Saturday, 16 April 2022

जब हम कहेंगे अपना पूरा सच - एक कविता

दुनिया अधूरेपन की नींव पर टिकी है, 
यहाँ पूरा कुछ भी नहीं होता, 
हम नहीं कहते अपना पूरा सच, 
हम थोड़ा सच कहते हैं,
या कभी कुछ ज्यादा कह लेते हैं,
ताकि धरती घूमती रहे, 
शांति, स्थिरता कायम रहे,
चीजें जस की तस बनी रहें।

हम‌ जिस दिन उखाड़ने लगेंगे सारे गड़े मुर्दे,
बता देंगे जीवन के सारे कटु और वीभत्स अनुभव,
हम कहने लगेंगे जिस दिन अपना पूरा सच,
तमाम जड़ें हिल जाएंगी,
कितनी स्थापनाएँ ध्वस्त होंगी,
कितने रिश्ते टूट जाएंगे,
हम‌ अकेले पड़ जाएंगे,
धरती थर-थर काँपने लगेगी।

1 comment: