मई जून की भीषण गर्मी और जुलाई अगस्त की बारिश में भी अगर किसी को लगातार घूमना पड़ रहा है तो सोच कर देखिए ऐसे व्यक्ति के जीवन में कितना अधिक तनाव होगा। आप ऐसे व्यक्ति से कहें कि कुछ दिन एकांत में अपने साथ बिता ले तो शायद वह अपने दोनों हाथों से अपने सारे बाल नोंच ले, अपना सर दीवार पर दे मारे या ऐसा ही बहुत कुछ, तो घूमना तो इससे बेहतर ही विकल्प है, इससे तनाव खत्म तो नहीं होता है, हाँ कुछ समय के बस डेट खिसक जाती है। सबके लिए नहीं पर एक जनरल बात कही जा रही कि हमारे अपने भीतर का मानसिक तनाव हमसे क्या-क्या नहीं करवा देता है। इंसान भीतर इतना अधिक तनाव लेकर चल रहा होता है, उस तनाव से खुद को बचाने के लिए वह कुछ तो करता ही है, शांत कहाँ रह पाता है, सहज होकर तो वैसे भी कुछ नहीं होता है।
इसमें देखने में यह आता है कि इंसान तनाव दूर करने के लिए बहुत से अलग-अलग प्रक्रम करता है।
जैसे :
कोई अनैतिक संबंधों को जीता है,
कोई स्क्रीन में गेमिंग सर्फिंग आदि करता है,
कोई शराब कोकेन गाँजा आदि नशीले पदार्थों का सहारा लेता है,
कोई पेशेवर तरीके से कुछ एक खास फिल्मों, किताबों के बीच मशगूल रहता है,
मोबाइल में रील, व्लाॅग, आदि में समय खपाकर खुश होने की जुगत में रहता है,
तो कोई गोयन्का के विपश्यना, सद्गुरू के इनर इंजीनियरिंग या श्री श्री रविशंकर के शिविर का हिस्सा बन जाता है,
ऐसा ही बहुत कुछ होता है।
लेकिन क्या इन सबसे तनाव दूर होता है या और बढ़ता है??
कोई अनैतिक संबंधों को जीता है,
कोई स्क्रीन में गेमिंग सर्फिंग आदि करता है,
कोई शराब कोकेन गाँजा आदि नशीले पदार्थों का सहारा लेता है,
कोई पेशेवर तरीके से कुछ एक खास फिल्मों, किताबों के बीच मशगूल रहता है,
मोबाइल में रील, व्लाॅग, आदि में समय खपाकर खुश होने की जुगत में रहता है,
तो कोई गोयन्का के विपश्यना, सद्गुरू के इनर इंजीनियरिंग या श्री श्री रविशंकर के शिविर का हिस्सा बन जाता है,
ऐसा ही बहुत कुछ होता है।
लेकिन क्या इन सबसे तनाव दूर होता है या और बढ़ता है??
मूल बात तो यह है कि एक झटके में डोपामाइन पा लेने की चाह व्यक्ति के स्वादानुसार कुछ भी करा ले जाती है। इनको वास्तव में तानों या उपहास की नहीं बल्कि बहुत अधिक केयर की जरूरत होती है। अपनी मनोस्थिति को लेकर इतना जागरूक/संवेदनशील होता भी नहीं है कि किसी विशेषज्ञ से परामर्श ले। इसीलिए हमें चाहिए कि एक जिम्मेदार नागरिक की तरह हम खामोशी से सबके भीतरी तनाव का, और उस तनाव से खुद को संभालने के लिए किए जा रहे नशे का, नशे के डोज का सम्मान करें, उनका थोड़ा भी मजाक न बनाएं, सबके जीवन का बराबर सम्मान करते चलें। इससे ज्यादा हम कुछ कर भी नहीं सकते हैं।
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