Saturday, 31 December 2016

~• Happy New Year 2017 •~

कुछ एक लोगों ने हमें ये तीन शब्द कह दिए..हमने बदले में " घर में सब कैसे हैं?" ऐसा भेज दिया है।
सामने वाले को लग रहा है कि हमने ये भूलवश भेजा होगा, हमें भी यही लग रहा है कि उन्होंने भूलवश हमें हैप्पी न्यू ईयर भेज दिया।

खैर अतुल को इन सब से क्या वो तो शराब पहले से खरीद चुका है। अतुल अभी कालेज में है, साउंड सिस्टम तो कापी किताब खरीदने से पहले ही उसने खरीद लिया था, इस बार अतुल की लड़ाई नवीन से है। आखिर किस चीज की लड़ाई, दरअसल ये लड़ाई है शराब पीने की। दोनों ने एक दूसरे को चैलेंज किया है कि कौन ज्यादा शराब पियेगा। रात के 11 बज चुके हैं, कांच के ग्लास और शराब की बोतलें सज चुकी है। दोनों पीना शुरू करते हैं, इतना पी लेते हैं कि चिल्लाने लगते हैं, अतुल प्रेम में मिली किसी वर्षों पुरानी विफलता को याद कर एक लड़की के नाम खूब फब्तियां कसने लग जाता है। वहीं नवीन अपनी मां को याद करते हुए भावुक हो जाता है। उनके आसपास बैठे उचक्कु दोस्त उनको या तो सांत्वना दे रहे हैं या उत्साहवर्धन कर रहे हैं। एक लड़का जो उठकर फोन पर बात करने लगता है उसने आज एक ही दिन में अपनी प्रेयसी से जीवन भर के वादे कर दिए हैं। लड़की को भी पता है कि लड़के की बातें खोखली है लेकिन फिर भी वो इस झूठे दिलासे से खुश हो लेती है ताकि बात न बिगड़े। इसी बीच अतुल होश खो बैठता है और शराब की एक बोतल वहीं पटक देता है, कांच के छोटे-छोटे टुकड़े फर्श पर बिखर चुके हैं। तभी उसी गोल घेरे में बैठा एक लड़का चटाई में उल्टी कर देता है। जिन्हें होश है, उनमें से एक उल्टी और बिखरे कांच की सफाई कर रहा है। दूसरा नशे में चूर लोगों को कांधे पर पकड़कर बिस्तर में सुलाने ले जा रहा है। इन सब के बीच किसी ने इस बात की खबर नहीं ली कि शराब पीने का ये चैलेंज किसने जीता।

                 खैर जिसने भी जीता हो रामसिंग को इससे क्या, वो आज जल्दी से घर जाना चाहता है। उसका एक बच्चा और उसकी बीवी दोनों उसके इंतजार में है। आज उसका छ: साल का बच्चा जागा हुआ है कि पापा कुछ लेकर आयेंगे इस एक उम्मीद से उसने भी खाना नहीं खाया। रामसिंग काम खत्म कर देशी शराब की दुकान पर जाता है एक बोतल देशी शराब की अपने झोले में डालकर जल्दी से घर की ओर निकलता है। रास्ते में उसने बच्चे के लिए चाकलेट ले लिया है। बारह किलोमीटर की दूरी को अब वो जल्दी से खत्म कर देना चाहता है, साइकल चलाते-चलाते जब थकान रामसिंग के सिर तक प्रवेश कर जाती है तो वो रास्ते में रूकता है और आधी शराब पी लेता है, फिर वापस घर की ओर जाने के लिए वो साइकल में बैठता है अचानक ही वो साइकल से उतरता है और बची शराब भी पी लेता है। घर पहुंचकर देखता है कि बेटे को नींद आने लगी है, रामसिंग बेटे को उठाता है और चाकलेट उसके हाथ में देता है। बेटा खुश हो जाता है, पर जैसे ही वो चाकलेट दांत से फाड़ने लगता है, जोर से चिल्लाकर कहता है कि बदबू मार रहा है। रामसिंग को इस बात का पता ही न चला कि शराब पीते वक्त कब ऊपर जेब में रखे इस चाकलेट की झिल्ली पर कुछ बूंदे गिर गई होगी। मां तुरंत अपने बच्चे के पास जाती है और हाथ से फाड़कर बेटे को चाकलेट खिलाती है।

              लेकिन शाहिन की उत्सुकता आज चरम पर है। उस छोटी बच्ची को तो आज बारह बजने का इंतजार है। स्कूल में उसकी सहेली जो उसके ठीक पड़ोस में रहती है, उसने शाहिन को चाइनिज बलून(लैम्प) दिखाया और कहा कि 31 की रात को इसे हम आसमान में छोड़ेंगे। तुम देखने छत पर आना। शाहिन ने भी अब अपने पापा से जिद की और पापा ने शाहिन के लिए चाइनिज लैम्प ला दिया है। उसने अपनी सहेली को नहीं बताया है कि उसने भी मंगवा लिया है। शाहिन चाहती हैं कि वो अपनी सहेली को आश्चर्यचकित कर देंगी। रात के नौ बज चुके हैं,  शाहिन के पापा ने सबको कहा कि आज बाहर खाना खाने जायेंगे। शाहिन बार-बार पापा से पूछ रही है कि जल्दी आ जायेंगे न। रेस्तराँ में खाना खाते ग्यारह बज चुके हैं। शाहिन ने ढंग से कुछ खाया भी नहीं है। वो बार-बार इतने देर से सबको टाइम पूछ रही है। रेस्तरां से घर पहुंचने के बीच रास्ते में कहीं पटाखे फूटने लगते हैं, शाहिन को लगता है कि बारह बज गये होंगे, वो फूट-फूट कर रोने लगती है। शाहिन की अम्मी उसके आंसू पोछती है और टाइम दिखाते हुए बार-बार कहती है कि बेटा अभी 11:45 हुआ है देखो, देखो इधर। बड़ी मुश्किल से शाहिन शांत होती है और अम्मी को गले से लगा लेती है।

