Friday, 22 October 2021

Gurpreet singh sangha on Farmers protest

 Gurpreet Singh Sangha take on Farmers Protest -

ओ बात सुनो बड़े फन्ने खाँ जी।
ये बदमाशी, ये स्वाग, ये दम्भ, ये अकड़, ये गुरूर, ये मैं, ये हम, ये सब घर पे छोड़ दो।
इस किसान आंदोलन की ज़रूरत पंजाब, हरियाणा, यूपी, राजस्थान के किसानों को है। 
ना कि, इस आंदोलन को इन सब के किसानों के स्वार्थों की।
जब देखो कोई ना कोई एक टेढ़ा चलता है।
कोई कहता है "यूँ हुआ तो असीं पंजाब वापस चले जायेंगे, अगर हमारे सिस्टम नहीं माने"
हरियाणे वाला ने कहा "ये पंजाब वालों का यूँ नहीं चलेगा, इब हम ना सपोर्ट करते फेर इनको"
यूपी वाला भी बोल देता है "आखिर कर, हम जुड़ें हैं साथ में, लेकिन म्हारे हिसाब से चलियो, आजकल नेता हमारा टॉप है"
बात सुनो कान खोल के।
सरकार भूस भर दे गी, अगर अलग होकर लड़े तो।
लफ़्फ़ाज़ी छोड़ोगे तो खुद ध्यान आएगा कि पिट चुके हो अलग अलग लड़कर, अलग अलग वक़्त पर। रेल बनाई है सरकारों ने तुम्हारी वक़्त वक़्त पर।
कोई हरियाणे वाला पंजाब के लिए नहीं, कोई यूपी वाला हरियाणे के लिए नहीं और ना ही पंजाब वाला यूपी के किसान के लिए लड़ रहा है। सबकी लड़ाई अपने जायज़ हकों के लिए है।
किसी का किसी पे कोई एहसान नहीं है। सबको अपनी ज़मीन की, अपनी कमाई की, अपनी ग़ैरत/इज़्ज़त की, अपनी पुश्तों की ग़ुलामी की फिक्र है। 
लड़ सब अपने लिए रहे हैं, लेकिन वक़्त वक़्त पर एहसान ऐसा करते हैं, की आंदोलन किसी ब्रह्मकुमारियों का था, और कोई महान सेवा कर दी इन्होंने।
उन वालों ने न्यू कहा, उन वालों ने ये क्यों कहा, इन वाले तो ये ना बोले, हमारे यहां तो यूँ नहीं होता। हमारे रिवाज़ तो अलग हैं। 
आधा वक़्त यही रंडी रोने चलते हैं।
किस ने कहा है तुम सब "एक" हो? ज़बरदस्ती के?
"तुम एक नहीं हो, लेकिन सब एक जैसे हो। तुम्हारे रिवाज़ बोली अलग हैं, लेकिन तुम्हारे हक़ एक हैं। तुम्हारे धर्म चाहे अलग हैं, लेकिन खून एक है। लोकल मुद्दे चाहे कई अलग भी हों, लेकिन बड़ी लड़ाई एक है/एक से ही है।" 
ये फ़र्क़ समझो मूढ़ मति वालो। 
We are different but we r the same. We are fighting a common enemy. Our interests are common.
जाना है तो जाओ। तुम्हारी मर्ज़ी।
खिंड जाओ, बंट जाओ, कुएं में पड़ो।
याद रखना तुम्हारे बच्चों से जूते चटवाएँगे ये सेठों के बच्चे। नीली वर्दियां पहन के तुम्हारे बच्चे ग़ुलामी करेंगे लालाओं की। उस दिन बस याद करना महाराजा रणजीत सिंह, महाराजा सूरजमल, बिरसा मुंडा को। उस दिन बाइसेप दिखाना अपने, फ़िर पता चलेगा।
हद है यार। सबको पता है, सबको समझ है कि ये आखिरी स्टैंड है। 
फिर भी कोई कांड / गलती होते ही फिर राड़ शुरू कर देते हो, बजाए की एक मिनट में मिट्टी डाल कर आगे बढ़ने के।
फर्क समझो घटनाओं में और एक निरंतर आंदोलन में।
आन्दोलन में हज़ारों घटनाएं रोज़ होती हैं/होंगी। अच्छी भी होंगी, बुरी भी होंगी।
फर्क समझो किसी व्यक्ति में या आंदोलन में।
आंदोलनों में लाखों छोटे बड़े व्यक्ति आएंगे/जाएंगे। अच्छे भी आएंगे, बुरे भी आएंगे। क्योंकि आने तो अपने समाज से हैं ना? चाँद से तो आएंगे नहीं, जो सभी दूध के धुले आएंगे।
