सरकार चाहती ही यही है कि लोग तरह-तरह के नशे में आकण्ठ डूबे रहें और मूल चीजों को कभी रेखांकित न कर पाएं। काॅलेज की दहलीज में कदम रखने वाला एक युवा जो एक से अधिक प्रेम प्रसंग में हो, उसे लगता है दुनिया उसकी मुट्ठी में है। दो चार दर्जन छात्रों को पढ़ा रहे टीचर प्रोफेसर को इस बात का दंभ रहता है कि दुनिया उनके कहे अनुसार ही चलती है। आफिस या अपना एक चैम्बर संभाल रहे तमाम सरकारी प्राइवेट व्यापारी फलां इनको लगता है कि जिन चंद लोगों के जीवन को ये प्रभावित कर रहे होते हैं, यही दुनिया है। ये सारे लोग अपनी आत्ममुग्धता में मशगूल यह भूल जाते हैं कि ये सरकार नामक संस्था के इशारों पर कठपुतली की तरह नाच रहे होते हैं। ये खुद को नहीं बल्कि सरकार को मजबूत करते हैं और एक नागरिक में रूप में अपनी विचारशीलता गिरवीं रख खुद को बहुत अधिक कमजोर कर रहे होते हैं।
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