अभी-अभी,
मेरे कमरे से लगभग 300 मीटर दूर एक चीखती हुई आवाज आई,
एक तो इतनी तेज बारिश और लाइट भी चली गई थी।
कालोनी के बीच रोड में वो आंटी बचाओ पकड़ो जैसा कुछ-कुछ चिल्ला रही थी। हम दोस्त लोग कुछ सेकेंड के लिए सोचने लगे,फिर आव देखा न ताव दौड़ते चले गये। एक पल को आवाज सुन के लगा कि कहीं मर्डर तो नहीं हो गया।हम लोग थोड़ा घबरा भी रहे थे। रात के 9:30 का समय रहा होगा। जो आंटी वहां चिल्ला रही थी उसके पास जाकर पूछे तो बताई कि उनकी बेटी का बैग चोरी हो गया।वे लोग कहीं से लौट कर आ रहे थे.बैग में पैसा,फोन वगैरह बहुत सा कीमती सामान था। शायद कल पेपर में पूरी बात आ जायेगी।
अभी वो चोर गली में भागा है और आंटी बोली कि उनकी बेटी भी चोर के पीछे भागी है।हम लोग भी दौड़ भाग करने लगे। चोर तो मिला नहीं लेकिन उनकी 18 साल की बेटी चोर के पीछे दौड़ते चली गई थी अब उसको लेकर घबराहट होने लगी.आखिरकार वो कुछ देर बाद सुरक्षित मिल गई। उस आंटी की आवाज इतनी तेज थी इतना कंपन था उस आवाज में कि हमको इतनी दूर तक सुनाई दे दिया.लेकिन आसपास के घरवालों को नहीं सुनाई दिया।किसी का दरवाजा तक नहीं खुला। एक घर का गेट खुला था.एक लड़की बाहर थी.मैंने उनको कहा कि 100 नंबर में कृपा करके फोन लगा दो।वो भी दो बार लगाई फिर बोली कि नहीं लग रहा है भैया।मैं बोला कि जब लगे तब बता देना ये घटना।
कुछ देर के बाद पुलिस पूछताछ के लिए आई थी। ये तो हुई पूरी घटना.जो शायद शहरों में अब आम बात हो गई है।
अब सवाल आता है इसका जिम्मेदार कौन?
पुलिस?
नहीं बिल्कुल नहीं ।
लेकिन उस कालोनी में अब कुछ दिन पेट्रोलिंग जरूर होनी चाहिए।और शायद होगी भी।10 मिनट में पुलिस का वारदात की जगह पर आ जाना वाकई अच्छा लगा।
लेकिन जिम्मेदार कौन?
कालोनी के वो लोग ?
हां ये वही लोग हैं जिन्हें अच्छी कालोनी चाहिए,रोड चाहिए..मार्निंग वाक के लिए ठीक-ठीक जगह चाहिए..लेकिन मुसीबत में कोई चिल्लाये तो अनसुना कर देना, इतनी घोर असंवेदनशीलता।
हां इन्हीं लोगों के कारण एक चोर आज पकड़ाते पकड़ाते रह गया।
हम तीन दोस्तों के अलावा और वहां कोई नहीं था।मुझे सच में विश्वास नहीं हो रहा है कि कोई और बाहर क्यों नहीं निकला। अरे सही गलत की बात हटा दो एक मिनट के लिए उसका तो बाद में पता चल जाएगा..लेकिन बाहर निकल के लिए एक मिनट देख तो लेते कि क्या हुआ।
मेरा ये शहर इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है?
आज मेरी उस धारणा को बल मिल रहा है कि जितना बड़ा शहर उतना ज्यादा अपराध।
कम से कम इस मामले में छोटे कस्बे और गांव बहुत अच्छे हैं लोग भले ही जल्दी सो जाते हैं लेकिन रात के दो बजे भी कोई घटना हो तो बस एक आवाज की देर है लोग मदद के लिए उठकर आ जाते हैं। खैर.. कल जाके आप अपने-अपने नुक्कड़ में बहस करके मुझे बताना कि शहर में क्राइम रेट क्यों बढ़ रहा है। और एक बात मैं दावे के साथ कहता हूं कि सामाजिक ताना-बाना टूट रहा है, हम ही लोग तोड़ रहे हैं आज वो आंटी का पूरा परिवार इस समाज से,कालोनी से कटाव महसूस कर रहा होगा।
मैं तो ये सब देख रहा हूं और इन शहरवासियों के मिजाज से आज अच्छा खासा नाराज हूं। खुश हूं उनके लिए जो दो लोग मेरे साथ थे.. मेरे वो दोस्त इतनी तेज बारिश में पहले ही दौड़ते नंगे पांव चले गये..और मैं उनके पीछे चप्पल पहनकर। हां मैं अपने दोस्तों के साथ मिलकर ये कह सकता हूं कि हम लोगों ने आज खुद के साथ न्याय किया है हम तो आज चैन की नींद सोयेंगे।
आप देख लो आप खुद को कहां रखते हो???