                    इधर सूरज और बंटी दोनों अलग ही दुनिया में मस्त हैं। दोनों अभी 7th क्लास में है। एक क्लास कप्तान है तो समझो दूसरा छोटा कप्तान। दोनों जो अब तक स्कूल के ब्लैकबोर्ड के एक किनारे में उपस्थिति और अनुपस्थिति संख्या लिखा करते थे आज वे चूने का घोल तैयार कर रहे हैं। ये दोनों भी बारह बजने के इंतजार में है, आज तो दोनों ने कसम ली है कि शुभकामनाओं और मंगलकामनाओं से कालोनी के इस रोड की पुताई कर देंगे। दोनों ने एक कागज में अपना लिखा नोट कर लिया है साथ ही ब्रश का भी बंदोबस्त कर लिया है।

                सुजीत आज पेट्रोलिंग पर है। नये साल में उपद्रवी तत्वों पर लगाम लगाई जा सके इसलिए प्रशासन ने अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती कर रखी है उसमें सुजीत भी है सुजीत की ये पहली नाइट ड्यूटी है। अभी-अभी तो वो सब-इन्स्पेक्टर बना है। उसने तो अभी तक किसी पर हाथ उठाना भी नहीं सीखा है। वो जिस काम में है वहां तो टेढ़ापन जरूरी है। लेकिन सुजीत अभी तक इस नये माहौल में नहीं ढल पाया है। नये साल की मध्यरात्रि में कार से गुजरते लड़के-लड़कियों को देखता है और अपने कालेज के दिन याद करने लग जाता है। एक समय वो जिन पुलिसजनों को देखते हुए अपशब्द बोला करता था, आज वो परीक्षा पास कर उसी विभाग में आया है तो कहता है कि मुझे लगता है मैंने दुनिया का सबसे बड़ा काम हाथ में लिया है।

              दस बज चुके हैं और जितेंद्र आफिस के लिए निकल रहा है हां आज उसकी रात की शिफ्ट है। आज आफिस में ज्यादा काम नहीं है तो बोरियत मिटाने वो सोशल मीडिया पर आ जाता है। केक से सनी हुई नये साल की तस्वीरें देखता है, प्रतिक्रिया देता है और बाहर आ जाता है। जब वो मैसेज और नये साल की ये तस्वीरें देख कर ऊब जाता है तो अपने कुछ पुराने दोस्तों को फोन लगाता है। इत्तफाक से कोई फोन नहीं उठाता। कुछ देर बाद उसका फोन बजता है, चहकती हुई चिड़िया की तरह वो फोन की ओर लपकता है। उठाते ही आवाज आती है- सर जी नये साल की बधाई। जितेंद्र कहता है- यार पहचाना नहीं। कौन बोल रहे हैं?
उधर से आवाज आती है- अरे! क्या सर, परसों ही आपका नंबर लिया था, भूल गये आप, आपके पड़ोस में अभी-अभी शिफ्ट हुआ हूं।

                    रात के 8 बज चुके हैं, पुड़ी-सब्जी और खीर तैयार हो चुकी है। सन्नी हर साल की  तरह गुरूद्वारे की परंपरा का निर्वहन करते हुए अपने दोस्तों के साथ इस बार भी तय समय पर रेल्वे स्टेशन के सामने पहुंच चुके हैं। स्टेशन में ही गुजर-बसर करने वालों को उन्होंने एकत्र करना शुरू किया और लाइन से बिठा दिया है। इस बार उनके इस ग्रुप में दो नये लोग शामिल हुए हैं। सन्नी ने अपने साथियों के साथ खाना परोसना शुरू किया ही था कि उन दो नये लड़कों में से एक ने अपने फोन से कुछ एक तस्वीरें ली, सन्नी उस वक्त खीर बांट रहे थे, खीर की बाल्टी उन्होंने वहीं छोड़ी और वे तेजी से चलते हुए उस फोटो खींचने वाले लड़के के पास गए और उसे जोर का एक थप्पड़ जड़ दिया।

                     पर आज वसुंधरा सबसे ज्यादा खुश नजर आ रही है। वो दीवाली की छुट्टी के इतने दिनों बाद आज अपने घर जा रही है। ये तो सामान्य बात हुई, असल में खुशी की वजह कुछ और है। चंडीगढ़ से काजा तक जाने के लिए वो जिस नाइट बस में बैठी है। उसे चलाने वाले कोई और नहीं उसके पिता हैं। उन्होंने वसुंधरा के लिए सामने वाली सीट बुक कर दी है। एक तारीख की सुबह 6 बजे दोनों बाप-बेटी साथ घर पहुंचेंगे और वसुंधरा की मां कुल्हड़ की चाय के साथ दोनों का इंतजार कर रही होगी।

Wednesday, 28 December 2016

~ पलकों का धोखा ~


एक बार स्कूल में बाजू वाली टेबल में बैठे लड़के ने अपने साथ बैठे दोस्त को सेकेंड भर में चकमा दिया और उसकी एक किताब छुपा ली, तो इसी बीच उस लड़के पर हमारी नजर पड़ गयी। हमने देखा कि उसने हमें देखते हुए बड़ी चालाकी से अपनी एक आंख छुपा ली।हमें बड़ा गुस्सा आया कि ये किस तरह की कलाबाजी दिखा रहा है। हमें साफ-साफ दिख रहा है कि सामने वाला छल कर रहा है फिर भी उस वक्त हम कुछ कह न पाए।

एक बार घर में काम चल रहा था, मजदूरों को हमने देखा तो पता चला कि काम के बीच में उन्हीं मजदूरों में दो लोग तीसरे साथी मजदूर को परेशान करने वाले हैं और ऐसा करने के ठीक पहले उनकी एक पलक झपकते हुए बंद होने लगती है।
सवाल करने का मन हुआ कि आखिर कहां है कार्य-कारण का सिद्धांत।

