Saturday, 30 April 2022

संजय "जैसलमेर" जी के नाम पत्र -


                     संजय जी से परिचय कोई दो साल पुराना है, फेसबुक में किसी ग्रुप के माध्यम‌ से हम लोग जुड़े थे। ये अपने नाम‌ के आगे अपने शहर का नाम लगाते हैं, यानि फेसबुक में संजय जैसलमेर लिखते हैं। यही इनके अपने शहर के प्रति प्रेम को, अनुराग को दर्शाता है। मैं जब जैसलमेर घूमने गया था तो इनसे मुलाकात हुई थी। पहली बार ही मिला, बहुत अधिक बात नहीं हुई, फोन पर सुबह बात हुई और दोपहर सीधे खाने में अपने घर उन्होंने बुला लिया। आज के बदलते समय में जहाँ मुद्रा और चकाचौंध लोगों के दिलों दिमाग में हावी है, वहाँ इतना अपनापन, वह भी इतने नि:स्वार्थ भाव से, यह आश्चर्यचकित करता है, अपनी बात कहूं तो मुझे तो परेशान कर जाता है।

                       मेरा परिचय तो उनके लिए एक अनजान का ही रहा, एक ऐसा अनजान जो उनके शहर घूमने के उद्देश्य से गया था फिर भी वे ऐसा महसूस कराते हैं कि वे आपके अपने हैं। यही सच है, उनको जैसलमेर आने वाले मेहमानों की आवभगत करना पसंद है, और यह सिर्फ मेरे अकेले की बात नहीं है, सबके साथ ऐसा करते हैं, यह सब वह मन‌ से करते हैं, खुद को खपा देते हैं, बदले में वे कुछ चाहते नहीं है, यह उनका शौक है। लोगों को एक बार के‌ लिए संकोच हो सकता है कि कोई क्यों हमारे लिए इतना समय इतनी ऊर्जा दे रहा है, कुछ तो मंशा होगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है, इनसे मिलने के बाद सारी शंकाएँ दूर हो जाती है, सारा कुछ ध्वस्त हो जाता है। उनसे एक बार उनके घर में जो मुलाकात हुई, उससे यह भी मालूम हुआ कि उन्हें बेशकीमती पत्थरों को जमा करने का शौक है, अपना कलेक्शन भी उन्होंने दिखाया, मुझे भी कुछ एक पत्थर दे गये, मैंने मना तो किया कि आप ही रखिए। लेकिन वे सब कुछ इतने प्रेम और इतने अपनेपन से कर जाते हैं कि ऐसे में मना करना मुश्किल हो जाता है। हद जुनूनी और ऊर्जावान व्यक्ति हैं, उन्हें अलग-अलग लोगों से मिलना, उनके साथ घूमना, उन्हें घुमाना और वो हरसंभव मदद करना पसंद है जो उनसे हो सकता है, आप थक जाएंगे वे नहीं थकेंगे, उन्हें इस काम में बहुत मजा आता है, इन्हें किसी टूरिस्ट गाइड जैसा न समझा जाए, ये सब कुछ अपने मन से करते हैं और आपको हैरान कर जाते हैं। वे कभी-कभी अपने मन की बात बताते हैं कि जिन्होंने घूमने फिरने को व्यापार बना लिया, उन्होंने आज बुलंदियाँ छू ली लेकिन मैं वैसा ही हूं क्योंकि मेरी मानसिकता वैसी नहीं है, मेरे लिए यह मन के भीतर की चीज है। 

                         भले मैं इनके साथ नहीं घूम पाया, ज्यादा समय नहीं दे पाया लेकिन कम समय में ही मेरा अपना जो अनुभव रहा, उसमें मुझे यह लगता है कि वे एक बहुत ही साफ और नेकदिल इंसान हैं, मैं ऐसे लोगों से मिलना अपनी खुशकिस्मती समझता हूं। मुझे यह भी लगता है कि हमें ऐसे लोगों को संभालने‌ की जरूरत है जो नि:स्वार्थ भाव से बिना बदले‌ में कुछ चाह के लोगों को अपना प्रेम लुटाते रहते हैं, उनकी मदद करते रहते हैं। ऐसे लोगों को हर तरह का प्रोत्साहन मिलना चाहिए। सरकार को और समाज को भी चाहिए कि जिजीविषा से पूर्ण ऐसे व्यक्ति के अनुभवों को प्राथमिकता दी जाए, सम्मान दिया जाए और जो उचित बन पड़े इनके लिए किया जाए।