कालोनी के बीच रोड में वो आंटी बचाओ पकड़ो जैसा कुछ-कुछ चिल्ला रही थी। हम दोस्त लोग कुछ सेकेंड के लिए सोचने लगे,फिर आव देखा न ताव दौड़ते चले गये। एक पल को आवाज सुन के लगा कि कहीं मर्डर तो नहीं हो गया।हम लोग थोड़ा घबरा भी रहे थे। रात के 9:30 का समय रहा होगा। जो आंटी वहां चिल्ला रही थी उसके पास जाकर पूछे तो बताई कि उनकी बेटी का बैग चोरी हो गया।वे लोग कहीं से लौट कर आ रहे थे.बैग में पैसा,फोन वगैरह बहुत सा कीमती सामान था। शायद कल पेपर में पूरी बात आ जायेगी।
अभी वो चोर गली में भागा है और आंटी बोली कि उनकी बेटी भी चोर के पीछे भागी है।हम लोग भी दौड़ भाग करने लगे। चोर तो मिला नहीं लेकिन उनकी 18 साल की बेटी चोर के पीछे दौड़ते चली गई थी अब उसको लेकर घबराहट होने लगी.आखिरकार वो कुछ देर बाद सुरक्षित मिल गई। उस आंटी की आवाज इतनी तेज थी इतना कंपन था उस आवाज में कि हमको इतनी दूर तक सुनाई दे दिया.लेकिन आसपास के घरवालों को नहीं सुनाई दिया।किसी का दरवाजा तक नहीं खुला। एक घर का गेट खुला था.एक लड़की बाहर थी.मैंने उनको कहा कि 100 नंबर में कृपा करके फोन लगा दो।वो भी दो बार लगाई फिर बोली कि नहीं लग रहा है भैया।मैं बोला कि जब लगे तब बता देना ये घटना।
कुछ देर के बाद पुलिस पूछताछ के लिए आई थी। ये तो हुई पूरी घटना.जो शायद शहरों में अब आम बात हो गई है।
अब सवाल आता है इसका जिम्मेदार कौन?
पुलिस?
नहीं बिल्कुल नहीं ।
लेकिन उस कालोनी में अब कुछ दिन पेट्रोलिंग जरूर होनी चाहिए।और शायद होगी भी।10 मिनट में पुलिस का वारदात की जगह पर आ जाना वाकई अच्छा लगा।
लेकिन जिम्मेदार कौन?
कालोनी के वो लोग ?
हां ये वही लोग हैं जिन्हें अच्छी कालोनी चाहिए,रोड चाहिए..मार्निंग वाक के लिए ठीक-ठीक जगह चाहिए..लेकिन मुसीबत में कोई चिल्लाये तो अनसुना कर देना, इतनी घोर असंवेदनशीलता।
हां इन्हीं लोगों के कारण एक चोर आज पकड़ाते पकड़ाते रह गया।
हम तीन दोस्तों के अलावा और वहां कोई नहीं था।मुझे सच में विश्वास नहीं हो रहा है कि कोई और बाहर क्यों नहीं निकला। अरे सही गलत की बात हटा दो एक मिनट के लिए उसका तो बाद में पता चल जाएगा..लेकिन बाहर निकल के लिए एक मिनट देख तो लेते कि क्या हुआ।
मेरा ये शहर इतना असंवेदनशील कैसे हो सकता है?
आज मेरी उस धारणा को बल मिल रहा है कि जितना बड़ा शहर उतना ज्यादा अपराध।
कम से कम इस मामले में छोटे कस्बे और गांव बहुत अच्छे हैं लोग भले ही जल्दी सो जाते हैं लेकिन रात के दो बजे भी कोई घटना हो तो बस एक आवाज की देर है लोग मदद के लिए उठकर आ जाते हैं। खैर.. कल जाके आप अपने-अपने नुक्कड़ में बहस करके मुझे बताना कि शहर में क्राइम रेट क्यों बढ़ रहा है। और एक बात मैं दावे के साथ कहता हूं कि सामाजिक ताना-बाना टूट रहा है, हम ही लोग तोड़ रहे हैं आज वो आंटी का पूरा परिवार इस समाज से,कालोनी से कटाव महसूस कर रहा होगा।
मैं तो ये सब देख रहा हूं और इन शहरवासियों के मिजाज से आज अच्छा खासा नाराज हूं। खुश हूं उनके लिए जो दो लोग मेरे साथ थे.. मेरे वो दोस्त इतनी तेज बारिश में पहले ही दौड़ते नंगे पांव चले गये..और मैं उनके पीछे चप्पल पहनकर। हां मैं अपने दोस्तों के साथ मिलकर ये कह सकता हूं कि हम लोगों ने आज खुद के साथ न्याय किया है हम तो आज चैन की नींद सोयेंगे।
आप देख लो आप खुद को कहां रखते हो???
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