एक बार एक लड़का और एक लड़की चौपाटी में नाश्ता करने आये थे तो नाश्ता करने के बाद उन्होंने पैसे चुकाए। असल में जब लड़की पैसे चुका रही थी तो ठेले वाले ने उसे खुल्ले वापस किए और गलती से अतिरिक्त दस रुपए दे दिए। थोड़ी ही देर बाद ऐसा हुआ कि लड़की ने शायद लड़के को बताया होगा कि फलां ठेले वाले ने गलती से उसे दस रुपए ज्यादा थमा दिए हैं तो लड़के ने तुरंत अपनी एक आंख ढंक ली और वे दोनों तुरंत वहां से चलते बने।

अभी कुछ महीने पहले की बात है। एक बार हम यहीं अपने कसौली शहर में खाना खाने एक होटल में गए। ठीक-ठाक भीड़ थी। तंदूरी रोटी और सब्जी, सत्तर रुपए का बिल बन रहा था। खाना खत्म होने के थोड़े ही देर पहले होटल में काम करने वाला लड़का हमारे पास आकर आग्रह करने लगा कि भैया सत्तर हुआ न आपका। बीस रुपए मेरे को दे देना, मैं उधर काउंटर में आपका पचास रुपए बोल दूंगा।
हमने उसकी बात मान ली और उसे बीस रुपए दे दिए। होटल से जब हम वापस जा रहे थे तो गलती से जब उस काम करने वाले पर नजर पड़ी तो उसने हमें देखते हुए अपनी एक आंख ढंक ली।

बचपन में हम एक बार मामा घर गए, नानी से दस रुपए मांगे तो उन्होंने नाना को पैसे देने के लिए आवाज लगाई और सख्त अंदाज में मुझसे कहा कि सारे पैसे आज ही खत्म मत कर देना। हम जब नाना के पास गये तो उन्होंने हमें पंद्रह रुपए थमा दिए और कहा कि तेरी नानी तक बात पहुंचने मत देना और इतना कहने के पश्चात् नानाजी ने अपनी एक आंख ढंक ली। हमें लगा कि नानाजी कितने प्रतिभावान हैं।
और तो और हमारे पापा, चाचा, मामा उनको भी ये कला आती है।

हमारे साथ में पढ़ने वाली स्कूल और कालेज की अधिकतर लड़कियां आसानी से जब मौका मिले अपनी एक आंख ढंक लेती हैं।
कभी-कभी लगता है कि ये कैसा छलावा है और आखिर किसने हमारे सामने ये प्रतीकात्मकता रच दी है। किसने ये चालबाजी इजात की है।

हमने भी आजमा कर देखा, बारंबार प्रयास किया। एक बार कोशिश करने के दौरान ऐसा हुआ कि हमारे साथ पूरी एक दुर्घटना हो गई। जब हम अपने दोस्त के सामने अपनी एक आंख बंद कर रहे थे तो उसने कहा- भाई बोलना क्या चाह रहा है, बे! ये कैसा मुंह बना रहा है। आगे जब उसने कहा कि क्यों पलक झपका रहा है तब हमें पूरा मामला समझ आया कि हमारी दोनों आंखें बराबर बंद हो रही है। हमें बड़ी हंसी आई और हमने अपनी बात वापस ले ली। हम असफल हो चुके थे।
हमारी नेत्रिन्द्रयां हार मान चुकी थी।
जवानी का चौबीसवां पार चुके लेकिन ये आंख मारने की कला अभी तक हमारे पाले में न आई।

Tuesday, 27 December 2016

तुम्हारे लिए-

मेरे शब्द तुमसे क्या कहते,
वो ये नहीं कहते कि तुम खूबसूरत हो।
वे कहते कि उसने तुम्हारे इन बालों को देखा,
जो कभी-कभी खुलते हैं तो हवा में तैरने लगते हैं,
कभी माथे को चूमते हैं
तो कभी कानों में सुशोभित बालियों को छूते हुए मदमस्त लहराते हैं।
बेफिक्र, बेपरवाह तुम्हारे ये बाल छुपा देना चाहते हैं तुम्हारे चेहरे को भी,
वो कहना चाहते हैं कि तुम मेरा आभूषण भर नहीं हो,
तुम मेरा हिस्सा हो, तुम्हारे बिना अधूरापन सा लगता है।
तुम कभी मुझसे नाराज मत होना,
दिन में कम से कम एक बार मुझ लहराते बालों से मिल लेना,
कुछ एक मिनट के लिए बात कर लेना।
और हां तुम, अब तुमसे कह रहा हूं,
इन दोनों को न तुम ऐसे ही मिलने देना, बात करने देना,
ये दोनों जिन्दगी भर हमेशा तुम्हारा ख्याल रखेंगे।
तुम्हारा शुक्रिया अदा करेंगे।

और तो और जब भी तुम्हारे आसपास निराशा रूपी बादल आने लगेंगे,
तो मोर पंख की तरह तुम्हारे ये बाल लहराने लगेंगे,
चेहरे के करीब से एक लकीर बनाते हुए,
अपने क्षेत्रफल पर अधिकार जताते हुए,
विस्तार को विभाजित करते हुए,
तुम्हारे इन गालों को छूते हुए वो खुली हुवा में उड़ने लगेंगे।
हां तुम इन्हें रोक न पाओगी,
ये लहराने को इतना बैचेन हो जायेंगे कि तुम्हें इन्हें खोलना पड़ेगा,
खुली हवा के हाथों छोड़ना पड़ेगा।

