Wednesday, 25 August 2021

आरक्षण वाला - एक गाली

हमारे एक मित्र हैं, आर्थिक रूप से कमजोर, उच्च वर्ग से आते हैं, लेकिन कभी छोटे बड़े का भेद नहीं करते हैं, बहुत ही व्यवहार कुशल। शहर की एक दुकान में कई वर्षों से एक सहयोगी का काम करते हैं, उसी से जीवन यापन करते हैं, लेकिन दुकान का मालिक जो कि मारवाड़ी है, कभी उनको यह महसूस नहीं कराता है कि वह नौकर के रूप में काम करते हैं। 

हमारे एक और मित्र हैं, वे भी सवर्ण और आर्थिक रूप से कमजोर। एक समय में पिता के पास खूब संपत्ति रही, शराब और जुए में सब बर्बाद। मित्र पहले एक नेता के यहाँ ड्राइवर रहे, बाद में सरकारी ड्राइवर हुए, अधिकारियों के साथ खूब मौज काटते हैं, अधिकारी भी खूब सम्मान करते हैं, एकदम राजा वाली जिंदगी जीते हैं, ठोक के कहते हैं कि पंडिताई का प्रिविलेज है बे। जब भी कभी मिलते हैं, अपने पिता को एक बार जरूर गरियाते हैं।

एक और सवर्ण किसान मित्र हैं, बहुत कम जमीन है, विरासत में ही कम मिली। कभी उसी में सब्जियाँ उगाया करते। आजकल मशरूम का बिजनेस करते हैं, मशरूम के धंधे के बाद थोड़ा पैसे का फ्लो बढ़ा है। लेकिन एक बात है, गाँव का करोड़पति नाॅन-सवर्ण भी उन्हें महाराज पांयलाग जरूर करता है। सम्मान में कोई कमी नहीं।

अब जिस चौथे मित्र की बात बताने जा रहा हूं, वे दलित हैं, बहुत ही भले मानुष, बाकी तीन मित्रों की तरह वे भी गरीब परिवार से रहे। लेकिन खूब मेहनत की, खूब पढ़ाई की और कई सारी सरकारी नौकरियाँ पास की, अगर आरक्षण से अलग भी उनका ग्रेड देखा जाए तो अनारक्षित के बराबर ही हमेशा रहे, टाॅप टेन में जगह बनाते रहे। आरक्षित कोटे से परीक्षा न भी देते तो भी अनारक्षित वर्ग से नौकरी ले लेते। राज्य सिविल सेवा की परीक्षा में तीन बार इंटरव्यू तक गये‌। आजकल शायद क्लास टू या क्लास वन आफिसर हो गये हैं। लेकिन आज भी ये उतना ही जातिगत भेदभाव उतनी ही जलालत झेलते हैं जितना आफिसर होने के पहले झेलते थे, अपने सहकर्मियों और यहाँ तक की अपने अधीन काम कर रहे कर्मचारियों के द्वारा भी भेदभाव झेलते हैं। यह सब प्रत्यक्ष मेरा देखा हुआ है। भले वे प्रशासनिक अधिकारी हैं, चाहते तो टाइट कर देते, लेकिन वही है रामनाथ कोविंद से ज्ञानी जैल सिंह जैसी उम्मीद नहीं रख सकते हैं। मुझे लगता है बस पैटर्न बदल जाता है, मात्रा बदल जाती है। एक फर्क यह है कि अब जब अधिकारी बने हैं तो कुछ सुविधाएँ मिलती है उसमें आराम वाला जीवन यापन कर लेते हैं और कभी कभार अधिकारी के टैग तले मिलने वाला झूठा सम्मान भी कुछ जलालत कम कर देता है। 

इतनी योग्यता के बावजूद "आरक्षण वाला" ये एक वाक्य इन जैसे लोगों के लिए आज भी गाली की तरह क्यों इस्तेमाल किया जाता है? इस पर पाठक स्वयं मंथन करें।

#आरक्षण

#independence

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