Saturday, 30 April 2022

संजय "जैसलमेर" जी के नाम पत्र -


                     संजय जी से परिचय कोई दो साल पुराना है, फेसबुक में किसी ग्रुप के माध्यम‌ से हम लोग जुड़े थे। ये अपने नाम‌ के आगे अपने शहर का नाम लगाते हैं, यानि फेसबुक में संजय जैसलमेर लिखते हैं। यही इनके अपने शहर के प्रति प्रेम को, अनुराग को दर्शाता है। मैं जब जैसलमेर घूमने गया था तो इनसे मुलाकात हुई थी। पहली बार ही मिला, बहुत अधिक बात नहीं हुई, फोन पर सुबह बात हुई और दोपहर सीधे खाने में अपने घर उन्होंने बुला लिया। आज के बदलते समय में जहाँ मुद्रा और चकाचौंध लोगों के दिलों दिमाग में हावी है, वहाँ इतना अपनापन, वह भी इतने नि:स्वार्थ भाव से, यह आश्चर्यचकित करता है, अपनी बात कहूं तो मुझे तो परेशान कर जाता है।

                       मेरा परिचय तो उनके लिए एक अनजान का ही रहा, एक ऐसा अनजान जो उनके शहर घूमने के उद्देश्य से गया था फिर भी वे ऐसा महसूस कराते हैं कि वे आपके अपने हैं। यही सच है, उनको जैसलमेर आने वाले मेहमानों की आवभगत करना पसंद है, और यह सिर्फ मेरे अकेले की बात नहीं है, सबके साथ ऐसा करते हैं, यह सब वह मन‌ से करते हैं, खुद को खपा देते हैं, बदले में वे कुछ चाहते नहीं है, यह उनका शौक है। लोगों को एक बार के‌ लिए संकोच हो सकता है कि कोई क्यों हमारे लिए इतना समय इतनी ऊर्जा दे रहा है, कुछ तो मंशा होगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है, इनसे मिलने के बाद सारी शंकाएँ दूर हो जाती है, सारा कुछ ध्वस्त हो जाता है। उनसे एक बार उनके घर में जो मुलाकात हुई, उससे यह भी मालूम हुआ कि उन्हें बेशकीमती पत्थरों को जमा करने का शौक है, अपना कलेक्शन भी उन्होंने दिखाया, मुझे भी कुछ एक पत्थर दे गये, मैंने मना तो किया कि आप ही रखिए। लेकिन वे सब कुछ इतने प्रेम और इतने अपनेपन से कर जाते हैं कि ऐसे में मना करना मुश्किल हो जाता है। हद जुनूनी और ऊर्जावान व्यक्ति हैं, उन्हें अलग-अलग लोगों से मिलना, उनके साथ घूमना, उन्हें घुमाना और वो हरसंभव मदद करना पसंद है जो उनसे हो सकता है, आप थक जाएंगे वे नहीं थकेंगे, उन्हें इस काम में बहुत मजा आता है, इन्हें किसी टूरिस्ट गाइड जैसा न समझा जाए, ये सब कुछ अपने मन से करते हैं और आपको हैरान कर जाते हैं। वे कभी-कभी अपने मन की बात बताते हैं कि जिन्होंने घूमने फिरने को व्यापार बना लिया, उन्होंने आज बुलंदियाँ छू ली लेकिन मैं वैसा ही हूं क्योंकि मेरी मानसिकता वैसी नहीं है, मेरे लिए यह मन के भीतर की चीज है। 

                         भले मैं इनके साथ नहीं घूम पाया, ज्यादा समय नहीं दे पाया लेकिन कम समय में ही मेरा अपना जो अनुभव रहा, उसमें मुझे यह लगता है कि वे एक बहुत ही साफ और नेकदिल इंसान हैं, मैं ऐसे लोगों से मिलना अपनी खुशकिस्मती समझता हूं। मुझे यह भी लगता है कि हमें ऐसे लोगों को संभालने‌ की जरूरत है जो नि:स्वार्थ भाव से बिना बदले‌ में कुछ चाह के लोगों को अपना प्रेम लुटाते रहते हैं, उनकी मदद करते रहते हैं। ऐसे लोगों को हर तरह का प्रोत्साहन मिलना चाहिए। सरकार को और समाज को भी चाहिए कि जिजीविषा से पूर्ण ऐसे व्यक्ति के अनुभवों को प्राथमिकता दी जाए, सम्मान दिया जाए और जो उचित बन पड़े इनके लिए किया जाए।




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