देखो,
तुम्हारे आसपास कुछ पत्तियां गिरी हुई है,
हां वो झड़ चुकी हैं तुम्हारे किसी टूटे बाल की तरह,
वो भी कभी किसी पेड़ का हिस्सा थी।
पर वो अब अकेली पड़ गई है, हवा आती है और उन्हें दूर कहीं ले जाती है।
वो तुम्हारे इन बालों की तरह मजबूत नहीं हैं,
उनकी शक्तियां सीमित हैं,
उनके अणुओं का समुच्चय कमजोर है
इसलिए तो हवा, पानी और मिट्टी हर कोई उनको अस्तित्व विहिन कर देता है।
उन्हें भी पता है कि उनका जीवन क्षणिक है इसलिए उन्हें अब किसी पराये माध्यम(हवा) के सहारे यहां से वहां जाना नहीं पसंद,
वो अपने शरीर पर अब और मिट्टी लादना नहीं चाहती,
उन्हें पानी में भीगना भी नहीं पसंद,
देखो न सूरज की किरणों की वजह से उसकी त्वचा पहले से कितनी फीकी पड़ गई है।
अब तो इस आवारगी से बेहतर वो जल जाना पसंद करेगी।
बिना आवाज किए आग में कहीं जलकर तुम्हें रोशनी और ऊष्मा से भर देगी।
क्या तुम्हें उसका ये समर्पण दिखाई नहीं देता,
क्या तुमने उसके अकेलेपन को महसूस किया,
तुम्हें तो ये पतझड़ का मौसम लगता है।
और सुनो अभी भी वहीं कहीं बैठी न हो न तुम,
देखो वहीं पास में हवा के साथ-साथ एक चिड़िया आयेगी और दाने चुगकर चली जाएगी,
हां ये भी तो उसी हवा का हिस्सा थी, जिसने तुम्हारे बालों को आकर छुआ है।
तुमने उस चिड़िया को नहीं देखा न,
तुम्हें सच में उसे देखना था, 
उसके पंख भी लहराते हैं ठीक तुम्हारे इन बालों की तरह,
हां ये दुनिया की सबसे खूबसूरत सममिति है।

सुनो!
तुम्हारा माथा इतना सूना क्यों लग रहा है?
क्या कहा?
तुमने टीका नहीं लगाया,
काश तुमने टीका लगाया होता तो मैं कह पाता,
कह पाता कि लाल रंग का टीका तुम्हारे श्रृंगार को द्विगुणित कर देगा,
गाढ़े लाल रंग का टीका,
जिसमें कुछ पीले चावल चिपके होंगे जो तुम्हारे चेहरे की शोभा बड़ा रहे होंगे।
लेकिन कुछ देर के बाद तुम्हें ये अहसास होगा कि चावल के दाने जो चिपके हुए थे,
वो अब धीरे-धीरे झड़ने लगे हैं।
ये वही चावल के दाने हैं जो जमीन पर गिरने से पहले,
अपने अंग-प्रत्यंग को उस लाल रंग से लपेट देना चाहते हैं।
अपने मूल श्वेत रंग को तो उन्होंने पहले ही खो दिया है,
अब वे इस पीले रंग को त्याग कर लाल हो जाना चाहते हैं।
पता है वे ऐसा क्यों करते हैं,
वो इसलिए कि नीचे गिरने के बाद जब कोई श्वेत चावल का दाना उन्हें देख कर मजाक उड़ाने लगता है तो वे इस लाल रंग को एक साक्ष्य के रूप में दिखाते हैं और अभिमान से कहते हैं कि देखो मुझमें अब पीला रंग ज्यादा नहीं बचा है।
ये देखो लाल रंग, पता है इसे मैं कहां से लेकर आया हूं।
वो जल्दी देखो सामने,
श्वेत चावल - कितनी खूबसूरत है वो।
पीला चावल- हां मैं अभी उस लड़की के माथे पर था, तुम क्या जानो कि मैं उसके सौंदर्य का हिस्सा था। हां ये मेरा सौभाग्य है कि मैं उसकी त्वचा से लिपटकर आज उसके श्रृंगार का हिस्सा बना, उसी ने मुझे बदले में ये कीमती लाल रंग दिया है। पता है वो मुझे छोड़ना नहीं चाहती थी लेकिन मैंने ही अपनी पकड़ ढीली कर ली और नीचे यहां तुम्हारे पास आ गिरा, पता है मैंने ऐसा क्यों किया ताकि वो फिर से मुझ पीले चावल को अपनाए। कल जब फिर से वो खुद को संवार रही होगी तो मैं एक नये पीले चावल का रूप धर लूंगा और पीतल की थाली में उसका इंतजार करुंगा।

Sunday, 25 December 2016

- Moment of Inertia -

आसाम की उस लड़की से मेरी बात बंद हो गई। वजह ये रही कि मैंने उसकी मासी से एक बार तू तड़ाक वाले लहजे में बात कर दिया था साथ ही और भी कुछ कुछ कारण थे। दोनों में से किसी ने एक दूसरे को मनाने बुझाने का प्रयास नहीं किया और हमारी बात पूरी तरह से बंद हो गई।
उसके पापा अब पूरी तरह ठीक हो गए हैं। इस बीच एक ऐसा संयोग हुआ कि मेरे पापा को ठीक वैसे ही हार्ट अटैक आया। पूरा Scenario हूबहू वैसा का वैसा। मंगलवार की रात के दो बजे हार्ट अटैक आता है और फिर हम अस्पताल जाते हैं।
                 अच्छा एक जरूरी बात बताता हूं। मान लीजिए आप गहरी नींद में सो रहे हैं और आपको अचानक इतना दर्द हुआ कि आपकी नींद टूट जाती है। तो समझ लेना चाहिए कि ये सामान्य घटना नहीं है, ये किसी बड़ी बीमारी का ही सूचक होता है।
                उस लड़की से बमुश्किल दो महीने तक मैंने बात की होगी। फिर मेरी बात हमेशा के लिए बंद हो गई। हां तो क्या हुआ कि पांच साल बाद उसका मैसेज आया। मैं चौंक उठा। इन पांच सालों में कितना कुछ बदल गया था। वो पुराना हवा का झोंका फिर से याद आ गया, हां पांच साल पहले मैं उससे बात नहीं करता था वो तो कोई और ही था जो उससे बात करता था। हां वो भिलाई(छत्तीसगढ़) में रहा करता था, जहां वो रहता था,  वहां नीचे एक किराने के सामान की छोटी सी दुकान थी। दो नारियल के पेड़ भी थे, उसी पेड़ के पास बालकनी में बैठकर वो बात किया करता था, बात करते हुए रोज पड़ोस के घर से अगरबत्ती की खुशबू उसके नासिका तक पहुंचती थी। चंदन की उस खुशबू को अपनाता, आंखें बंद कर लेता और जब आंखें खोलता तो नारियल पेड़ के लंबे लहराते पत्तों को एक टक देखते रहता। कुछ इस तरह बात करते-करते वो खो जाता, कहीं और ही चला जाता।
जब उधर से झटकाने की अंदाज में आवाज आती कि अरे तुम मेरा बात सुन रहा है न। तो वो कहता कि हां फिर से बोलो सुनाई नहीं दिया। खाने का वक्त हो जाता तो अपने दोस्तों से कहता कि यार आज मेस नहीं जाउंगा, खाना पैक करा के ला देना।अब उसकी बात हो चुकी है, लड़की ने फोन रख दिया है, फिर भी वो कुछ मिनट उस बालकनी की हवा में बैठा रहता। पूर्णिमा के चांद से उस नारियल पेड़ की परछाई को देखता और फिर कहीं गुम हो जाता।
               बहरहाल लड़की से उसकी बात बंद हो गई है तो वो ये सब भूल चुका है लेकिन जब कभी कहीं से उसे चंदन की खुशबू आ जाती है वो फिर से पीछे चला जाता है और उसी नारियल के पेड़ की आड़ में खुद को पाता है। कभी गलियारे से गुजर रहा है, किसी घर से वही खुशबू उसे आ रही है, वहां कुछ सेकेंड के लिए रूक जाता है। उस घर को देखने लगता है फिर वो ये सोचकर आगे बढ़ जाता है कि यहां वो बात नहीं है। यहां तो नारियल का पेड़ भी नहीं है। और फिर अपने आज में वापस लौट आता है।
               इतने लंबे समय के बाद जब मेरी लड़की से बात हुई तो उसने बताया कि वो अभी मम्मी और छोटी बहन के साथ गुड़गांव में रहती है और ऐमिटी यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रही है।उसका बायफ्रेंड भी है, बोल रही थी कि बहुत पढ़ाकू है, फिर उसने चुटकी लेते हुए कहा कि तुम्हारा जैसा इधर दिल्ली में कोई मिलता नहीं है। आगे उसने बताया- मम्मी ने पालिटिक्स हमेशा के लिए छोड़ दिया है, पापा, दादा-दादी और बाकी लोग अभी गुवाहाटी में ही रहते हैं, और सुनो gg मेरा छोटा बहन तुम्हारा हिन्दी सिखाना बहुत याद करता है, कभी घर आना मिलने।
मेरी जिस दिन उससे फोन पर बात हुई थी उस दिन मैं नैनीताल में था,  मैं उसे पहाड़ों के बारे में बताने लगा। उसने कहा कि मुझे पहाड़ नहीं पसंद, मुझे डर लगता है पहाड़ो से। आगे उसने डर की वजह भी बतायी कि एक बार कार से उत्तराखंड घूमने गये थे, मसूरी से धनौल्टी वाले रास्ते में जा रहे थे। एक गाड़ी में मामा, मामी और बच्चे थे और पीछे एक दूसरी गाड़ी में वो अपने मम्मी पापा और बहन के साथ थी। दुर्घटनावश मामा लोगों की गाड़ी खाई में गिर गई, कोई भी जिन्दा नहीं बचा। अब उसने अपने आंखों के सामने मौत का यह मंजर देख लिया तब से वो पहाड़ों से डरती है।
                  जब मैं नैनीताल से दिल्ली वापस आया तो उसे कहा कि चलो मिलना कभी , मैं महीने भर यही हूं। एक दिन मिलने का प्लान हो गया। मैं खुद बोल तो दिया था लेकिन पता नहीं क्यों एक घबराहट सी हो रही थी। आशंका रूपी बादल मुझे घेर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि लोग बात करते हैं फिर मिलते हैं चाय पीते हैं पार्टी करते हैं, फिर बात करते हैं फिर मिलते हैं और एक रिश्ता बन जाता है। लेकिन पता नहीं क्यों मैं इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन पा रहा था। हां ये ऐसे मिल लेना मेरे लिए एक प्रक्रिया भर थी। एक पल को लगता कि आखिर मैं क्यों मिलूं। मिल लूंगा तो सब तबाह हो जाएगा, अभी जैसे दूर बैठे उसे याद कर पा रहा हूं, ये फिर कभी नहीं होगा। बिना मिले ही उसे ख्वाब में देख लेने का ये आकर्षण हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा। क्यों न मैं इस प्रक्रिया को उलट दूं और उससे कभी ना मिलूं, हां वो कीमती है। उससे जुड़े ये खयाल, ये दमक, ये लालिमा, ये अहसास कीमती हैं, मैं इसे एक खजाने की तरह छुपा क्यों नहीं लेता।
मन में ये बैठ गया कि किसी से ना मिलना, मिलने से कहीं ज्यादा अच्छा है। शायद यही मेरा इनर्शिया था जो मुझे कहीं न कहीं मजबूती से पकड़ा हुआ था।
तो आखिरकार नेहरू प्लेस एक रेस्तराँ में मिलना तय हुआ। मैं करोल बाग से मेट्रो पकड़ के नेहरू प्लेस मेट्रो स्टेशन पहुंच चुका था।कभी ट्रेवलिंग और रेस्तरां चेक इन करने का फेसबुक अपडेट नहीं डाला था लेकिन उस दिन नेहरू प्लेस के उस रेस्तरां का अपडेट पहुंचने से पहले ही डाल दिया। आटो लेकर आगे मुझे उस रेस्तराँ तक जाना था। उसके आने में अभी काफी समय था। अब पता नहीं क्यों मेरे कदम आगे बढ़ नहीं पा रहे थे। मैं कुछ देर के लिए वहां बैठा। मेरा इनर्शिया मुझे घेरे जा रहा था। एक बार को लगता कि यार मिल लेता हूं बेवजह ज्यादा सोचना भी ठीक नहीं।
आखिरकार मैं नेहरू प्लेस से वापसी की मेट्रो लेकर अपने कमरे को आ गया। हां मैं उससे नहीं मिला, उसको मैंने खतरनाक सा बहाना मार दिया और वो भी मेरी बात से संतुष्ट हो गई।
कमरे में आया तो दोस्त ने पूछा- वाह! नेहरू प्लेस स्टारबक्स, मिल आया?
मैंने कहा- हां भाई.
दोस्त ने कहा- बड़ी जल्दी आ गया।
इस पर मैंने उसे झूठ-मूठ की कहानी थमा दी।
पचास किलोमीटर के मेट्रो के सफर और गर्मी की तपिश के कारण मैं थक चुका था।मन में एक अजीब सी ठंडक घर कर गई कि मैं उतनी दूर गया और उससे बिना मिले वापस आया, हां मैंने उसे अपने अंदर संभाल लिया, यही तो मेरा इनर्शिया था, उससे 'ना मिलने का इनर्शिया'। और मैं अपने इनर्शिया को साथ लेकर सो गया।