ये जानते हुए भी तुम किसी घटना/किसी व्यक्ति के कारण मोर्चा छोड़ने के तरीके सोचोगे/धमकियां दोगे?
एक इन पंजाब वाले धर्म प्रचार वालों का समझ नहीं आता। खुश तुम बहुत होते हो, जब कोई यहां सिख धर्म में रूचि दिखाता है, लेकिन आज तक तुमने एक कैम्प नहीं लगाया, जहां धर्म और कट्टरवाद में फर्क समझाएं हों।
फिर जब लंपट बाबा अमन जैसे, लोगों को बरगला लेते हैं, उल्टे सीधे काम में फंसा देते हैं, फिर रोते हो "पंथ खतरे में है।"
उस पर ये हमारा SKM भी माशा-अल्लाह है। मानवीय अत्याचारों की वजह से आप लाख कोसो तालिबान को, लेकिन वहां अफ़ग़ानिस्तान में अनपढ़ तालिबानियों ने भी बाकायदा एक मीडिया फोरम बनाया, एक स्पोक्सपर्सन बनाया "कि सिर्फ ये बात करेगा मीडिया से। सिर्फ इसकी बात हमारी आधिकारिक बात है।"
स्वीकारो इस बात को की टिकैत को हर कानूनी आरक्षण के पैंतरों की जानकारी ना है, और पंजाब वाले लीडरों की अंग्रेज़ी छोड़ो/हिंदी भी पंजाबी तड़का लगा कर बनती है। क्यों नहीं 11 महीनों में 1 पढ़ी लिखी टीम तैयार करी मीडिया पैनल की?
कारण है "चौधर/सरदारी"। बस माइक मुंह में ठूंसना है, और कैमरा हटने नहीं देना सामने से। ज़िला/तहसील से ऊपर उठे हो लीडरों/अपने रुतबे भी बड़े करो।
और एक बात बताओ। तुम सरकार को फुद्दू समझते हो क्या? क्या वो तुम्हारे रूल्स पर खेलने को बाध्य है?
अभी तो उन्होंने षड्यंत्र से एक दलित मरवाया, विभत्स हत्या करवाई,और इधर शुरू हो गए हमारे कागज़ी शेर "बस करो, बस करो, इससे अच्छा है आंदोलन बंद ही कर दो"
थू है #^$&# है तुमपे 😡
लिख के देता हूँ, वो अगली बार एक लोकल सोनीपत के एक जाट को मरवाएँगे सिखों से। गंदी, क्रूर मौत।
या फिर पंजाब से आती जीप को रोककर मुरथल के पास, कुछ लोकल जाट गाड़ी से निकालकर 2 सिखों को पीट पीटकर मार देंगे।
फिर?
शुरू कर दोगे रुदाली रुदन चूड़ियां तोड़ के? खत्म आंदोलन?
आक थू %^@#*$ है फिर से 😡
क्या इतने सुन्न दिमाग हो तुम लोग, की तुम्हे लगता है कि इस काम के लिए उनके पास हज़ारों सिखों की/ हज़ारों जाटों की लाइन नहीं लगी हुई? 
ग़लतफ़हमी निकाल दो की हर सिख, जाट, किसान, मज़दूर तुम्हारे साथ है। बमुश्किल 50-60% है। इतने ने भी झाग निकाल रखी है सरकार की।
फैक्ट है कि हर तीसरा या चौथा हम में से बिकने तो तैयार है। 
और तुम लगे हो शेखचिल्ली के कबूतर उड़ाने "सुन लो अम्मी मरहूम, यूँ होगा, तभी यूँ होगा।"
आखिर में बस इतना कहूंगा।
खुद के लिए लड़ रहे हो। 
किसी के बाप पे एहसान नहीं कर रहे। 
किसी राज्य का किसी राज्य पर नहीं और किसी जाति/धर्म का किसी दूसरी जाति/धर्म पर कर्ज़ नहीं है और ना ही कोई एहसान है।
और हां, लड़ाई तो अभी और बढ़नी है। 99.99% को तो घर बैठे सेक भी ना अभी तक। बताओ ज़रा एक एक करके, कि क्या क्या खो दिया तुमने, जो लोग दूर बैठे ज्ञान बांटते हैं?
संभल जाओ किसान पुत्रों, पुत्रियों, माताओं, बहनों।
फिर सुनो, ये आखिरी लड़ाई है। और ये लड़ाई सब मांगेगी तुमसे। 
पैसा, पसीना और खून।
चचा इकबाल कह ही गए थे तब हमें कि:
*न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो*
*तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में*
इकठ्ठे रहे तो ही लड़ेंगे, इकठ्ठे रहे तो ही जीतेंगे ✊

No comments:

Post a Comment