Wednesday, 20 April 2022

Day 127 of All India Solo Winter Ride -

3 मार्च 2021,
मैं गुजरात सीमा में प्रवेश कर चुका था। गुजरात चूंकि सूखा प्रदेश है, इस वजह से बढ़िया गर्मी पड़ने लगी थी, राजस्थान में तो रात होते-होते ठंडक मिल जाती है लेकिन गुजरात में तो वह भी नसीब होना मुश्किल था। कच्छ का रन होते हुए मैं अहमदाबाद पहुंच चुका था। अहमदाबाद में दोस्त ईशान के घर में दो दिन रूकना हुआ।

ईशान मुझे उत्तराखण्ड में घूमते हुए पहली बार मिला था। जब उसे पता चला कि अहमदाबाद से होते हुए गुजर रहा हूं तो उसने कहा कि मैं उसके यहाँ आऊं और मैं पहुंच गया। ईशान के कुछ और दोस्त भी मिलने वाले थे, उस दिन रात को उसके सब दोस्तों ने मिलकर म्यूजिकल नाइट का प्लान किया हुआ था, एक सितारवादक दोस्त को खास 250 किलोमीटर दूर उदयपुर से बुलाया गया था। ढोलक, सितार, तबला और गिटार के साथ सबने मिलकर जुगलबंदी शुरू कर दी, वहाँ उतने लोगों के बीच बस मैं ही अकेला था जिसे एक भी वाद्ययंत्र बजाना नहीं आता था, इसलिए मैं चुपचाप बैठकर सुन रहा था, वे सब मुझे बार-बार अपना वाद्ययंत्र हाथ में देकर बजाने‌ को कहते और मुझे सहज करते, इस तरह की वैल्यू शायद ही कभी जीवन में मिली हो।

रात भर अलग-अलग भाषाओं के गाना गाने का दौर भी चला, रात के 10 बजे से सुबह के 3 बजे तक हम सब तरह-तरह के संगीत का डोज लेते रहे। ईशान की एक महिला मित्र ने कहा कि मैं तुमसे प्रभावित हूं, हमको इस बात से मतलब नहीं कि तुम कौन सी जगह घूम रहे और कौन सी नहीं, हमारे लिए सबसे बड़ी चीज यह है कि तुम इतने अकेले इतने महीनों से अलग-अलग जगह घूमते हुए जिंदगी को एकदम करीब से जी रहे, जिंदगी जीने के लिए इतना समय निकाल रहे, यह बड़ी बात है और ऐसा कहने के बाद उन्होंने मेरे लिए कोई गाना डेडिकेट किया था, बीच-बीच में ईशान‌ बार-बार मेरे घूमने फिरने के किस्सों अनुभवों को सबसे शेयर करने को कहता रहा, वे बड़े ध्यान से सुनते मानो कोई बहुत कीमती बात हो, मुझ नाचीज के लिए तो यह सब सपने जैसा था क्योंकि वहाँ बैठे अधिकतर लोगों के लिए तो मैं एक गुमनाम अनजान चेहरा भर था। 

काफी देर हो चुकी थी, सुबह के 4 बजने वाले थे, अब हम सब बुरी तरह से थक चुके थे। सोने की बारी आई। मुझे भी खूब थकान लग रही थी। ईशान और उसकी एक खास महिला मित्र जो मेरी भी अच्छी मित्र हैं, वे दोनों एक साथ वहीं जमीन में एक ही बिस्तर पर सोने वाले थे, जबकि ईशान का एक खास लड़का दोस्त जो उसका बिजनेस पार्टनर भी है, उसे दूसरे कमरे में जाने को कहा गया, ईशान ने कहा कि इस कमरे में जो दूसरा बेड है, यहाँ तुम सो जाओ, भले वो मेरा बिजनेस पार्टनर है और मैं तुमसे एक दो बार मिला हूं लेकिन मैं इस मामले में तुम्हारे साथ ज्यादा सहज हूं। 

यह मेरे लिए जीवन का एक बहुत ही अलग अनुभव था, मुझे नहीं पता मुझमें यौन कुण्ठा नाम की चीज कितनी क्या है, लेकिन ईशान का भरोसा देख मुझे भी लगा कि मैं थोड़ी बहुत तो रिश्तों की कद्र करना जानता होऊंगा तभी उसने मेरे लिए इतनी बड़ी बात कही, इतना भरोसा जताया। 

