1. पहले वे लोग हैं जो एकदम बैल बुध्दि हैं, बैल बुध्दि मतलब जो ज्यादा दिमाग नहीं लगाते हैं, इनको कोई भी अपने हिसाब से जब चाहे हाँक सकता है, बहुसंख्य आबादी इन्हीं की है, इन्हें भक्त या भगत भी कहा जाता है, भक्त किसी भी पार्टी, विचारधारा, व्यक्ति का समर्थक हो सकता है, इनके लिए किसान आंदोलन में खलिस्तानी आतंकवादी हैं तो हैं, इनके हिसाब से किसान आंदोलन पंजाब और हरियाणा के लोगों का आंदोलन है आदि आदि। मीडिया ने और आईटी सेल ने कह दिया तो वही आखिरी सच है, आप इनसे कुछ और बात भी नहीं कर सकते हैं, ये अपने कुतर्कों पर इतनी मजबूती से टिके होते हैं कि आपका तर्क कम पड़ जाएगा लेकिन इनका कुतर्क कभी खत्म नहीं हो सकता है।
2. दूसरे वे लोग होते हैं जिनको सरकार के हर कानून का, सरकार के हर कदम का समर्थन करना होता है, भले ही वह कानून आगे जाकर सबसे ज्यादा उन्हें ही क्यों न नुकसान पहुंचाता हो, लेकिन सरकार की भक्ति करनी है तो करनी है, पीछे नहीं हटते हैं, इनसे आप कभी भी कृषि कानूनों के बारे में चर्चा नहीं कर सकते हैं, इनके मस्तिष्क में सब कुछ पहले से फिक्स है, सरकारी फरमान ही इनके लिए आखिरी सच है। सरकार के हर फैसले का मुंह उठाकर विरोध करने वालों को मैं भी इसी केटेगरी का ही मानता हूं।
3. तीसरे वे लोग हैं जिनको मैं बहुत मासूम मानता हूं, इनमें खूब पढ़े-लिखे प्रबुध्द लोग हैं, ये किसी के अंध समर्थक नहीं होते हैं लेकिन ये हर बात में विशेषज्ञ बनते रहते हैं, भले मानुष लोग होते हैं, देश का समाज का भला हो, यही मानसिकता रखते हैं, इस पर काम भी करते रहते हैं। इन प्रबुध्दजनों को लगता है कि घर बैठे दो चार आर्टिकल पढ़ के, टीवी या वीडियो देख के उन्होंने जो समझ विकसित की है, वही दुनिया का आखिरी सच है, इनके साथ एक सहूलियत यह रहती है कि इनसे आप बहस चर्चा कर सकते हैं। मजे की बात देखिए कि इन मासूम लोगों को 11 महीने से चला आ रहा यह अहिंसक आंदोलन कांग्रेसियों या अन्य किसी पार्टी या विचारधारा द्वारा प्लांट किया हुआ आंदोलन लगता है।
4. चौथी केटेगरी उन लोगों की है, जिन्हें मैं एक शब्द में धूर्त कहता हूं, महाधूर्त और महामूर्ख जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जाए तो भी गलत नहीं होता। ये केटेगरी उन लोगों की है जो देश चलाते हैं, ये वे लोग हैं जिन्होंने इन काले कानूनों को अमलीजामा पहनाया। ये समाज के दुश्मन लोग हैं, ये समाज का भला चाह लें इनसे आप भूलकर भी ऐसी उम्मीद नहीं कर सकते हैं। ये कैटेगरी नौकरशाहों की है, पिछले 11 महीनों से किसान आंदोलन को लेकर कुछ एक वरिष्ठ नौकरशाहों से बातचीत हुई। मुझे लगता था कि जो लोग जिला, राज्य से लेकर केन्द्र स्तर तक प्रशासनिक व्यवस्था देखते हैं, उनमें कुछ तो समझ का स्तर होगा ही। अब चूंकि ये सबसे ज्यादा विशेषज्ञ कहा जाने वाला वर्ग है, तो ये अपनी एक कविता, कहानी या कोई भी बात कुछ विशेष शब्द या भारी भरकम बात कहते हुए रखता है ताकि आमजन से अलग इनकी छवि बने, इसलिए आप देखिएगा कि इनकी सामान्य सी बात में भी आपको आमजन वाली भाषा का पुट नहीं मिलता है, वो बात अलग है कि भाषाई मकड़जाल के पीछे अधिकतर लोग बहुत ही सतही बात ही कर रहे होते हैं। अब इनमें से अधिकतर लोगों की सोच यह है कि किसान आंदोलन बड़े किसानों जमींदारों का आंदोलन है, और वे छोटे किसानों का और शोषण करेंगे इसलिए इस कानून का विरोध कर रहे हैं। सबसे पहली बात तो यह है कि अगर इस नौकरशाही को किसानों की इतनी ही चिंता होती तो इस कानून का ड्राफ्ट ही तैयार न करते। छोटा किसान बनाम बड़ा किसान जैसा छिछला बचकाना तर्क दे रहे हैं, इनसे कहीं ज्यादा समझदार तो ऊपर की बाकी तीनों कैटेगरी के लोग लगते हैं।
#farmersprotest
No comments:
Post a Comment