                The Balcony with a greenish light and closed window, A place where the whole background is overlapped by two coconut trees and nestle down by such beautiful memories.
this Picture is LIFE.
this is HEAVEN.

Saturday, 24 December 2016

My First Dream - A Memoir

साल 2010,
इंजीनियरिंग का तीसरा सेमेस्टर,
रात के दो बजे रहे थे। मूवी देखने के बाद मुझे नींद आने लगी थी। मैं सोने से पहले फेसबुक देख रहा था, उस समय फेसबुक एकदम नया था। यानि किसी को हाय हेलो भेजना होता तो गलती से अगले के वाल में जाके लिख आते, कुछ ऐसी ही स्थिति थी। तो रात के दो बजे मैंने देखा तो पाया कि सिर्फ एक ही आनलाइन थी। कौन थी मुझे भी नहीं पता, कब मैंने उसे एड किया हुआ है ये भी नहीं पता, अपनी तो नयी आईडी बनी थी, सबको लंगर में रिक्वेस्ट भेज दिया, क्या भारत क्या पाकिस्तान सब तरफ से कुछ-कुछ लोग जुड़ गए।
हां तो आज पहली बार मेरी उससे बात हो रही है।वो गुवाहाटी की है और अभी 12th में है। उससे मेरी बात शुरू हुई,  एक घंटे तक धड़ाधड़ चैटिंग, नया नया चस्का, वैसे चैटिंग कम और संस्कृति का लेन-देन ज्यादा हो रहा था।
              उस रात मुझे ये महसूस हुआ कि मेरा बचपना अभी तक गया नहीं है, उस एक बचपने के चलते कुछ भी बात कर देता हूं। नहीं पता चल पाता कि क्या गलती हुई, हां कई एक बार शर्मिंदा भी होना पड़ा है। एक बात और ये पता चली कि मुझे सच में लड़कियों से बात करना नहीं आता। मैं जब अपने कालेज के दोस्तों को हेडफोन लगाए धीमी आवाज में बात करते देखता था तो मुझे लगता था कि ये दुनिया का सबसे बड़ा आर्ट है। मतलब इतने घंटे तक किसी से बात कर लेना। उस समय यही लगता कि यार कोई इतना ज्यादा कैसे बात कर लेता है, कहां से इतना कुछ लाता होगा बात करने के लिए, कैसे इतना कोई सोच लेता होगा। ऐसे सवाल इसलिए भी घूमते क्योंकि मेरे इर्द-गिर्द ऐसे बहुत से दोस्त थे। कभी-कभी हीन जैसा महसूस हो जाता कि यार ये काम मुझे क्यों नहीं आता।
            लेकिन उस रात बड़ा कांफिडेंस आया जब उसने चैटिंग के बीच में कहा कि चलो फोन पर बात करते हैं। यानि जिसकी किसी से बात न होती हो उसे कोई लड़की रात को दो बजे अचानक बात करने का निमंत्रण दे। पहले तो ऐसा कभी न हुआ, सब कुछ चमत्कार जैसा लग रहा था। मेरी स्थिति  "बेटा मन में लड्डू फूटा" वाली हो गई। उसके पास एक आल इंडिया रिलाइंस फ्री वाला नंबर था तो फिर क्या सुबह 5 बजे तक बात हो गई। मुझे बहलाने, फुसलाने और तारीफ टाइप का मीठा बात करने उस समय बिल्कुल नहीं आता था, डोंट वरी अभी भी नहीं आता ये सब। हंसना मत यार मैंने न ये कला सीखने की भी कोशिश की थी लेकिन नहीं सीख पाया।
हां तो उस रात बंगाल, उड़ीसा के रास्ते होते हुए असम की पूरी संस्कृति मुझ तक छत्तीसगढ़ पहुंच रही थी। मैं भी ठहरा निट्ठला, बैकलाग पेपर क्लीयर नहीं हुआ था और यहां मैं एक अलग ही दुनिया की पढ़ाई की बातें कर रहा हूं, लैंग्वेज सीख रहा हूं, कल्चर अपना रहा हूं।