कुछ लोगों को यह सब सुनकर बहुत अजीब लग सकता है कि एक कमरे में मैं एक तरफ अकेला सोया था, और दूसरे बिस्तर में ईशान और उसकी महिला मित्र (दोनों असल में कला संगीत फिल्म के क्षेत्र से जुड़े हैं और दुनिया के दर्जन भर से अधिक देशों में जाकर अपने स्किल के बूते ही जिंदगी जीते हैं और बीच-बीच में भारत आते रहते हैं) आराम से सो रहे थे, मुख्यधारा के समाज के अधिकतर लोगों को यह सब बहुत अटपटा लग सकता है, रिश्तों को एक सीमित खांचे में देखने वालों के लिए समझ पाना संभव भी नहीं है। लेकिन ईशान और उसकी दोस्त को पता था कि मैं किस सोच का इंसान हूं शायद वही एक बात रही कि हमारी इतनी अच्छी दोस्ती बन पाई। उन्हें पता था कि मेरी निगाह खराब नहीं है, मेरे मन में किसी तरह का चोर नहीं है, इतना तो वे दोनों मुझे जानते ही थे इसलिए चंद मुलाकातों के बाद ही मुझे लेकर इतना सहज थे। भारत घूमते हुए मिले यही बेशकीमती रिश्ते ही जीवन की असली कमाई है।

Tuesday, 19 April 2022

मुझमें पूरा भारत बस जाए - एक कविता

मेरे हिस्से आए,
सुदूर हिमालय के चरवाहों जैसी जिजीविषा,
मध्य भारत के जंगलों में रहने वाले आदिवासियों जैसी फुर्ती,
वीरान रेतीले मरूस्थल में रहने वाले बाशिदों जैसी जीवटता,
समन्दर में नाँव चलाते तमिल मछुआरों जैसा अदम्य साहस,
मैं चाहता हूं‌ मुझमें पूरा भारत बस जाए।

Saturday, 16 April 2022

एक स्त्री जब कहेगी अपने मन की बात - एक कविता

सब कुछ कितना अच्छा लगता है,
चारों ओर दिखती है खुशहाली,
परिवार और समाज के सारे फलक,
नजर आते हैं शुध्द और पवित्र।

लेकिन जब कोई बताता है,
अपने जीवन के कटु अनुभव,
जब कोई कह देता है,
अपने मन के भीतर की बात,
तो सारी स्थापनाएँ ध्वस्त होने लगती है।
समाज परिवार रूपी स्तंभ,
रिश्तों के तमाम रूप,
दरिंदगी और नीचता रूपी गाँठो से अलग होकर,
एकाएक टूटने लगते हैं
बिखरने लगते हैं।
लेकिन क्या कोई कह पाता है,
अपने मन के भीतर की सारी बात?
जिस दिन एक‌ स्त्री अपने मन की बात कहेगी,
नदियों का प्रवाह थम जाएगा,
हवाएँ रूक जाएंगी,
सारे जीव जंतु पशु पक्षी,
शर्म से मौन धारण कर लेंगे,
आसमान का रंग फीका पड़ जाएगा,
चारों ओर खामोशी छा जाएगी,
दुनिया कुछ देर के लिए थम जाएगी।

जब हम कहेंगे अपना पूरा सच - एक कविता

दुनिया अधूरेपन की नींव पर टिकी है, 
यहाँ पूरा कुछ भी नहीं होता, 
हम नहीं कहते अपना पूरा सच, 
हम थोड़ा सच कहते हैं,
या कभी कुछ ज्यादा कह लेते हैं,
ताकि धरती घूमती रहे, 
शांति, स्थिरता कायम रहे,
चीजें जस की तस बनी रहें।

हम‌ जिस दिन उखाड़ने लगेंगे सारे गड़े मुर्दे,
बता देंगे जीवन के सारे कटु और वीभत्स अनुभव,
हम कहने लगेंगे जिस दिन अपना पूरा सच,
तमाम जड़ें हिल जाएंगी,
कितनी स्थापनाएँ ध्वस्त होंगी,
कितने रिश्ते टूट जाएंगे,
हम‌ अकेले पड़ जाएंगे,
धरती थर-थर काँपने लगेगी।

