Thursday, 28 July 2022

बहुसंख्य आबादी के बीच छिपे हुए लोग -

हम बहुसंख्य आबादी को हमेशा नजर अंदाज करते हैं और जो एक कोई ऊंचाई को छू लेता है उसे ही सर्वश्रेष्ठ या उसे ही सबसे बड़ा अपराधी मानते हैं। 

जैसे उदाहरण के लिए प्रतियोगी परीक्षाएँ होती हैं, लाखों लोग शामिल होते हैं, बमुश्किल 500 लोगों का चयन होता है, उपस्थित परीक्षार्थियों में से चयनित परीक्षार्थियों का प्रतिशत 0.1 से 0.5% या 1% तक का ही होता है। अब इसमें भी जैसे मोटा-मोटा 50% तो नौसिखिए होते हैं, जो बिल्कुल अगंभीर होते हैं, इनको हटा देते हैं, उसके बाद जो थोड़े कम गंभीर नौसिखिए होते हैं, 25% उनका भी हटा देते हैं, बचे हुए 24% में 10% और लोगों को भी हटा देते हैं जो अपना सर्वस्व नहीं देते हैं, लेकिन इनकी कोशिश भी कोई बहुत खराब नहीं होती है, फिलहाल के लिए इनको भी किनारे कर लेते हैं। अब जो बचे हुए 14% हैं, ये तो पूरी गंभीरता से अपना सर्वस्व झोंक कर लगे होते हैं, यह भी उतने ही योग्य होते हैं, जितने कि वे लोग जिनका चयन होता है, क्या पता उनसे अधिक भी योग्य हो सकते हैं, होते भी हैं, लेकिन चूंकि मामला छंटनी का होता है, अधिक से अधिक लोगों को न लेने का गणित होता है, इसीलिए ये पीछे छूट जाते हैं, इनको इनकी योग्यता का‌ प्रमाण पत्र नहीं मिल पाता है। इसका अर्थ यह तो नहीं कि ये योग्य नहीं होते हैं या मेहनत नहीं करते हैं, नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। 

अब एक‌ अपराधी की बात करते हैं, जो चोरी, डकैती, बलात्कार, हत्या या अन्य किसी तरह का अपराध करता है। बहुत कम ही लोग होते हैं जिनके द्वारा की गई घटना संज्ञान में ली जाती है, उन्हें सजा दी जाती है, हमें बस वही सीमित लोग ही अपराधी के रूप में दिखाई देते हैं। 
- इनका प्रतिशत भी ऊपर लिखे गये प्रतियोगी परीक्षाओं में चयनित परीक्षार्थियों जैसा 1% तक ही माना जाए, बाकी का प्रतिशत हम छोड़ देते हैं। 
- कुछ ऐसे होते हैं, जो किसी कारणवश पुलिस की गिरफ्त में नहीं आ पाते हैं। (14%)
- कुछ ऐसे भी होते हैं जो भले घटना को संपूर्णता में अंजाम न दे पाते हों लेकिन प्रयास पुरजोर करते हैं लेकिन चूक जाते हैं। (10%)
- कुछ ऐसे भी होते हैं जो आजीवन हिंसा के अनेकों छुटपुट घटनाओं को अंजाम देते रहते हैं या प्रयास करते रहते हैं। (25%)
- कुछ ऐसे भी होते हैं जिनके मन में हिंसा नामक बीज हमेशा पैदा होता रहता है लेकिन उसको धरातल में कभी नहीं लाते हैं। (50%)

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