उस रात बात करते-करते एक समय ऐसा भी आया कि जैसे दोनों हल्की नींद में बात कर रहे हों, अचानक से उसने मुझे एक संज्ञा दे दी, वो मुझे 'GG' कहने लगी यानि कि गाड गिफ्ट। मुझे लगा कि मैं पहली बार ही तो बात कर रहा हूं ये कुछ ज्यादा ही हो गया।
एक लड़की से फेसबुक में बात हुई और तुरंत नंबर मिला। इस बात को लेकर मुझे उतनी खुशी नहीं हुई होगी, जितनी खुशी इस बात के लिए थी कि लो बेटे हमने आज घंटों बात किया है, एकदम जी भर के बात किया है। एक दोस्त से शेयर भी कर दिया कि देख भाई ये हुआ है। इंग्लिश तो थोड़ा बहुत सीखा है, असमिया के दो-चार शब्द भी सीखे हैं। असल में मेरी इंग्लिश उस समय कबाड़ थी, और हिन्दी तो मेरी पहले से ठीक थी। तो मैं उसे हिन्दी सिखाता, वो मुझे इंग्लिश। अपनी बात होने लगी। भाषाओं के लिए मेरा पागलपन इतना कि मैंने उसे असमिया सीखने के नाम से बड़ा परेशान कर देता था।

            एक दिन उसने बताया कि उसके पापा मुस्लिम हैं, मम्मी क्रिश्चियन है, रिश्तेदारों में देखें तो पारसी और बौध्द धर्म भी पल्लवित होता है। आगे वो बताती कि उसके घर में लगभग सभी धर्मों के रंग मिल जाते हैं। यहां मैं बताना चाहूंगा कि नार्थ ईस्ट वाले कुछ मामलों में वाकई खास हैं, उनका हास्य विनोद भी कमाल होता है। 'बच्चे मन के सच्चे' वाला उनका निरालापन कई बार दिल छू लेता है।
हां तो जब वो धर्म के बारे में बतायी तो मैंने कहा अच्छा तुम्हें पता है मैं हिन्दू हूं, देखो तुम्हारे घर में ये एक रंग नहीं है। तुमने शायद ये रंग पहले नहीं देखा है अच्छे से, इसलिए मैं तुम्हारे लिए इतना खास हो जा रहा, शायद इसलिए तुम मुझे GG पुकारती हो, इतना बड़ा क्रेडिट।पता नहीं झूठ-मूठ का बोलती हो या बस ऐसे ही।
उसने कहा- अच्छा तो तुम हिन्दू हो, हां यार एक हिन्दू की कमी है हमारा फैमली में। एडजस्ट होने का मन हो तो प्लीज यू कैन एप्लाय। और हां gg तो तुम हो ही मेरे लिए।
ऐसा वो बोली फिर हम दोनों हंसने लग गए।

नार्थ ईस्ट के लोगों के बारे में एक विशेष बात ये भी है कि उनकी हिन्दी थोड़ी टूटी-फूटी होती है..हां ये विशेष है। भले ही नार्थ ईस्ट आते आते खड़ी बोली हिन्दी रूपी गाड़ी का पिस्टन बुरी तरीके से बैठ जाता है लेकिन इस टूटी हिन्दी में भी उनका संवाद करने का तरीका हमसे काफी बेहतर होता है। हां तो उस लड़की का बातचीत करने का ढंग कुछ ऐसा था कि
तुम क्या कर रहा है?
तुम कहां जा रहे है?
घर में सब कैसा है?
वगैरह वगैरह.....
एक बात जो उसकी याद आ रही है वो ये कि जब भी बातचीत होती, हाय हेलो होता, उसका दूसरा या तीसरा सवाल लगभग यही होता कि "घर में सब कैसा है?" ..वो लगभग हर दूसरे दिन ये सवाल कर देती।
इन छोटी-छोटी चीजों की वजह से वो मेरे लिए आम से खास हो जाती। यानि कोई जो आपसे हजार किलोमीटर दूर है, उसके दूसरे सवाल में आपके घरवालों का ख्याल हो। ये छोटी-छोटी चीजें कितना उनको खास बना देती है। हमारे यहां के लोग हाय, कैसे हो, के बाद पेट के बारे में पूछते हैं कि खाना हुआ कि नहीं और सब्जी भाजी को लेकर घंटों घसीट लेते हैं।
लेकिन नार्थ ईस्ट वालों के बारे में मैंने ये पाया कि ये एक छोटी सी चीज लगभग हर किसी के व्यवहार का एक हिस्सा है। माने यही तो हमारा सबसे बड़ा धन है, इन्हीं सब की वजह से तो भारतीय संस्कृति विश्व प्रसिद्ध है।

            हमारी बातचीत को लगभग एक महीना हो चुका था। इस महीने भर में कभी वो अपनी मासी से मेरी बात करवाती तो कभी अपनी बहन से, और कहती कि लो अब इनको हिन्दी सिखाओ। बाप रे उनकी हिन्दी इतनी डांवाडोल थी मेरा पसीना छूट जाता उन्हें सिखाते-सिखाते। उसने फेसबुक में कभी अपनी फोटो नहीं डाली, उस समय ऐसा था कि उसे फोटो भेजने भी नहीं आता था। उसने मेरी इच्छा मानते हुए किसी दोस्त की मदद से अपनी तस्वीरें मुझे ई-मेल में भेजी। दो तस्वीरें थी, एक में उसने पारंपरिक असमिया ड्रेस पहना हुआ था (ठीक वैसा जैसे पूर्वोत्तर के चाय बागानों में पत्तियाँ तोड़ने वाली महिलाएं पहनती हैं) और दूसरी तस्वीर में नेशनल लेवल बालीवाल चैम्पियन ट्राफी हाथ में लिए हुए थी। इस बीच बातचीत होते-होते हम एक दूसरे के लिए खास हो गए लेकिन प्रेम-विलाप का उपक्रम कभी न हुआ।
             