Monday, 11 April 2022

Fake Positivity on social media -

If you've been alive for atleast a few years, you will know that people lie, and if you have a social media account, you will feel that the infulencers lie even more, not all of them but lying, misleading, hiding the truth has now become the intrinsic part of social media these days.
People lie about their lives,
people are misleading about their intentions,
and people hide what they're going through.
You see, many social media influencers upholding the image that they have created for themselves and make a lot of money is far more important than honesty or authenticity.
Now everyone who shares on social media is allowed to keep certain aspects of their life private but where it becomes problem is when those who preach positivity and profit of you believing they are super happy and positive are not actually as happy as positive as they want you think they are.
The way that positivity is promoting these days is very unhealthy and harmful. Many influencers who people look upto and model their lives and ways of thinking after act like as long as you are positive everything's gonna be alright and all you problems will just disappear.
" Stop focusing on the negatives, look at the positives "
This can definitely be helpful but it sends a very subliminal message that if we stop thinking about our problems, they will go away and that's how we should deal with issues.
In reality, disregaring our unpleasant emotions by trying to " just think positively " doesn't help us understand them and usually leads to more unhappiness because we are just burying those emotions deeper down within.
There are countless practices that can improve our lives, like ; reciting affirmations, expressing gratitude and having a more positive mindset. But just doing these things does not get to the root of the problem. these are more of just a temporary way to improve our current moment. 
if we want long term solutions, we actually have to do the opposite.
we need to allow ourselves to think about and feel those emotions, we need to find where they stem from and identify what is causing them. we need to stop looking at unpleasant emotions as "good" and unpleasant emotions as "bad". both serve a purpose in our lives, both are equally important to our growth and well being.
Our negative thoughts and feelings are our teachers and if we choose not to hide from them, they can be a way better to understand ourselves and our current needs.
Being happy 24/7 is ofcourse impossible. we all feel unpleasant emotions and we shouldn't be afraid of them or try to stop them. instead if we allow ourselves to feel and understand them, we can come to a place where they don't arise as frequently or strongly to begin with.
Influencers who create content about positivity feel all the same emotions that anyone else does and its okay if they don't wanna talk about certain things in their lives but we have to realize that just because someone looks happy, doesn't mean they are happy. Just because someone is always telling is that they are a super positive person, doesn't mean that they are telling us the truth.
It is very easy to fake who you are and how you're feeling through photos and videos that are usually just an edited highlight reel of your life. Often, these influencers are dealing with their own emotional problems, that they may feel like they can't talk about because it would affect their reputation or how people view their advice or they may feel like people wouldn't be as attracted to their content if they weren't always upbeat and bubbly.
Faking positivity on social media is far from uncommon so it's important to take everything we see with a grain of salt. It's ofcourse fine to look upto influencers for inspiration, but know that they have it all figured out. they may struggle with things that they don't share online. they may not always be as positive and happy as they want you to believe and no matter how influential or inspirational they are, their advice might not always be the best solution for you.
Do not be afraid of your feelings. Being angry, sad, hurt or confused are not punishments, having days where you don't love yourself very much, spending time thinking of all the things that you think are wrong with you, or feeling like you'll never accomplish your goals and dreams are all normal feelings to experience.
They don't need to be pushed away with an instantaneous mindset change, they need your presence and intentions if they are to be truly resolved.
We cannot overcome our problems by forgetting about them, that only creates temporary alleviation. Our thoughts, feelings and emotions are all important. when we undertand that importance, we can become more mindful of how properly deal with things that come up and react in ways that will benefit our lives long term. 

Saturday, 9 April 2022

मेरी बैचेनी - एक कविता

कुछ लोगों में होता है जरूरत से अधिक धैर्य, 
सुन लेने का पूरी तन्मयता से फिजूल बातों को भी,
मैं नहीं कर पाता हूं बर्दाश्त,
सीधे कह जाता हूं मूर्ख,
क्योंकि ऐसी बातें मुझे लगती है,
किसी द्विगुणित होने वाले जहरीले,
विषाणु जीवाणु बैक्टीरिया की तरह,
जो करती है प्रभावित मन मस्तिष्क को,
मेरे पूरे शरीर को,
हाथ पाँव हो जाते हैं शिथिल,
होती है नाभि में बैचेनी,
चला जाता है चेहरे का खिला हुआ रंग,
छिन जाती है मुस्कुराहट,
और घिर जाती है आँखों में बैचेनी,
कान अस्वीकार कर देते हैं कुछ सेकेण्ड के बाद,
और जोर से कराहने लगते हैं।
तमाम धैर्यवान लोग दुनिया के लिए उम्मीद हैं,
जो इस धरा का इतना भारीपन लेकर चलते हैं,
सभी लोगों को सुनते हैं,
उनकी हर एक खराब से खराब,
सतही, छिछली और स्तरहीन,
अतार्किक, बेफिजूल और बेबुनियाद,
हिंसा, नफरत और सामंती मानसिकता से भरपूर,
जड़ से सढ़ चुकी बातों को देते हैं तवज्जो,
ताकि हम‌ जैसे चंद लोग मन भर के,
दीमक की तरह लटके,
जोंक की तरह चिपके,
दीवार बन कर अड़े इन लोगों को,
जी भर के चूतिया कह सकें।

Thursday, 7 April 2022

बुरा अनुभव ?

