Tuesday, 26 October 2021

डेवलपमेंट सेक्टर - एक अंधी गली

कुछ साल पहले की बात है, महिलाओं का सर्वे करना था, विषय था माहवारी। एक सामान्य सर्वे जिसे कि रिसर्च कहा जाता, उसके सवाल इतने हिंसक थे कि अभी हर एक सवाल को यहाँ लिखना उचित नहीं समझ रहा हूं। सर्वे करने के दौरान मुझे हर पल यही महसूस होता रहा कि समाजसेवा के नाम पर मैं यह क्या पाप कर रहा हूं। यह भी सोचा कि ऐसे सवाल करने का आखिर हासिल क्या है?
जहाँ तक माहवारी की बात है, कुछ टैबू को अगर किनारे कर लें, जिससे कुछ खास फर्क पड़ता नहीं। तो मुझे लगता है कि सुदूर गाँवों में माहवारी को लेकर शहरों से कहीं अधिक जागरूकता है इस हकीकत को आपको मानना है मानिए, नहीं मानना है मत मानिए। जिन गाँवों में पीढ़ियाँ कपड़े का इस्तेमाल करती रहीं उन गाँवों में तथाकथित समाजसेवी लोगों की टुकड़ियाँ जाकर यह समझाती हैं कि बाजार का पैड हानिकारक है, वो भी उन महिलाओं को समझाती हैं जिनमें से अधिकांश महिलाएँ आज भी कपड़ा ही इस्तेमाल करती हैं, ये उसी काटन के कपड़े को पैड का आकार देकर उन्हें माहवारी के दौरान स्वास्थ्य संबंधी नियम कानून सीखाते हैं। वो बात अलग है कि ये खुद कभी कपड़े से बने पैड का इस्तेमाल नहीं करते हैं, लेकिन प्रचारकर्ता बनकर गाँवों में कपड़े का बना पैड लेकर क्रांति जरूर मचाते हैं, क्योंकि यह सब करके उनकी दुकान जो चलती है। एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि गाइनिक्लोजिस्ट के पास सबसे ज्यादा शहर की महिलाओं को ही जाना पड़ता है।
सर्वे के दौरान बहुत कुछ पूछना होता था, बहुत गहराई में जाकर पूछना होता, इसमें कोई महानता जैसी चीज नहीं होती। सवाल ऐसे होते कि निजता की हत्या या निजता का बलात्कार शब्द का प्रयोग करूं तो गलत न होगा। शुरुआती ट्रेनिंग में आपको भी जागरूक किया जाता और आपकी जागरूकता के लिटमस टेस्ट के लिए अपने किसी महिला मित्र, माता, बहन को फोन कर ( उनमें भी जिनसे आप इन विषयों में बात करने में सबसे अधिक संकोच करते हों ) उनसे माहवारी के बारे में चर्चा करने को कहा जाता। आप यह काम नहीं कर पाए यानि आप उनकी नजर में रूढ़िवादी हैं। देखिए ऐसा है, जहाँ जिस परिवार में खुलापन है, सो है, जरूरी नहीं कि हर कोई दिन रात अभिव्यक्त कर इन चीजों को सामने रखे, और आप कौन होते हैं किसी की निजता को ताक में रखकर सीखाने वाले, इन सबके लिए फोन करके पूछना मुझे बहुत ही ज्यादा वीभत्स लगा। गाँव वालों से कहीं ज्यादा टैबू तो आप लेकर चल रहे हैं, कि आप यह सोचते हैं कि जबरन खुल कर चर्चा करिए, सबको करना होगा, जो नहीं कर पाता उसे नीचा दिखाने लायक माहौल बना देना। अरे भई जिसको स्वेच्छा से करना है करे, नहीं करना है मत करे, इतना लोकतंत्र तो बचा कर रखिए। ये तो कुछ उसी तरीके की बात हुई कि कोई अपने फायदे के लिए, अपने एजेंडे के लिए आपके मुंह में माइक ठूंस कर कह रहा हो कि भारत में रहना है तो फलांना की जय का नारा अभी लगाना होगा वरना दूसरे देश चले जाओ। इनमें और उनमें कोई चारित्रिक अंतर मुझे तो नहीं दिखाई देता है, हर दंगाई सोच दंगा नहीं करती है।
भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति कैसी रही है, यह किसी से छुपा नहीं है, उसमें भी माहवारी संबंधी समस्याओं को बड़ी सूक्ष्मता से टारगेट कर महिलाओं को अपमानित किया जाता है। जिस तरीके से इन समस्याओं को एप्रोच किया जाता है, वह तरीका बहुत ही अधिक घिनौना है, इन सब से समाधान नहीं निकला करते हैं, दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है, बस अपनी फंडिंग की दुकान चलाने की बात है।