                उसकी मम्मी गुवाहाटी की मेयर रह चुकी हैं। और पापा बिजनैसमैन हैं, उसने मुझे ये भी बताया कि गुवाहाटी में सबसे बड़ी गैलरी की दुकान उन्हीं की है। मेरी उससे कभी दिन में बात नहीं हुई, वो स्कूल में रहती तो अधिकतर मेरी बात शाम या रात के समय ही होती। दिन में कभी-कभी फेसबुक में बात हो जाती।अब फोन में बात हो जाती तो फेसबुक में उतना ध्यान नहीं रहा, भला भरे पेट में कैसे खाना खाया जाए वाली स्थिति थी।
एक बार ऐसा हुआ कि कुछ दिन से मेरे पास नेट नहीं था,
उसने एक दिन शाम में कहा -तुम कहां रहता है दिनभर, मैंने फेसबुक में मैसेज किया था।
मैंने बताया कि अभी नेट पैक नहीं डलवा रहा। देखता हूं कुछ दिन में डलवा लूंगा।
आप यकीन नहीं करेंगे आधे घंटे के अंदर उसने मेरे फोन में रिचार्ज करा दिया।
मैंने उस समय औपचारिकता स्वरूप में बोल दिया कि अरे यार क्यों करवाया रिचार्ज, क्या जरूरत थी।

अगले दिन अपने दोस्तों को बताया, अब ये सब बातें पेट में रहती कहां है। मैंने अपने दोस्तों से जब शेयर किया तो उन्होंने कहा भाई मजे हैं तेरे। साला यहां तो हमारी वाली ले दे के पेट्रोल डलवाती है। तू सही फंसाया है भाई मजा ले, जल्दी से एटीएम तक बात पहुंचा, कैश ट्रांसफर करवा भाई, कौन सा तुझे मिलना है उससे।

सच बोलूं एक दो रात तो ठीक से सो नहीं पाया। मेरी वाली तेरी वाली, फंटी वगैरह ये शब्दावलियां मुझे चुभने लगी, आज भी ये सब कहीं सुन लेता हूं तो बात मुझे ये बात इतनी चुभ जाती है कि शायद आप इसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते। चाहे सामने वाला अपनी किसी खास के बारे में बता रहा हो, लेकिन भाई मुझे ये नहीं पसंद, भले उस समय मेरे पास इस बात का कोई तोड़ नहीं था लेकिन आज साफ कहता हूं कि इस घिनौने लैंग्वेज पैटर्न से मुझे चिढ़ है। हां मेरी ये उत्तेजना सहज है क्योंकि मुझे औचित्य कहीं न कहीं अपने पक्ष में नजर आ रहा है।
एक तरफ मेरे दोस्त जो हाल फिलहाल में सुख-दुख के साथी थे। एक तो आसपास का माहौल ऐसा कि समझ न आए कि क्या सही क्या गलत। उसने रिचार्ज करवाया, इस बारे में मैंने लड़की से और कोई बात नहीं की।
एक अपराध-बोध मन ही मन मुझे घेरे जा रहा था, एक द्वन्द्व जो मुझे दीमक की तरह अंदर से खोखला करने को तैयार था।
कभी लगता कि मैंने क्यों ये बात अपने दोस्तों को बता दी। कभी लगता कि खुद से दगाबाजी हो रही है भाई। मन तो किया कि चिल्ला चिल्लाकर उद्घोष कर दूं कि ये सब मुझे स्वीकार नहीं है।अपरिपक्वता के उस समयकाल से खुद को निकाल लेना थोड़ा मुश्किल जान पड़ रहा था।

आखिरकार ये बात वहीं कहीं दबकर खत्म हो गई। दोस्तों की सलाह सुनके एक बार ध्यान भटका जरूर था लेकिन सच्चे मन से कहता हूं कभी कोई लालच का भाव न आया। मेरे बचकाने मन ने फिर से हमेशा की तरह मेरा साथ निभाया,मुझे संभाल लिया।
मुझे अपने दोस्तों के बीच कूल बने रहने के लिए जबर्दस्ती झूठ बोलना पड़ता था कि हां बे अपना तो फुल रिचार्ज हो रहा है भाई। बस अब बैंक से कैश स्वाइप कराने की देर है।

                हां तो अब बात आती है मेरे पहले सपने की। मंगलवार की रात थी। रात के दो-तीन बजे के आसपास का समय होगा, मैं चौंककर उठा, हल्का पसीना भी आ रहा था। मैंने उस लड़की के पापा को अस्पताल में देखा। मैंने देखा कि उनको हार्ट अटैक आया है, दूसरा स्टैज है और आईसीयू में भर्ती हैं। रिश्तेदार धीरे-धीरे अस्पताल पहुंच रहे हैं और जो पहुंच चुके हैं वे बाहर इंतजार कर रहे हैं। इतने में मेरी नींद टूटी।
                सुबह मैंने लड़की से बात करने की कोशिश लेकिन उसका फोन नहीं लगा, जिस लड़की से पिछले महीने भर से रोज मेरी बात हो रही थी, पिछले पांच दिन से उसका फोन बंद था। पांच दिन के बाद उसका मुझे फोन आया,
मैंने कहा - यार कहां थी तुम! कब से तुम्हें फोन लगा रहा हूं कुछ जरूरी बात बतानी थी।
उसने भरी हुई आवाज में कहा - पापा को हार्ट अटैक आ गया था, सेकेंड स्टैज था। अभी सब ठीक है। हास्पिटल में ही बिजी था इसलिए बात नहीं कर पाई। हां gg तुम क्या बोल रहा था बताओ।
मैंने कहा- नहीं कुछ नहीं बस ऐसे ही।
मैंने उस दिन बात टाल दी और फिर उसे कभी न बताया कि जिस दिन अटैक आया था उसके ठीक एक दिन पहले ही मैंने सब कुछ हूबहू सपने में देख लिया था।