट्यूब चैनल में यह सब न्यूज बनाकर खूब प्रचारित किया जा रहा है, देखकर ही समझ आ रहा कि प्रोपेगैंडा चलाया जा रहा है। इस मुद्दे को जान बूझकर हिन्दू बनाम मुस्लिम का एंगल दिया जा रहा है जो कि बहुत ही दु:खद है। जिस यूट्यूब चैनल से वीडियो वायरल किया जा रहा है, वह चैनल यूपी का है अब कौन सा संगठन है थोड़ा सा दिमाग आप भी लगाइएगा। बाकी हमारे अपने घर-परिवार समाज की सढ़न इन सब तरीकों से नहीं छुपने वाली है, ये बात हमें नहीं भूलनी चाहिए।
एक महिला मित्र ने जब यूट्यूब में इस मुद्दे का वीडियो देखकर पहली बार मुझे इस बारे में बताया था और कहा था कि माँ-बाप रो रहे हैं और उस लड़की पर कोई असर नहीं हो रहा, मेरा तो मन कर रहा है कि जाकर उस लड़की को दो थप्पड़ मारूं‌। मुझे तब तक इस मुद्दे के बारे में कुछ नहीं पता था फिर भी मैंने उस वक्त उनसे कह दिया था कि बिना पूरी बात जाने उस लड़की के खिलाफ हिंसा करने का सोच कैसे सकती हो, लड़की अपनी मर्जी से प्रेम संबंधों को जी रही होगी या और भी कोई बात हो सकती है। और सिर्फ लड़की पर हिंसा क्यों, लड़की के माता-पिता पर हिंसा क्यों नहीं। बच्चे कुछ कदम उठाते हैं, उसमें हम माता-पिता का योगदान कैसे नहीं देख पाते हैं, यह समझ नहीं आता है। 
एक बहुत जरूरी पहलू जो इन सब मामलों में हमसे छूट जाता है, वह है माता-पिता और बच्चों का आपसी संबंध। हमारे समाज में इस हद चीजें उलझी हुई हैं कि फिल्टर करने में लंबा समय लग जाता है। आज हम खुद से सवाल करें कि हममें से कितने लोग अपने माता-पिता से खुलकर अपने मन के भीतर चल रही बातों को रख पाते हैं, अपने जीवन के फैसलों, प्रेम संबंधों इन जरूरी चीजों पर उनसे खुल कर चर्चा कर पाते हैं। क्या माता-पिता हमें वैसा अनुकूल माहौल बनाकर देते हैं, या क्या हम अपनी ओर से वैसा अनुकूल माहौल बनाने का प्रयास करते हैं, इन सब चीजों को सोचे बिना उस लड़की की स्थिति को नहीं समझा जा सकता है। हमें सोचने की जरूरत है कि एक 18 साल की लड़की कैसे अपने माता-पिता के खिलाफ जाकर शादी कर एक लड़के के साथ रहने लग गई। ऊपर-ऊपर से यह दिख रहा है कि माता-पिता की लाडली बेटी है, लाड़ प्यार से पाला पोसा है। माता-पिता को भी लगता है कि बच्चों को अच्छा खाना देना, स्कूल भेज देना, उनकी जिद पूरी करना, उनके लिए बाजार से चीजें खरीदना ही परिवरिश है, इससे आगे माता-पिता सोच भी नहीं पाते हैं, एक बाल मन क्या कितना सोचता है इस पर वे मेहनत नहीं करना चाहते हैं, खिला-पिलाकर बड़ा करना ही उनको पैरेंटिंग लगती है। बच्चों के साथ कभी बैठकर बात करना तक जरूरी नहीं समझते हैं, अपने ही बच्चों से कैसे सहज मित्रवत संबंध स्थापित करना है, इस पर कभी काम नहीं करते हैं। यह काम बच्चा नहीं करेगा, माता-पिता को ही अपनी ओर से प्रयास करने होते हैं। 
इस मामले में मोटा-मोटा दो पक्ष है - एक पक्ष ऐसा है जो इस मुद्दे को लव जिहाद मानकर लड़के को सूली पर चढ़ा देना चाहता है, जबकि उनके खुद के घर-परिवार में, उनके अपने जीवन में तमाम तरह विद्रूपताओं का पहाड़ होता है, फिर भी दूसरों के ऊपर तलवार चलाने के लिए तैयार बैठे रहते हैं। दूसरा पक्ष वह है जो लड़की को दोषी मान रहा है, लड़की के चरित्र पर सवाल खड़ा कर रहा है, वह बचपन से थोड़ी ऐसी थी, वैसी थी और इस तरह की तमाम बातें कही जा रही है। 
मुझे इन दोनों पक्षों को लेकर कोई आश्चर्य नहीं हो रहा है, मैं जानता हूं समाज में किस हद तक चरणबध्द तरीके से हिंसा घुसी हुई है, दूसरा लड़कियों को यह समाज किस नजरिए से देखता है, वह भी किसी से छुपा नहीं है, लोगों का बस चले तो ऐसे प्रेम करने वालों को जीने ही न दें, इस हद तक तो लोग अपने भीतर हिंसा लेकर घूम रहे हैं। 
आज इन धर्मांध लोगों ने लव जिहाद के विरोध प्रदर्शन के एवज में थाना घेराव का असफल प्रयास लिया और बहुत से मुस्लिम लोगों की दुकानों में गाली-गलौच करते हुए जबरन तोड़-फोड़ मचा दिया। आज पहली बार इस शहर में दंगे जैसा माहौल है, इन सब से इतने सालों तक अछूता था पर अब नहीं रहा। लोगों को बाँट दिया गया। असामाजिक तत्व हथियार आदि लेकर घूम रहे हैं, एक्स्ट्रा फोर्स बुला दी गई है, लोगों को सचेत रहने कहा गया है। जिस बात का डर था वही हो रहा है, धर्म की राजनीति करने वाले सफल हो रहे हैं, आम आदमी धर्म के अंधेपन में बारंबार मूर्ख बनता जा रहा है।

Friday, 4 February 2022

सबसे बड़ी कुंठा -

A - आपने इतना भारत घूमा, कोरोना के अलावा दूसरा सबसे बड़ा संक्रमण आपको कौन सा नजर आया?
B - यौ* कुंठा।
A - और तीसरा सबसे बड़ा संक्रमण?
B - मौद्रिक कुंठा।
A - चौथा संक्रमण?
B - अस्तित्व की कुंठा।
A - पाँचवाँ?
B - बस करो यार।
A - अरे बताओ यार।
B - यही, जो तुम कर रहे।
A - क्या यही।
B - बेवजह बोलते रहने की कुंठा।

प्यारे गुरूजी को समर्पित -

अपवाद लोग ही दुनिया को रास्ता दिखाते हैं,
अपवाद सरीखे लोगों के पास सबसे कोमल और सबसे कीमती कुछ होता है,
तो वह है अपना व्यक्तित्व और उस व्यक्तित्व को हर हाल में जिंदा रखने की जिद,
यह जिद उनके लिए फूल भी बिछाती है,
तो साथ में काँटे भी दे जाती है।
ऐसे लोग किसी प्रकाश पुंज की तरह होते हैं,
जो सिर्फ अपने लिए ही रास्ता नहीं बनाते,
बल्कि अपने पीछे एक पूरी पीढ़ी को दिशा दे रहे होते हैं।
दिशाहीन लोगों के लिए मरहम बनने का काम करते हैं,
उनके लिए ये लोग आशा की किरण की तरह होते हैं।
जो लोग एक चलते फिरते प्रकाश पुंज होते हैं,
उन्हें उनके सामने झुकना पसंद नहीं होता,
जिनके पास अपनी खुद की रोशनी तक नहीं है,
वे ऐसे बुध्दिविहीन लोगों को अस्वीकार करते हैं,
हजारों सालों से बनी बनाई सत्ता और व्यवस्था को इससे चोट पहुंचती है,
छलकपट और अहंकार से तैयार हुई सत्ता की जड़ें हिलने लगती है।
सत्ता पर आसीन लोग इन प्रकाश किरणों के पीछे हाथ धोकर लगे रहते हैं,
ताकि इनके व्यक्तित्व की चमक फीकी पड़ जाए,
इनके ज्ञान का प्रकाश सीमित हो जाए।
लेकिन जो अपने भीतर के प्रकाश से प्रकाशमान होते हैं,
वे इन सब से अप्रभावित होकर अपना काम करते रहते हैं।
हम ऐसे लोगों के लिए अगर कुछ कर सकते हैं,
तो वह यह कि उनके नाम का दीपक अपने भीतर हमेशा प्रज्वलित रखें,
ताकि उनके विचारों का ताप, उसकी अग्नि हम तक पहुंचती रहे,
और हमें जीवन रूपी इस यात्रा में हमेशा सही दिशा मिलती रहे।