मेरे लिए अभी भी यकीन करना मुश्किल हो रहा है, आपने इतना प्रोत्साहित किया इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया सर,
साथ ही गुरू पूर्णिमा की बधाई।
आज मैं वही लिखूंगा जो नहीं लिखा गया।
पता नहीं आपको याद है कि नहीं लेकिन आप जब इतिहास पढ़ा रहे थे तो आपने एक बार गांधीजी का उद्धरण दिया था कि गांधीजी दातौन करने के बाद उस दातौन को एक जगह साल भर इकट्ठा करते थे फिर उससे खाना पकाने लायक लकड़ी इकट्ठा हो जाती थी।
ये बात इसलिए याद है क्योंकि मैंने इस बात को दिल में उतार लिया।
आगे चलते हैं, आपने नेपोलियन के बारे में एक प्रसंग बताया था कि वो क्यों अकेले एक बंद कमरे में खाना खाता था, उस प्रसंग से भी मैंने बहुत कुछ अपनी जरूरत के मुताबिक समेट लिया। और ये काफी हद तक सच है कि किसी के साथ खाना खाने बैठ जाओ तो उसके घर के संस्कार मालूम हो जाते हैं।
आगे-
उस समय हमारा कारवां महाजनपद काल में था,उन दिनों प्रधानमंत्री का एपिसोड काफी चर्चित हुआ करता था,आपने कहा था कि चाणक्य भी देख लिया कीजिए..मैंने शुरू से देखना शुरू किया..ईमानदारी से कहता हूं 38 एपिसोड तक लगातार देखा हूं, विष्णुगुप्त का जीवंत किरदार आज भी आंखों में झूलता है।
अब बात आती है मैप की- याद होगा आपको,दीवार में कोई मैप चिपका है तो वो दीवार के कोनों के समानांतर/लंबवत् ना हो तो कितना अटपटा लगता है, हां आपकी तरह मुझे भी बिल्कुल यही लगता है।
ये छोटी सी बात सिर्फ मैप ठीक करने तक की ही नहीं बल्कि परफेक्शन की है।जिसे हम जिंदगी के हर पड़ाव में लेकर चलना जरूरी समझते हैं।
इतिहास की पहली क्लास पहला टापिक पहला पेज..शुरूआत हुई थी वो भी रेनेशां से।
आज मैं अंत भी इसी शब्द से करता हूं,मेरे लिए ये सारे उध्दरण ही रेनेशां है।
आज मैं वही लिखूंगा जो नहीं लिखा गया।
पता नहीं आपको याद है कि नहीं लेकिन आप जब इतिहास पढ़ा रहे थे तो आपने एक बार गांधीजी का उद्धरण दिया था कि गांधीजी दातौन करने के बाद उस दातौन को एक जगह साल भर इकट्ठा करते थे फिर उससे खाना पकाने लायक लकड़ी इकट्ठा हो जाती थी।
ये बात इसलिए याद है क्योंकि मैंने इस बात को दिल में उतार लिया।
आगे चलते हैं, आपने नेपोलियन के बारे में एक प्रसंग बताया था कि वो क्यों अकेले एक बंद कमरे में खाना खाता था, उस प्रसंग से भी मैंने बहुत कुछ अपनी जरूरत के मुताबिक समेट लिया। और ये काफी हद तक सच है कि किसी के साथ खाना खाने बैठ जाओ तो उसके घर के संस्कार मालूम हो जाते हैं।
आगे-
उस समय हमारा कारवां महाजनपद काल में था,उन दिनों प्रधानमंत्री का एपिसोड काफी चर्चित हुआ करता था,आपने कहा था कि चाणक्य भी देख लिया कीजिए..मैंने शुरू से देखना शुरू किया..ईमानदारी से कहता हूं 38 एपिसोड तक लगातार देखा हूं, विष्णुगुप्त का जीवंत किरदार आज भी आंखों में झूलता है।
अब बात आती है मैप की- याद होगा आपको,दीवार में कोई मैप चिपका है तो वो दीवार के कोनों के समानांतर/लंबवत् ना हो तो कितना अटपटा लगता है, हां आपकी तरह मुझे भी बिल्कुल यही लगता है।
ये छोटी सी बात सिर्फ मैप ठीक करने तक की ही नहीं बल्कि परफेक्शन की है।जिसे हम जिंदगी के हर पड़ाव में लेकर चलना जरूरी समझते हैं।
इतिहास की पहली क्लास पहला टापिक पहला पेज..शुरूआत हुई थी वो भी रेनेशां से।
आज मैं अंत भी इसी शब्द से करता हूं,मेरे लिए ये सारे उध्दरण ही रेनेशां है।
यह कितना अच्छा लिखा है आपने। नेपोलियन खाना अकेले बैठ कर खाता था, यह तो चलो ठीक है किन्तु किसी के घर के संस्कार उसके साथ खाना खाने बैठ जाओ तो मालूम हो जाते हैं :o यह अलग ही बात हूई बल।
ReplyDeleteखैर,रेनेसां।। ❤
बहुत सूक्ष्म बात कह दी आपने। बहुत शुक्रिया।
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