हरियाणा कैडर के आईएएस आयुष सिन्हा के खिलाफ जितने भी सेवानिवृत्त अधिकारियों ने कार्यवाई की माँग की है, उनमें एक भी आईएएस नहीं हैं, सारे के सारे आईपीएस हैं। दोनों लबी के बीच जो तनातनी चलती है, वह भी ऐसे मौकों के बीच खूब देखने को मिलती है। इसमें एक आईएएस के हिम्मत की दाद देना होगी जिन्होंने पद पर रहते हुए इस मामले में अपनी प्रतिक्रिया दी है कि - " सिविल सेवा की परीक्षा पास करने और सिविल होने के बीच कोई संबंध नहीं है। "
बाकी लोग आईएएस एसोसिएशन से माँग कर रहे कि ऐसे अधिकारियों को वापस बुलाया जाए। अरे भई इस देश के सबसे मजबूत एसोसिएशन से आप यह उम्मीद मत करिए कि वह अपने ही सदस्यों को कमजोर करेगा, उल्टे ऐसे लोगों को एसोसिएशन आगे करता है। क्योंकि जो सबसे बढ़िया लड़ाका होता है वह आईएएस लाॅबी को ही मजबूत कर रहा होता है।
जब भी सरकार को हिंसा करनी होती है और पल्ला झाड़ना होता है वह नवप्रशिक्षित भूखे भेड़ियों को आगे कर देता है। अमूमन शक्ति प्रदर्शन की भूख जिनमें सबसे अधिक होती है, ऐसे भेड़ियों को ही आगे कर दिया जाता है। ऐसे ही एक भेड़िया ये आयुष सिन्हा हैं। इन्होंने प्रोबेशन पीरियड में ही बतौर उपजिलाधिकारी करनाल, हरियाणा में किसानों के ऊपर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज करवाकर जिसमें एक किसान की मृत्यु भी हो गई, अपनी वफादारी बखूबी निभाई है। प्रोबेशन पीरियड को हम बचपन के किसी खेल की तरह समझें जिसमें शामिल बच्चों की झुंड में जो एक कोई बहुत छोटा बच्चा होता है और उसका दूध भात कर दिया जाता है क्योंकि कच्ची उम्र व अनुभव की कमी की वजह से वह खेल के नियमों से अनभिज्ञ होता है, लेकिन देखने में यही आता है कि वह छोटा बच्चा अपनी अनभिज्ञता के बावजूद सबसे अधिक आतंक मचाता है। एक प्रोबेशन पीरियड में गया आईएएस कुछ ऐसा ही होता है, ये कितनी भी गलतियाँ करें, इनका सब कुछ दूध भात होता है, कोई कार्यवाई नहीं होती है।
इसमें कोई शक नहीं कि एक आईएएस बतौर एसडीएम भी एक आईपीएस से अधिक हनक रखता है इसलिए तो देश के युवा को आईएएस यानि जिसे पूछिए कलेक्टर ही बनना होता है, रूतबा ही ऐसा है, उपद्रव मूल्य अथाह हैं, इतने हैं कि आपको भी जानने समझने में ही लंबा वक्त लग जाता है। आप अधिकतर आईपीएस को देखिएगा, इन लोगों को इस बात का मलाल रहता ही है कि थोड़ा रैंक बेहतर होता तो आज एक आईएएस की फटकार नहीं सुननी पड़ती। इसलिए बहुत से चयनित आईपीएस दुबारा यूपीएससी की परीक्षा भी देते हैं ताकि रैंक बढ़िया आ जाए तो सबसे ऊंचाई में चले जाएँ जहाँ आपका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता जैसी ताकत होती है। खुद आयुष सिन्हा पहले 100 रैंक लाकर रैवैन्यू सर्विसेस में थे, फिर दुबारा परीक्षा पासकर आईएएस हुए।
विरोध प्रदर्शन पहले भी हुए हैं, लाठियाँ पहले भी चली है, लेकिन इतनी बर्बरता पहले नहीं हुई। इस बार का मामला पहले से भिन्न है। अंतर भी है, पहले आईपीएस को आगे किया जाता था, इस बार एसडीएम को ही आगे कर दिया गया, सोचिए कौन अधिक हनक रखता है। मैं यह नहीं कह रहा कि प्रोबेशन में आया एसडीएम बड़ा है, लेकिन सरकार को भी पता है कि आईपीएस स्तर के अधिकारी के हवाले से ऐसी बर्बरता की गई तो उस पर सीधे सवाल खड़े होंगे, आईपीएस तुरंत कटघरे में आएगा, और आईपीएस घेरे में आया यानि सरकार भी घेरे में, इसलिए जो आसानी से कटघरे में नहीं आ सकता, उसे साधा गया है। आईपीएस को वैसे भी सामंती अधिकार नहीं होते हैं, आईएएस को होते हैं, आप भाषा से ही फर्क कर सकते हैं। इस मामले में आप देखते रहिए, आयुष सिन्हा पर कोई खास कार्यवाही नहीं होगी, हरियाणा वाले मामला टाइट रखें तो बात अलग है, कुछ संभावना दिख भी रही है, क्योंकि लाठीचार्ज से एक किसान की मौत भी हुई है, तो मामला बहुत अधिक तूल पकड़ चुका है, फिलहाल के लिए साहब को ज्यादा से ज्यादा छुट्टी पर भेज देंगे यानि सस्पेंड करेंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हरियाणा का किसान इतने में मानेगा।
