Saturday, 9 April 2022

मेरी बैचेनी - एक कविता

कुछ लोगों में होता है जरूरत से अधिक धैर्य, 
सुन लेने का पूरी तन्मयता से फिजूल बातों को भी,
मैं नहीं कर पाता हूं बर्दाश्त,
सीधे कह जाता हूं मूर्ख,
क्योंकि ऐसी बातें मुझे लगती है,
किसी द्विगुणित होने वाले जहरीले,
विषाणु जीवाणु बैक्टीरिया की तरह,
जो करती है प्रभावित मन मस्तिष्क को,
मेरे पूरे शरीर को,
हाथ पाँव हो जाते हैं शिथिल,
होती है नाभि में बैचेनी,
चला जाता है चेहरे का खिला हुआ रंग,
छिन जाती है मुस्कुराहट,
और घिर जाती है आँखों में बैचेनी,
कान अस्वीकार कर देते हैं कुछ सेकेण्ड के बाद,
और जोर से कराहने लगते हैं।
तमाम धैर्यवान लोग दुनिया के लिए उम्मीद हैं,
जो इस धरा का इतना भारीपन लेकर चलते हैं,
सभी लोगों को सुनते हैं,
उनकी हर एक खराब से खराब,
सतही, छिछली और स्तरहीन,
अतार्किक, बेफिजूल और बेबुनियाद,
हिंसा, नफरत और सामंती मानसिकता से भरपूर,
जड़ से सढ़ चुकी बातों को देते हैं तवज्जो,
ताकि हम‌ जैसे चंद लोग मन भर के,
दीमक की तरह लटके,
जोंक की तरह चिपके,
दीवार बन कर अड़े इन लोगों को,
जी भर के चूतिया कह सकें।

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