Thursday, 26 August 2021

देवदासी प्रथा -

"देवदासी प्रथा" इतना जैसे ही आप गूगल करेंगे, विकिपीडिया आपको पहली ही लाइन में यही बताएगा कि यह हिन्दू धर्म की प्राचीन प्रथा थी, वर्तमान में बंद हो चुकी है। आगे आप विकिपीडिया के उस लिंक को खोलेंगे, तो मनगढंत बातें ही मिलेंगी। 

जैसे हिन्दू मंदिरों की सेवा के लिए बनाई गई प्रथा थी, वहाँ मंदिर में देवदासियाँ सिर्फ नृत्य संगीत सिखाती थीं, धर्मशास्त्र की शिक्षा देती थी। फिर विदेशी आक्रमणकारी मुगल तुगलक अफगान आदि आए, उन्होंने इन देवदासियों को बुरी नजर से देखा, उनको मंदिरों से उठाकर ले जाते और उनका यौन शोषण करते आदि आदि। 

आगे लिखा गया है हिन्दू समाज ने देवदासी प्रथा को बंद‌ किया, अंग्रेजों के आने से पहले ही यह प्रथा पूरी तरह बंद हो चुकी थी। 

फिर आगे यह भी लिखा है - हालांकि यह प्रथा भारत में पूरी तरह बंद हो चुकी है लेकिन आज भी कुछ लड़कियाँ जिनका शादी का मन नहीं होता वह परमेश्वर को खुद को सौंप देती हैं और परमेश्वर की सेवा करती हैं। 

अंत में लिखा है - कुछ सु-व्यवस्थाएँ समय के साथ और लोगों के पापों के कारण सु-व्यवस्था से कु-व्यवस्था(कुरीति) में बदल जाती है और उन्हीं व्यवस्थाओं में से एक व्यवस्था थी यह देवदासी प्रथा।


मेरे सवाल -


- मुगल क्या अभी भी इस देश में शोषण करने के लिए मौजूद हैं?

- मुगल अब जब नहीं है, लोकतंत्र स्थापित हो चुका है तो आज इनके साथ इस प्रथा के नाम‌ पर यौन शोषण कौन कर रहा है?

- अंग्रेजों के पहले ही जब यह प्रथा बंद हो चुकी है, तो उत्तरी कर्नाटक में जो हजारों की संख्या में देवदासियाँ आज भी नारकीय जीवन जीने को विवश हैं, वे कहाँ से आ गई?

- कहाँ पाई जाती हैं वो लड़कियाँ जो शादी की अनिच्छा से सीधे मंदिरों में जाकर सेवा करने के लिए पहुंच जाती है और खुद को देवदासी बना‌ लेती हैं। और ऐसे बलिदानी स्वभाव की लड़कियाँ सिर्फ एक जाति विशेष तक ही सीमित क्यों हैं?

- देवदासियाँ ईश्वर की आराधना करती थी, आर्थिक रूप से संपन्न होती थी, कला‌ के क्षेत्र में निपुण होती थीं, शास्त्रीय नृत्य संगीत वहीं से होकर आया। इतना गौरवशाली इतिहास रहा, जब सब कुछ इतना ही अच्छा था तो भारत सरकार को 1988 में जाकर इसमें क्यों बैन लगाना पड़ा?

- मत्स्य पुराण, विष्णु पुराण और कौटिल्य भाईसाब के लिखे अर्थशास्त्र में भी देवदासियों का जिक्र है, कहा गया कि उस समय समाज में बहुत समानता थी तो फिर एक जाति विशेष की स्त्रियाँ तब से लेकर अब तक देवदासी बनने को क्यों विवश हैं? क्या विदेशी आक्रमणकारियों ने अनुसूचित जनजाति के लोगों को इस काम के लिए चुना था? क्या मुगल तुगलक वर्ण-व्यवस्था लेकर आए थे?

- कहाँ रहते हैं वे परमेश्वर जिनकी सेवा करने के लिए आज भी एक जाति विशेष की लड़कियाँ देवदासी बनने को विवश हैं?

- क्या परमेश्वर मानसिक शारीरिक रूप से इतने अक्षम थे कि उन्हें अपनी सेवा के लिए देवदासी प्रथा जैसी सु-व्यवस्था निर्मित करनी पड़ी। उसमें भी वे सिर्फ अनुसूचित जनजाति की स्त्रियों को ही देवदासी बनाने का प्रिविलेज देकर बाकी जाति की बालिकाओं के साथ इतना बड़ा भेदभाव कैसे कर गये ?


नोट : जिनको देवदासियों का जीवन कैसा होता है यह जानना हो वह चाहे तो एक बार उत्तरी कर्नाटक के कुछ जिलों में घूमने जा सकता है। आपको एक अकेली लड़की के घर से भाग जाने और फिर कभी वापस न लौटने का कारण भी बेहतर समझ आएगा, समझ आएगा कि आज जो कोई घटना होती है, उसके पीछे कितना लंबा इतिहास जुड़ा होता है, सामाजिक विद्रूपताएँ जुड़ी होती हैं। आपको यह भी समझ में आएगा कि भारत में कुछ इलाके ऐसे भी हैं जहाँ आज भी माता-पिता अपनी बच्चियों को कहीं दूर जाकर इसलिए भी बेच देते हैं ताकि उन बच्चियों को देवदासी ना बनना पड़े। आप छिछले न्यूज पढ़कर देखकर ऐसे माता-पिता को दलाल समझते रहिए।

2 comments:

  1. बेहतरीन सवाल, आपके सवालों का समर्थन करता हूं

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