लंबे समय से पितृसत्तात्मकता का दंश झेल रही हमारे यहाँ की अधिकतर महिलाएँ जो अपने निजी चीजों या समस्याओं के बारे में अपने पति तक को बताने में झिझक महसूस करती है या किसी बीमारी की अवस्था में डाक्टर के पास जाकर बताने में भी असहज रहती है, उन महिलाओं को हम खुद जाकर यह सवाल कर रहे थे कि आपका माहवारी के दौरान हर महीने कितना खून निकलता है, आप उस दौरान कैसे साफ सफाई रखती हैं, कहाँ नहाती हैं, कपड़े के पैड को कहाँ सुखाती हैं आदि आदि। इससे और खतरनाक सवाल थे, इन चंद सवालों से ही भयावहता का अंदाजा लगा लिया जाए। पूरे सर्वे के दौरान शायद ही कोई महिला मिली हो जो असहज न हुई हो, कोई न कोई सवाल उनको असहज कर ही देता था। 
टीम में सिर्फ लड़के रहे, मुझे नहीं लगता कि लड़कों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे एक अनजान महिला से समाजसेवी का चोगा पहनकर या सर्वे के नाम पर इस तरह के सवाल करें। मुझे बार-बार यह महसूस होता रहा कि यह काम लड़कियों को ही करना चाहिए। बाद में सारे सवालों के पीछे का मनोविज्ञान समझने की कोशिश की तो यह भी लगा कि लड़कियों को भी ऐसे सवाल करने का कोई नैतिक अधिकार नहीं बनता है।
लड़कों को यह काम कराने के पीछे लैंगिक समानता का तर्क दिया जाता, मुझे आज तक समझ नहीं आया कि किसी की निजता की हत्या कर आप कौन सी लैंगिक समानता हासिल करना चाहते हैं?
सर्वे के दौरान ही एक दिन मेरे साथ एक ऐसी घटना हुई जिसे याद करते हुए आज भी सिहरन होती है, एक गाँव में सर्वे के दौरान एक अविवाहित कम उम्र की अंधी लड़की से सवाल-जवाब करना हुआ, वह लड़की कुर्सी में बैठे हुए ऐसे घबरा रही थी मानो उसने जीवन में बहुत बड़ा अपराध कर लिया हो, उसके पास भले नजरें नहीं थी लेकिन मेरे भीतर इतनी हिम्मत नहीं रही कि मैं उससे नजरें मिला पाऊं। पहला सवाल करते ही वह बुरी तरीके से झेंप गई और उठकर जाने को हुई लेकिन पास में बैठी एक लड़की ने उसे बैठाकर रखा, मन तो कर रहा था कि काम छोड़कर वहाँ से उठकर वापस चला जाऊं। मैंने सोचा कि ये किस तरह की समाजसेवा है? अगर इसे ही समाजसेवा कहा जाता है तो ऐसी समाजसेवा को हमेशा के लिए बंद हो जाना चाहिए, बंद हो जानी चाहिए ऐसी समाजसेवी संस्थाएँ जो सरकारी तंत्र के लिए महज सेफ्टी वाल्व का काम करती हैं। 
डेवलपमेंट सेक्टर, एनजीओ, समाजसेवी जो भी कह लें। असल मायनों में इनके लिए हर समस्या एक अवसर होती है, ताकि उसको भुना सकें। ( कुछ छुटपुट संस्थाएँ अपने सीमित संसाधनों के साथ तमाम दुश्वारियाँ झेलते हुए सचमुच लोगों के लिए काम कर रही हैं, उनके‌ प्रति सच्ची सहानुभूति है, उम्मीद करता हूं कि वे अपने आपको इसमें अपवाद के रूप में देखेंगे ) आप वर्षों तक भ्रम में रह सकते हैं कि ये लोगों की बेहतरी के लिए काम करते हैं, समाधान के लिए काम करते हैं। नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, असल में ये समाधान के सारे रास्तों को बंद करने का काम‌ करते हैं, लोगों के भीतर पनप रहे असंतोष को, अंदर के आंदोलन के प्रवाह को धीमा करते हैं और ऐसा करने के लिए लोगों को खूब जलील करते हैं, उनकी मनोस्थिति उनके दुःख उनकी पीड़ा पर गहरी चोट करते हुए अमानवीयता की हद तक अपमानित करते हैं। बाढ़, आपदा, चक्रवात हमारे लिए शोक का विषय होता है, इनके लिए यह शेयर मार्केट में आए उछाल की तरह होता है। जिन युवाओं में लोगों के लिए, देश समाज के लिए कुछ कर गुजरने की आग होती है, वे बड़ी आसानी से इनकी चपेट में आ जाते हैं और ये संस्थाएँ इनकी सारी जीवनी ऊर्जा सोख लेती हैं और पता भी नहीं चलने देती है। खैर..कहने को ऐसी बहुत सी बातें हैं लेकिन यहीं विराम देता हूं।
नोट : माहवारी संबंधी जागरूकता कार्यक्रम सेमिनार आदि का ज्ञान न देवें, हमको आपकी नियत पता है।


4 comments:

  1. इस सम्बंध मे शहर से ज्यादा गांव के लोग समझदार होते है , वे इस अवस्था मे अपने आप को आस पास से वातावरण को कैसे स्वच्छ रखना है , बखूबी जानती है ।--- ये बात बहुत सही लगी.

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  2. Ye to Sahi bat hai bhai. Rural areas me Jo intelligence use hoti hai wo urban area wale nai jante.

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