#karnal
#farmersprotest
बाकी लोग आईएएस एसोसिएशन से माँग कर रहे कि ऐसे अधिकारियों को वापस बुलाया जाए। अरे भई इस देश के सबसे मजबूत एसोसिएशन से आप यह उम्मीद मत करिए कि वह अपने ही सदस्यों को कमजोर करेगा, उल्टे ऐसे लोगों को एसोसिएशन आगे करता है। क्योंकि जो सबसे बढ़िया लड़ाका होता है वह आईएएस लाॅबी को ही मजबूत कर रहा होता है।
जब भी सरकार को हिंसा करनी होती है और पल्ला झाड़ना होता है वह नवप्रशिक्षित भूखे भेड़ियों को आगे कर देता है। अमूमन शक्ति प्रदर्शन की भूख जिनमें सबसे अधिक होती है, ऐसे भेड़ियों को ही आगे कर दिया जाता है। ऐसे ही एक भेड़िया ये आयुष सिन्हा हैं। इन्होंने प्रोबेशन पीरियड में ही बतौर उपजिलाधिकारी करनाल, हरियाणा में किसानों के ऊपर बर्बरतापूर्वक लाठीचार्ज करवाकर जिसमें एक किसान की मृत्यु भी हो गई, अपनी वफादारी बखूबी निभाई है। प्रोबेशन पीरियड को हम बचपन के किसी खेल की तरह समझें जिसमें शामिल बच्चों की झुंड में जो एक कोई बहुत छोटा बच्चा होता है और उसका दूध भात कर दिया जाता है क्योंकि कच्ची उम्र व अनुभव की कमी की वजह से वह खेल के नियमों से अनभिज्ञ होता है, लेकिन देखने में यही आता है कि वह छोटा बच्चा अपनी अनभिज्ञता के बावजूद सबसे अधिक आतंक मचाता है। एक प्रोबेशन पीरियड में गया आईएएस कुछ ऐसा ही होता है, ये कितनी भी गलतियाँ करें, इनका सब कुछ दूध भात होता है, कोई कार्यवाई नहीं होती है।
इसमें कोई शक नहीं कि एक आईएएस बतौर एसडीएम भी एक आईपीएस से अधिक हनक रखता है इसलिए तो देश के युवा को आईएएस यानि जिसे पूछिए कलेक्टर ही बनना होता है, रूतबा ही ऐसा है, उपद्रव मूल्य अथाह हैं, इतने हैं कि आपको भी जानने समझने में ही लंबा वक्त लग जाता है। आप अधिकतर आईपीएस को देखिएगा, इन लोगों को इस बात का मलाल रहता ही है कि थोड़ा रैंक बेहतर होता तो आज एक आईएएस की फटकार नहीं सुननी पड़ती। इसलिए बहुत से चयनित आईपीएस दुबारा यूपीएससी की परीक्षा भी देते हैं ताकि रैंक बढ़िया आ जाए तो सबसे ऊंचाई में चले जाएँ जहाँ आपका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता जैसी ताकत होती है। खुद आयुष सिन्हा पहले 100 रैंक लाकर रैवैन्यू सर्विसेस में थे, फिर दुबारा परीक्षा पासकर आईएएस हुए।
विरोध प्रदर्शन पहले भी हुए हैं, लाठियाँ पहले भी चली है, लेकिन इतनी बर्बरता पहले नहीं हुई। इस बार का मामला पहले से भिन्न है। अंतर भी है, पहले आईपीएस को आगे किया जाता था, इस बार एसडीएम को ही आगे कर दिया गया, सोचिए कौन अधिक हनक रखता है। मैं यह नहीं कह रहा कि प्रोबेशन में आया एसडीएम बड़ा है, लेकिन सरकार को भी पता है कि आईपीएस स्तर के अधिकारी के हवाले से ऐसी बर्बरता की गई तो उस पर सीधे सवाल खड़े होंगे, आईपीएस तुरंत कटघरे में आएगा, और आईपीएस घेरे में आया यानि सरकार भी घेरे में, इसलिए जो आसानी से कटघरे में नहीं आ सकता, उसे साधा गया है। आईपीएस को वैसे भी सामंती अधिकार नहीं होते हैं, आईएएस को होते हैं, आप भाषा से ही फर्क कर सकते हैं। इस मामले में आप देखते रहिए, आयुष सिन्हा पर कोई खास कार्यवाही नहीं होगी, हरियाणा वाले मामला टाइट रखें तो बात अलग है, कुछ संभावना दिख भी रही है, क्योंकि लाठीचार्ज से एक किसान की मौत भी हुई है, तो मामला बहुत अधिक तूल पकड़ चुका है, फिलहाल के लिए साहब को ज्यादा से ज्यादा छुट्टी पर भेज देंगे यानि सस्पेंड करेंगे, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हरियाणा का किसान इतने में मानेगा।
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