सन 2012,
ठंड का महीना,
मैं रोज की तरह सरस्वती नगर से लोकल ट्रेन पकड़ के कालेज के लिए निकला...वो लड़का हमेशा की तरह आज फिर मिला, कितना चपल था वो, वो लोकल ट्रेन में लोगों से मिलता हर किसी से बात कर लेता कुछ मिनटों में ही घुल-मिल जाता आसपास के लोगों का ध्यान न चाहते हुए भी उसकी बातों में चला जाता...मैं तो बस यही देखता रह जाता था कि आज तो इसके आसपास सब शांत लोग बैठे हैं आज देखता हूं कैसे सबसे बातचीत करता है।
अचानक से एक वृध्द ने जोर से छींक मारी उसमें उसने इतना बेजोड़ संवाद स्थापित कर दिया..छींक मारने का वो ऐसा वर्णन करेगा मैंने सोचा भी नहीं था..मैं आज फिर उससे पराजित हो चुका था और मेरी उससे दोस्ती भी हो गयी थी।
वो अपने संवाद से सबका दिल जीत लेता था लेकिन आज, आज पता नहीं क्या हुआ उसके चेहरे की आभा गायब थी।
आज वो शांत समुद्र की भांति प्रतीत हुआ।
मैं ये सब देख रहा था जब नहीं रहा गया तो पूछ लिया- क्या भाई आज बड़े सीरियस मोड में हो ?
उसने कहा -कुछ नहीं सर बस ऐसे ही।
मैंने कहा - ऐसा क्या हो गया मैं भी जानूं।
वो - क्या बताऊं कुछ समझ नहीं आ रहा है।
मैं - बता दे दोस्त मैं कौन सा तेरे कालेज का हूं वो - चलो ठीक अपने तक ही ये बात रखना।
मैं - ठीक है बता तो क्या हुआ?
वो - आप कल 4:35 वाली लोकल से आये क्या?
मैं - हां भाई क्यों क्या हुआ?
वो - कल मेरी ट्रेन छूट गयी थी।
मैं - अबे हां कल लोकल टाइम पे थी।
वो - हां तो मैं पावर हाउस से लिफ्ट लेके आया रायपुर।
मैं - अच्छा।
वो - कल गजब हो गया सर एकदम दिमाग फ्यूज हो गया है।
मैं - बोल क्या हुआ।
वो - मैं एक कालेज के अपने सीनियर के साथ चरोदा तक आया.वहां से एक अंकल से लिफ्ट लिया.उम्र होगी 40-50.एक्टिवा में था।
अपना क्या है सफर में लोगों से बात करने की आदत है वो अंकल पूछने लगे कि कहां पढ़ते हो क्या करते हो?
मैं बता दिया।
फिर पता है वो क्या बोले,
बोलते हैं और लड़की नहीं है क्या क्लास में।
मैं बोला कि अपने ब्रांच में लड़कियां ना के बराबर रहती हैं।
फिर वो बोला कालेज में कोई गर्लफ्रेंड नहीं है क्या तुम तो अभी यंग हो यार।
मैं बोला - नहीं अंकल नहीं है,दोस्ती यारी है बस कुछ लोगों से।
अरे आजकल तो फ्रेंड्स में ही हो जाता है।
वो अंकल ऐसा बोला और साथ में गाड़ी चलाते हुए मेरे जांघ को सहलाने/थपथपाने लगा।
मेरा तो दिमाग खराब हो गया।
एक तो वो बाइपास में चला रहा था.कुम्हारी पहुंचने वाले थे.
उसका हाथ बार बार मेरी जांघ में और फिर अजीब अजीब सवाल 'कभी किए हो किसी के साथ' ये वो..।
मैं कुछ भी कुछ बोलके टालने लगा।
फिर मैं बोला कि अंकल रूको तो जोर से लग रही है।
वो रोका मैं फिर बाइपास से इधर रोड पे आ गया,अपना पानी का बोटल हल्का सा खोला और गालियों के साथ उसके मुंह पे दे मारा जोर का।
फिर कुम्हारी से बस पकड़ के रायपुर आया।
वो इतना बताने के बाद थोड़ा रूका,
आज मैंने उस लड़के को हारते देखा,संवाद में भी और जीवन के अनछुए इन पहलुओं से भी।
लोकल ट्रेन की सरसरहाट की आवाज तो मेरे कानों से गायब ही हो गयी थी, मैं उस लड़के की बातों में लीन था।
मैं मन में सोच रहा था कि आज उसके आत्मविश्वास को गहरी ठेस पहुंची है।
लेकिन अब उसने जो कहा वो सुनके मैं पूरी तरह से सन्न रह गया।
उसने कहा- अब सोचिए सर ये सब मैं आपको बताया कैसे अजीब लगा न आपको,हां मेरे को भी रात भर यही लगा..सो भी नहीं पाया रातभर..लेकिन पता है एक बात है..सोचो मेरा एक लड़का होते हुए ये हाल है आपका ये सब सुनते हुए ये हाल है.
