Wednesday, 25 August 2021

जातिगत जनगणना पर इतना हंगामा क्यों?

2011 की जनगणना में यह तथ्य सरकार के पास है कि आरक्षित और अनारक्षित वर्ग का प्रतिशत कितना है, बस यहीं तक सब सीमित है। अब माँग उठी है कि जब जाति की सच्चाई को हम आए दिन जी रहे हैं तो जातिगत जनगणना हो, आज जातियों में आर्थिक सामाजिक स्थिति कैसी है यह बिना जातिगत जनगणना के बेहतर तरीके से पता करना संभव भी नहीं है। ऐसा तो नहीं है कि यह सिर्फ आरक्षित वर्ग के लिए है, अनारक्षित वर्ग में भी कोई जाति अगर आर्थिक सामाजिक पिछड़ेपन का दंश झेल रहा है, तो वह भी सामने आना है। एकदम सीधी सपाट बात है, इसमें कोई समस्या वाली बात ही नहीं है। और अगर किसी को लगता है कि सब ठीक है, समाज में सामाजिक समता आ चुकी है, तो लिटमस टेस्ट ही हो जाना है, इसमें कौन सा किसी के ताऊ के घर से अतिरिक्त रूपये लगने हैं। 

जब जाति को हम आए दिन जीते हैं। हमारे फेसबुक‌ प्रोफाइल में लाइक कमेंट करने वालों से लेकर हमारे पर्व त्यौहार, शादी, दशकर्म आदि में भी जब हमारी जाति विशेष के लोग ही बड़ी संख्या में शिरकत करते हैं, जब हम जाति को इतना खुलकर जीते हैं तो जाति के खुलकर सामने आने से क्यों ही कोई समस्या होनी चाहिए।

हिन्दू समाज की अपनी भी इसमें बड़ी समस्याएँ हैं। जैसे संख्याबल की बात आने पर मुस्लिमों को तो दस बच्चे पैदा करने का लांछन लगा दिया जाता था। लेकिन क्या यहाँ ऐसा करना संभव है। एक कोर हिन्दू अपने ही धर्म के लोगों की निष्ठा पर कैसे सवाल उठाए। सोचकर देखिए अगर जाति आधारित जनगणना का विरोध करने‌ वाला वर्ग यह कह दे कि आरक्षित वर्ग के लोगों की प्रजनन क्षमता बेहतर है, इसलिए भी जातीय जनगणना नहीं होनी चाहिए। अब जो भक्ति और आध्यात्म का चौतरफा कारोबार चल रहा है, जो हिन्दुत्व का बिगुल बजाया जा रहा है, उसमें ऐसी दरार पड़ जाएगी कि संभालना मुश्किल है, कोर हिन्दुत्व का झंडा बुलंद करने वाले कभी इतना बड़ा खतरा नहीं उठाएंगे। एक तथ्य यह भी कि अनारक्षितों ने अभी तक आरक्षितों को हिन्दू माना ही नहीं है। अब इसमें उस बात पर नहीं जाते हैं कि कालांतर में हिन्दू और मुस्लिमों की संख्या बराबर ही रही, ये बाकी लोगों को संख्याबल बढ़ाने और हिन्दू राष्ट्र वाले कांसेप्ट के लिए जबरन गिरोहबंदी के लिए जोड़ दिया गया‌।

आरक्षित वर्ग को एक तो हिन्दू मानने से इंकार किया जाता रहा है। एक इसमें सबसे मजेदार बात यह कि जहाँ कर्मकांडों की बात आती है, तो उसमें सबसे अधिक आरक्षित वर्ग ही फंसा हुआ है, क्यों फंसा है ये आप देखिए। कांवड़ वाले, जल चढ़ाने वाले, कारसेवा करने वाले, भक्ति की घुट्टी पीने वाले वे तमाम लोग, इन सबका मोह भंग हो गया तो इन मुद्दों को छेड़कर सत्ता कैसे काबिज होगी, यह भी एक बड़ा सवाल है।

जातिगत जनगणना के लिए रास्ता एकदम साफ है। अगर अभी 2021 में नहीं भी होता है तो भी कोई समस्या नहीं। अगली जनगणना यानि 2031 तक इतना इस मुद्दे पर बवाल होगा कि सरकारों के लिए संभालना मुश्किल हो जाएगा। सबसे पहले तो यही सवाल उठेगा कि हिन्दू आखिर कौन हैं, बहुत टूट-फूट होनी है, होनी भी चाहिए।

#castecensus

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