Wednesday, 25 August 2021

छुआछूत जो मैंने देखा -

 दो साल पहले की बात है। हम उस महानगर में जहाँ रहते थे, हमारे कमरे में सफाई करने वाला आया करता, एक दिन सफाई करने वाले का झाड़ू मित्र के पाँव में टच हो गया। मित्र ने सफाईकर्मी से कहा कि झाड़ू की एक सींक चाटो और तोड़कर फेंको, सफाईकर्मी ने घबराते हुए ऐसा किया।

आँखों के सामने ये सब होता देखकर मेरा माथा खराब हो गया, मैंने उस वक्त तुरंत नाराजगी जताई और मित्र को डाँटा भी था। मित्र ने कहा कि घर में यही चलता है, इस परंपरा को नहीं मानूंगा तो मम्मी बुरा मान जाएगी। मैं यह सुनकर कुछ देर के लिए शांत हो गया था।

मुझे अच्छे से याद है इस घटना के कुछ दिन पहले ही हम मित्र के साथ Article 15 नाम की फिल्म देखकर आए थे।


नोट 1 : कुछ लोग कहते हैं कि आजकल जमाना बदल रहा है, अभी का युवा जात पात वाली चीजों से ऊपर उठ चुका है, मैं कहता हूं कहाँ मिलते हैं ऐसे युवा हमें भी बताएँ। अबे भेदभाव का सिस्टम डीएनए में घुसा हुआ है, वो बात अलग है हमको खुद कई बार पता नहीं चल पाता है, कोरोना चला जाएगा, ये नहीं जाएगा, जब तक व्यक्ति पूरी कठोरता के साथ अंदर की ईमानदारी न दिखाए।

नोट 2 : मैं उस सफाईकर्मी के चेहरे में भय की रेखाएँ देख सकता था। उसकी उम्र महज 20 वर्ष के आसपास रही होगी, इसी पीढ़ी का है, फिर भी उसे बचपन से सिलेबस समझा दिया जाता है कि तुम नीच पिछड़े हो, तुम्हें फलां चीज नहीं छूनी है, फलां जगह नहीं जाना है, झाड़ू किसी उच्च वर्ग के व्यक्ति के पैरों में लग जाए, भले उस झाड़ू से दुनिया जहाँ की गंदगी साफ की हो, उस झाड़ू की सींक चाटनी है। शिक्षा की मूलभूत सुविधा भले उसे न मिल पाती हो लेकिन जिंदा रहने के लिए क्या क्या नियम पालन करना है, ये सब वह बड़ी जल्दी सीख जाता है, समाज उसे सीखा देता है।

नोट 3 :  जिस मित्र ने ऐसा किया, वो भी सिलेबस ही फाॅलो कर रहा था, वही सिलेबस जो उसने इतने सालों में घर में ही रहते हुए सीखा है, यह सब जानने सीखने के लिए उसे कहीं बाहर जाना नहीं पड़ा, उसी के परिवार वालों से उसने सीखा। लेकिन व्यक्ति के सामने ये भी एक बड़ी समस्या आ जाती है कि वह अपने ही घर की इस तथाकथित परंपरा का, माता-पिता की उस सोच का, जिसे वे बचपन से ढोते आ रहे हैं, उसका विरोध आखिर कैसे करे। 

नोट 4 : एक चीज मैंने यह भी देखा कि अमुक सफाईकर्मी के साथ जो खुद उसी की सामाजिक पृष्ठभूमि से आने वाले लोग होते, वे अलगाव महसूस किया करते। ज्यादा बात नहीं करते, दूरी बनाकर रखते। जो अपर क्लास था वो तो क्लियर था ही कि सीधे सींक चाटने को कहना है, जो निम्न में आते वे भी उतने ही बीमार थे। खुद को अलग महसूस करते। सफाईकर्मी पता नहीं क्यों मुझसे मिलते ही बड़ा खुश हो जाता, बहुत सहज महसूस करता, ऐसी सहजता वह किसी और के साथ कभी महसूस नहीं करता था। 

नोट 5 : मुझे उस दिन एक बात समझ आई, उच्च मध्य निम्न कैसी भी आपकी सामाजिक पृष्ठभूमि  हो, अमीर मध्यम गरीब कैसी भी आर्थिक पृष्ठभूमि से आप आते हों, अपने आपको प्रोग्रेसिव सोच का मानना और प्रोग्रेसिव हो जाना इन दोनों चीजों में जमीन आसमान का अंतर होता है।

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