"सोचो लड़कियों को कैसे लगता होगा"।
मैं भावविभोर हो उठा, उसके ये शब्द, कितना वजन था उन शब्दों में,
मेरा रोम रोम पिघल गया।
वो दिन है और आज का दिन है मैं आज भी उन शब्दों का वजन संभाल रहा हूं।
ठंड का महीना,
मैं रोज की तरह सरस्वती नगर से लोकल ट्रेन पकड़ के कालेज के लिए निकला...वो लड़का हमेशा की तरह आज फिर मिला, कितना चपल था वो, वो लोकल ट्रेन में लोगों से मिलता हर किसी से बात कर लेता कुछ मिनटों में ही घुल-मिल जाता आसपास के लोगों का ध्यान न चाहते हुए भी उसकी बातों में चला जाता...मैं तो बस यही देखता रह जाता था कि आज तो इसके आसपास सब शांत लोग बैठे हैं आज देखता हूं कैसे सबसे बातचीत करता है।
अचानक से एक वृध्द ने जोर से छींक मारी उसमें उसने इतना बेजोड़ संवाद स्थापित कर दिया..छींक मारने का वो ऐसा वर्णन करेगा मैंने सोचा भी नहीं था..मैं आज फिर उससे पराजित हो चुका था और मेरी उससे दोस्ती भी हो गयी थी।
वो अपने संवाद से सबका दिल जीत लेता था लेकिन आज, आज पता नहीं क्या हुआ उसके चेहरे की आभा गायब थी।
आज वो शांत समुद्र की भांति प्रतीत हुआ।
मैं ये सब देख रहा था जब नहीं रहा गया तो पूछ लिया- क्या भाई आज बड़े सीरियस मोड में हो ?
उसने कहा -कुछ नहीं सर बस ऐसे ही।
मैंने कहा - ऐसा क्या हो गया मैं भी जानूं।
वो - क्या बताऊं कुछ समझ नहीं आ रहा है।
मैं - बता दे दोस्त मैं कौन सा तेरे कालेज का हूं वो - चलो ठीक अपने तक ही ये बात रखना।
मैं - ठीक है बता तो क्या हुआ?
वो - आप कल 4:35 वाली लोकल से आये क्या?
मैं - हां भाई क्यों क्या हुआ?
वो - कल मेरी ट्रेन छूट गयी थी।
मैं - अबे हां कल लोकल टाइम पे थी।
वो - हां तो मैं पावर हाउस से लिफ्ट लेके आया रायपुर।
मैं - अच्छा।
वो - कल गजब हो गया सर एकदम दिमाग फ्यूज हो गया है।
मैं - बोल क्या हुआ।
वो - मैं एक कालेज के अपने सीनियर के साथ चरोदा तक आया.वहां से एक अंकल से लिफ्ट लिया.उम्र होगी 40-50.एक्टिवा में था।
अपना क्या है सफर में लोगों से बात करने की आदत है वो अंकल पूछने लगे कि कहां पढ़ते हो क्या करते हो?
मैं बता दिया।
फिर पता है वो क्या बोले,
बोलते हैं और लड़की नहीं है क्या क्लास में।
मैं बोला कि अपने ब्रांच में लड़कियां ना के बराबर रहती हैं।
फिर वो बोला कालेज में कोई गर्लफ्रेंड नहीं है क्या तुम तो अभी यंग हो यार।
मैं बोला - नहीं अंकल नहीं है,दोस्ती यारी है बस कुछ लोगों से।
अरे आजकल तो फ्रेंड्स में ही हो जाता है।
वो अंकल ऐसा बोला और साथ में गाड़ी चलाते हुए मेरे जांघ को सहलाने/थपथपाने लगा।
मेरा तो दिमाग खराब हो गया।
एक तो वो बाइपास में चला रहा था.कुम्हारी पहुंचने वाले थे.
उसका हाथ बार बार मेरी जांघ में और फिर अजीब अजीब सवाल 'कभी किए हो किसी के साथ' ये वो..।
मैं कुछ भी कुछ बोलके टालने लगा।
फिर मैं बोला कि अंकल रूको तो जोर से लग रही है।
वो रोका मैं फिर बाइपास से इधर रोड पे आ गया,अपना पानी का बोटल हल्का सा खोला और गालियों के साथ उसके मुंह पे दे मारा जोर का।
फिर कुम्हारी से बस पकड़ के रायपुर आया।
वो इतना बताने के बाद थोड़ा रूका,
आज मैंने उस लड़के को हारते देखा,संवाद में भी और जीवन के अनछुए इन पहलुओं से भी।
लोकल ट्रेन की सरसरहाट की आवाज तो मेरे कानों से गायब ही हो गयी थी, मैं उस लड़के की बातों में लीन था।
मैं मन में सोच रहा था कि आज उसके आत्मविश्वास को गहरी ठेस पहुंची है।
लेकिन अब उसने जो कहा वो सुनके मैं पूरी तरह से सन्न रह गया।
उसने कहा- अब सोचिए सर ये सब मैं आपको बताया कैसे अजीब लगा न आपको,हां मेरे को भी रात भर यही लगा..सो भी नहीं पाया रातभर..लेकिन पता है एक बात है..सोचो मेरा एक लड़का होते हुए ये हाल है आपका ये सब सुनते हुए ये हाल है.
"सोचो लड़कियों को कैसे लगता होगा"।
मैं भावविभोर हो उठा, उसके ये शब्द, कितना वजन था उन शब्दों में,
मेरा रोम रोम पिघल गया।
वो दिन है और आज का दिन है मैं आज भी उन शब्दों का वजन संभाल रहा हूं।
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