Thursday, 7 April 2022

बुरा अनुभव ?

भारत घूमकर घर लौटे साल भर से अधिक हो गया। इस बीच अधिकतर लोग पूछते हैं कि आप इतने महीनों तक लगातार भारत के अलग-अलग कोनों में घूमते रहे, कोई तो बुरा अनुभव होगा, बताइए। मेरे पास इसका कोई खास जवाब नहीं होता है क्योंकि ऐसा कुछ रहा ही नहीं, सोचना पड़ जाता है, दिमाग में बहुत जोर डालना पड़ता है। आखिरकार आज जोर डाल दिया है, पढ़ जाइए।
All india solo winter ride का 56वाँ दिन था, मैं तब कूल्लू में था, दो दिन हो चुके थे। कूल्लू का अपना एक अलग कल्चर, वहाँ का अलग खान-पान, लोगों की बातें, मुझे मजा आ रहा था। कूल्लू से मनाली बमुश्किल एक घंटे का रास्ता है, लेकिन मेरा कोई खास मन नहीं था कि वहाँ जाऊं, क्योंकि मनाली अब दिल्ली जैसे किसी शहर जैसा ही हो गया है, लेकिन फिर भी मैं अगले दिन मनाली गया, क्योंकि उसी दिन रात को बर्फबारी हुई थी, बर्फबारी देखे एक साल से ज्यादा हो चुका था, तो सोचा देख के आया जाए, वरना मनाली जाता ही नहीं, वैसे भी मेनस्ट्रीम जगहों में जाने से घुटन ही होती है।
अब असल‌ बात पर आते हैं, मनाली जाने से पहले मैंने दो दिनों के लिए एक होटल में बुकिंग कर ली थी, पैसे चुका लिए थे, लेकिन किसी कारणवश ऐसा हुआ कि होटल वाले‌ ने मेरी बुकिंग कैंसल कर दी और किसी दूसरे को दे दिया। अमूमन यही होता है, स्नोफाॅल हुआ कि भीड़ बढ़ने लगती है और होटल‌ के रेट भी बढ़ जाते हैं, होटल वाले को ज्यादा पैसे मिले होंगे और उसने थोड़े पैसों के लालच में मेरा कमरा किसी और को दे दिया गया होगा, ऐसी धूर्तता मेनस्ट्रीम जगहों में ज्यादा होती है। मैंने होटल वाले से बात की, फिर कहा कि कोई चलो कोई बात नहीं, अब पैसे वापसी पर ध्यान दिया जाए। जिस प्लेटफार्म‌ से बुक किया, उनसे बात की, मेल किया, फिर होटल वाले से बात की। प्रोसेस स्मूथ नहीं लग रहा था, मामला ऐसा फंसा कि पैसे वापसी की संभावना अब मुझे नहीं दिख रही थी, कुछ समय तक‌ सोचा फिर मैंने कहा हटाओ, मुझे अपना समय इन सब चीजों में बर्बाद नहीं करना।
मोटा मोटा यही हुआ कि मेरे लगभग 2000 रूपये चले गये। मैं कुछ घंटे भिड़ जाता, होटल वाले से जाकर मनाली में मिलता, कंपनी वाले को लाइन में लेता, मेल में सबकी धुलाई करता, यह सब करता तो मेरे पैसे मुझे मिल ही जाते, जीवन में अपने लिए इतना आत्मविश्वास तो अर्जित किया ही है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में मेरा समय जाता, वह तो ठीक, समय तो भरपूर रहा करता है अपने पास लेकिन वही है दानव के साथ लड़ते भिड़ते आपमें भी दानवों के गुण हावी होने लगते हैं, इसीलिए मैंने अपने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए इस मसले‌ को ठंडे बस्ते में डाल दिया और ये बहुत सही फैसला था। उन रूपयों के पीछे लगे रहता तो मेरा जो मानसिक रूप से नुकसान होता वह कुछ दिन तक मेरे भीतर मुझे प्रभावित करता ही, जहाँ भी जाता, रहता खाता, घूमता फिरता, हर एक पहलू को प्रभावित करता, यह तो उन रूपयों के मुकाबले बहुत ही बड़ा नुकसान था, इसलिए मैंने जाने दिया, यकीन मानिए यह बहुत फायदे का सौदा था। 
अब मैं मनाली गया तो दूसरे जगह रूकना हुआ, जिस हाॅस्टल में रूकना हुआ वहाँ मेरठ के गुरसिमरन भाई और दिल्ली के निशांत भाई ( ये आदमी सोशल मीडिया का इस्तेमाल ही नहीं करता है) मिल गये। एक तो मैं बहुत कम‌ लोगों के साथ ही सहज हो पाता हूं, ऐसे में दो नये लोग, शुरू में हिचकिचाहट हो रही थी लेकिन फिर तो क्या ही बढ़िया ट्यूनिंग हो गई, नियति को शायद यही मंजूर था। हम‌ तीनों की तिकड़ी ऐसी जमी कि अगले दो दिन हम सब साथ रहे, खूब मौज काटा। अब निशांत और मुझे दिल्ली वापस आना था, 31 दिसंबर का दिन था, हम दोनों ने फैसला किया कि साल के आखिरी दिन कुछ तूफानी किया जाए, फिर क्या था, फैसला हुआ कि पैराग्लाईडिंग करेंगे, वो भी छोटा मोटा कूल्लू मनाली वाला नहीं, एशिया के सबसे बड़े पैराग्लाइडिंग पाइण्ट से ही करेंगे, तो हम वहाँ चले गये, गुरसिमरन भाई ने अगले कुछ दिनों के लिए मनाली के किसी गाँव में अपना ठिकाना जमा लिया, और हम आ गये थे आसमान की ऊंचाइयों में, लेकिन कमबख्त कोहरा नहीं था। 
साल भर बाद दिल्ली‌ में निशांत की शादी थी, ठीक उसी समय मैं किसान आंदोलन के अंतिम क्षणों को कवर करने के लिए दिल्ली पहुंचा था, हम तीनों की‌ फिर से वहाँ मुलाकात हुई। मैं सोचता हूं अगर वो 2000 रूपयों का बढ़िया नुकसान न होता ( उसे तो फायदा ही समझता हूं) तो‌ मुझे जीवन भर के लिए ये दो बेशकीमती दोस्त न‌ मिलते।
भारत घूमने के अनुभवों के बारे में जो पूछते हैं कि अच्छा बुरा क्या अनुभव था, उसमें बस यही कहना है कि अच्छा बुरा जैसा कुछ होता नहीं है, आपका अपना एप्रोच क्या है सब कुछ उसी पर निर्भर करता है, आप पर है कि आप जीवन में कितना अधिक तनाव लेकर जीना चाहते हैं, मुद्रा के खोल से इतर अपने जीवन‌ को अपने स्वास्थ्य को कितनी प्राथमिकता दे पाते हैं, खुद के भीतर कितना झांक पाते हैं। 




1 comment:

  1. यह पढ़ कर सारी यादें ताजा हो गई अखिलेश भाई... बहोत खूबसूरत लिखा है 😍😍

    ReplyDelete