Wednesday, 25 August 2021

चप्पल पहनना इतना भी आसान नहीं?

एक मित्र ने कहा कि आजकल हर कोई ठाठ से चप्पल जूता पहनता है, ये सब बीते जमाने की बात हो गई कि किसी के चप्पल जूते पहनने पर आज के समय में कहीं भेदभाव होता हो। मन किया कि मित्र को कूपमंडूक कह दूं फिर सोचा एक वास्तविक घटना से रूबरू करा देता हूं।

साल भर पुरानी बात है‌, एक आदिवासी इलाके में काम के सिलसिले में गया था। जिस होटल में रूका था वहाँ मेरा कमरा पहली मंजिल में था। उस क्षेत्र के मेरे सहयोगी जिनके साथ मुझे काम‌ पर जाना था, वे मुझसे मिलने आए, जब वे मुझसे मिलने आए नंगे पाँव ही चले आए। मैंने कहा - कोई व्रत है क्या? उनका जवाब आया - नहीं। फिर मैंने पूछा - खाली पाँव क्यों? चप्पल, जूते कहाँ हैं? वे मेरे सवाल को टालने लगे। मैं अड़ा रहा। लेकिन वे भी अड़े रहे और आखिर तक उधर से कोई जवाब ही नहीं आया और यह कहकर वे नीचे उतर गये कि आप तैयार होकर आइए, मैं नीचे इंतजार कर रहा हूं। मैं जब नीचे गया तो देखा कि उनके पैरों में चप्पल था। अगले दिन मैंने देखा कि जब वे मुझसे मिलने आते थे तो अपना चप्पल होटल की पहली सीढ़ी में कदम रखने से पहले ही वहीं कोने में रखकर नंगे पाँव ऊपर आते थे। मेरे बार-बार पूछने पर भी, डांटने के बावजूद भी हमेशा उन्होंने इस बात को हँसकर टाल दिया लेकिन आखिर तक जवाब नहीं दिया कि वे ऐसा क्यों करते हैं। जबकि वे दलित समाज के उत्थान के लिए वर्षों से काम करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता थे, उनकी ऐसी स्थिति देखकर मैं हैरान हो गया।

ये इसी इक्कीसवीं सदी की घटना है, और किसी जंगली इलाके की नहीं बल्कि उस इलाके की घटना है जहाँ से आंध्रप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री चुनकर आए हैं। आज भी उस इलाके में भूखमरी ऐसी है कि जब छोटे बच्चे माँ के सामने भूख को लेकर बिलबिलाते हैं तो माँ अपने बच्चों को गोंद और लाख का सूप पिलाकर शांत करती है। जिन्हें इस सूप के बारे में जानकारी नहीं है उन्हें बताता चलूं कि गोंद या लाख का गरम सूप पी लेने से भूख पूरी तरह मर जाती है।

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