Saturday, 16 July 2022

बस्तर के एनजीओधारियों की जमीनी हकीकत -

 एक महाधूर्त नीच जल्लाद सरीखे व्यक्ति को जिसने बस्तर में आदिवासियों का शोषण कर उनके दम पर ताबड़तोड़ अपनी दुकान चलाई, करोड़ों करोड़ों की फंडिंग उठाई, इनके संचालित दुकान में प्रायोजित तरीके से यौन शोषण होता रहा, खैर। ऐसे व्यक्ति को पिछले कुछ दिनों से गाँधी कहा जा रहा है, खूब सोशल मीडिया द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है। 

बस्तर जैसी जगह में जितने भी ये फर्जी एनजीओधारी आदिवासियों के नाम पर अपनी दुकान चला रहे हैं, सबसे पहले तो सबको बैन कर देना चाहिए, आदिवासियों के हितों के लिए सबसे बड़ा कदम पहले तो यही होगा। मजे की बात देखिए कि ये फर्जी एनजीओधारी समाजसेवी लोग कभी माओवादियों का खुलकर विरोध नहीं करेंगे। ये कभी माओवादियों द्वारा की गई बर्बर हिंसा को हिंसा नहीं कहेंगे। माओवादी बर्बरता से आदिवासियों का रेप करे, उनके हाथ पाँव गला काट दे, उनको जिंदा जला दे, आए दिन कितनी भी बर्बरता से हिंसा करते रहें, इनके मुँह से एक शब्द नहीं निकलेगा। क्यों नहीं निकलेगा आप खुद समझदार हैं।

इस बात से इंकार नहीं है कि पुलिस या आर्मी से कोई चूक नहीं हुई, उन्होंने आदिवासियों को हाथ भी नहीं लगाया है ऐसा नहीं कहा जा रहा। लेकिन पुलिस आर्मी ने कभी आदिवासियों के हाथ पाँव गुप्तांग नहीं काटे हैं, पुलिस आर्मी ने कभी आदिवासियों को बर्बरता से जिंदा नहीं जलाया है, पुलिस आर्मी ने कभी आदिवासियों का सुनियोजित तरीके से सिस्टम बनाकर यौन शोषण नहीं किया है, पुलिस आर्मी ने कभी आदिवासियों की संस्कृति को खत्म करने का प्रयास नहीं किया है। 

माओवादियों ने इस जगह में जमकर आदिवासियों का शोषण किया है, हर तरह का शोषण, आप जहाँ तक सोच पाते हैं सोच लीजिए, अभी भी यही कर रहे हैं, उनके नाम‌ पर अपनी दुकान चला रहे हैं। इसीलिए कहीं एक आर्मी का कैम्प बनना शुरू हुआ, बौखलाने लगते हैं क्योंकि शोषण के दम‌ पर जो मौज काटने की दुकान चल रही, उसमें समस्याएँ आनी शुरू हो जाएगी। माओवादियों को अगर इतनी ही आदिवासियों की फिक्र है तो क्या उन्होंने आदिवासियों के लिए दवाईयों, अस्पताल की सुविधा दी, उनको मूलभूत सुविधाएँ दी, उनको क्या शिक्षा के लिए प्रेरित किया, उल्टे इन सब चीजों से वंचित रखा है, इनकी अपनी संस्कृति को धूमिल‌ किया है, किसलिए अपने मौज के लिए, अपने शोषण की पूर्ति के लिए, अपनी दुकान चलाने के लिए, अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए। और बात-बात पर जल जंगल जमीन का ढोंग करते रहते हैं जबकि खेल भोग का है, शोषण का है। जमकर हर तरह का शोषण कर रहे हैं, एक ओर बम‌ लगाकर करोड़ों की फंडिंग उठाते हैं, दूसरी ओर इन तथाकथित समासेवियों की मदद से दो चार आदिवासियों को इसलिए आगे कर देते हैं ताकि वे सरकार आर्मी को रेपिस्ट शोषणकर्ता घोषित करते रहें और मीडिया में यही छाया रहे। ये अभी भी यही करते आ रहे हैं, लेकिन पता नहीं क्यों आँख के अंधे लोगों को यह सब दिखता ही नहीं है। 

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