स्कूल के समय जब हम बहुत छोटे रहे तो हम भी बाइक में घूमने वाले लोगों को देखा करते, सोचते बड़े होकर हम भी सीखेंगे और इस चीज को जिएंगे। काॅलेज जाते तक यह सपना कहीं खो सा गया, शौक के स्तर पर भी किनारे ही हो गया। फिर एक दिन बाइक आ गई, इसलिए नहीं कि कोई बहुत लगाव या शौक था, बस इसलिए कि घूमने के लिए एक माध्यम चाहिए था। तो बाइक अभी भी एक माध्यम भर है।
कल भारत घूमने वाली पुरानी फुटेज देख रहा था, एक्शन कैमरे से बनी सड़कों की फुटेज जो 40-50 घंटों से अधिक की होगी, उसे सरसरी निगाह से देख रहा था, एक चीज मैंने उसमें नोटिस किया कि मेरी गाड़ी खाली सड़क में भी लंबे समय तक एकदम सीधी अपनी लेन में चल रही थी, एक भी जगह कहीं गड्ढे या पत्थर के ऊपर गाड़ी नहीं चली, अब अधिकतर सड़कें तो मेरे लिए अनजान ही थीं, उसमें कभी-कभार ऐसा हुआ कि कहीं पत्थर खड्ढे या ब्रेकर आ जाते, लेकिन देखने में आया कि मैंने एक-एक छोटे पत्थर और गड्ढों से खुद का बचाव किया जो अमूमन लोग नहीं करते हैं, मामूली समझते हैं।
आज बाइक को एक साल से अधिक हो चुके हैं, 22 हजार किलोमीटर से अधिक चल चुकी है, कोई समस्या नहीं आई जिसे समस्या कहा जाए, विश्वास मानिए अभी तक एक भी पंक्चर तक नहीं हुआ है, निस्संदेह इसमें बहुत बड़ा योगदान ट्यूबलेस टायर का है, दूसरा पहलू ये कि ऐसी खराब से खराब, दुर्गम सड़कों को नापकर आई कि मैं सोचता था कि आज मेरी गाड़ी तो गई लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।
आखिरी बार जब सर्विसिंग कराई थी तो मैकेनिक ने खुश होकर कहा कि इतने लोग गाड़ी लेकर आते हैं लेकिन आपकी गाड़ी एकदम अलग ही महसूस होती है, गजब मैंटेन करके रखे हो, मैं भी सोचने लग गया कि आखिर मैंने ऐसा क्या खास कर दिया। हाँ ये है कि मैंने अपनी बाइक के साथ किसी प्रकार की हिंसा नहीं की, खुद अपने स्तर पर भी हिंसा करने से परहेज ही किया है शायद वही चीज यहाँ भी आई हो।
भारत घूमकर आने के बाद मैंने एक अपने आटोमोबाइल एक्सपर्ट साथी से कहा कि भाई जापान की इंजीनियरिंग का कोई तोड़ नहीं, वाकई मान गया, तो उसने जवाब में कहा - असल बात वो नहीं है, तू चलाया अच्छे से है, कल इतने सारे फुटेज देखने के बाद यह बात महसूस हुई।
कल भारत घूमने वाली पुरानी फुटेज देख रहा था, एक्शन कैमरे से बनी सड़कों की फुटेज जो 40-50 घंटों से अधिक की होगी, उसे सरसरी निगाह से देख रहा था, एक चीज मैंने उसमें नोटिस किया कि मेरी गाड़ी खाली सड़क में भी लंबे समय तक एकदम सीधी अपनी लेन में चल रही थी, एक भी जगह कहीं गड्ढे या पत्थर के ऊपर गाड़ी नहीं चली, अब अधिकतर सड़कें तो मेरे लिए अनजान ही थीं, उसमें कभी-कभार ऐसा हुआ कि कहीं पत्थर खड्ढे या ब्रेकर आ जाते, लेकिन देखने में आया कि मैंने एक-एक छोटे पत्थर और गड्ढों से खुद का बचाव किया जो अमूमन लोग नहीं करते हैं, मामूली समझते हैं।
आज बाइक को एक साल से अधिक हो चुके हैं, 22 हजार किलोमीटर से अधिक चल चुकी है, कोई समस्या नहीं आई जिसे समस्या कहा जाए, विश्वास मानिए अभी तक एक भी पंक्चर तक नहीं हुआ है, निस्संदेह इसमें बहुत बड़ा योगदान ट्यूबलेस टायर का है, दूसरा पहलू ये कि ऐसी खराब से खराब, दुर्गम सड़कों को नापकर आई कि मैं सोचता था कि आज मेरी गाड़ी तो गई लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।
आखिरी बार जब सर्विसिंग कराई थी तो मैकेनिक ने खुश होकर कहा कि इतने लोग गाड़ी लेकर आते हैं लेकिन आपकी गाड़ी एकदम अलग ही महसूस होती है, गजब मैंटेन करके रखे हो, मैं भी सोचने लग गया कि आखिर मैंने ऐसा क्या खास कर दिया। हाँ ये है कि मैंने अपनी बाइक के साथ किसी प्रकार की हिंसा नहीं की, खुद अपने स्तर पर भी हिंसा करने से परहेज ही किया है शायद वही चीज यहाँ भी आई हो।
भारत घूमकर आने के बाद मैंने एक अपने आटोमोबाइल एक्सपर्ट साथी से कहा कि भाई जापान की इंजीनियरिंग का कोई तोड़ नहीं, वाकई मान गया, तो उसने जवाब में कहा - असल बात वो नहीं है, तू चलाया अच्छे से है, कल इतने सारे फुटेज देखने के बाद यह बात महसूस हुई।
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