भारत घूमकर घर लौटे साल भर से अधिक हो गया। इस बीच अधिकतर लोग पूछते हैं कि आप इतने महीनों तक लगातार भारत के अलग-अलग कोनों में घूमते रहे, कोई तो बुरा अनुभव होगा, बताइए। मेरे पास इसका कोई खास जवाब नहीं होता है क्योंकि ऐसा कुछ रहा ही नहीं, सोचना पड़ जाता है, दिमाग में बहुत जोर डालना पड़ता है। आखिरकार आज जोर डाल दिया है, पढ़ जाइए।
All india solo winter ride का 56वाँ दिन था, मैं तब कूल्लू में था, दो दिन हो चुके थे। कूल्लू का अपना एक अलग कल्चर, वहाँ का अलग खान-पान, लोगों की बातें, मुझे मजा आ रहा था। कूल्लू से मनाली बमुश्किल एक घंटे का रास्ता है, लेकिन मेरा कोई खास मन नहीं था कि वहाँ जाऊं, क्योंकि मनाली अब दिल्ली जैसे किसी शहर जैसा ही हो गया है, लेकिन फिर भी मैं अगले दिन मनाली गया, क्योंकि उसी दिन रात को बर्फबारी हुई थी, बर्फबारी देखे एक साल से ज्यादा हो चुका था, तो सोचा देख के आया जाए, वरना मनाली जाता ही नहीं, वैसे भी मेनस्ट्रीम जगहों में जाने से घुटन ही होती है।
अब असल‌ बात पर आते हैं, मनाली जाने से पहले मैंने दो दिनों के लिए एक होटल में बुकिंग कर ली थी, पैसे चुका लिए थे, लेकिन किसी कारणवश ऐसा हुआ कि होटल वाले‌ ने मेरी बुकिंग कैंसल कर दी और किसी दूसरे को दे दिया। अमूमन यही होता है, स्नोफाॅल हुआ कि भीड़ बढ़ने लगती है और होटल‌ के रेट भी बढ़ जाते हैं, होटल वाले को ज्यादा पैसे मिले होंगे और उसने थोड़े पैसों के लालच में मेरा कमरा किसी और को दे दिया गया होगा, ऐसी धूर्तता मेनस्ट्रीम जगहों में ज्यादा होती है। मैंने होटल वाले से बात की, फिर कहा कि कोई चलो कोई बात नहीं, अब पैसे वापसी पर ध्यान दिया जाए। जिस प्लेटफार्म‌ से बुक किया, उनसे बात की, मेल किया, फिर होटल वाले से बात की। प्रोसेस स्मूथ नहीं लग रहा था, मामला ऐसा फंसा कि पैसे वापसी की संभावना अब मुझे नहीं दिख रही थी, कुछ समय तक‌ सोचा फिर मैंने कहा हटाओ, मुझे अपना समय इन सब चीजों में बर्बाद नहीं करना।
मोटा मोटा यही हुआ कि मेरे लगभग 2000 रूपये चले गये। मैं कुछ घंटे भिड़ जाता, होटल वाले से जाकर मनाली में मिलता, कंपनी वाले को लाइन में लेता, मेल में सबकी धुलाई करता, यह सब करता तो मेरे पैसे मुझे मिल ही जाते, जीवन में अपने लिए इतना आत्मविश्वास तो अर्जित किया ही है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में मेरा समय जाता, वह तो ठीक, समय तो भरपूर रहा करता है अपने पास लेकिन वही है दानव के साथ लड़ते भिड़ते आपमें भी दानवों के गुण हावी होने लगते हैं, इसीलिए मैंने अपने मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए इस मसले‌ को ठंडे बस्ते में डाल दिया और ये बहुत सही फैसला था। उन रूपयों के पीछे लगे रहता तो मेरा जो मानसिक रूप से नुकसान होता वह कुछ दिन तक मेरे भीतर मुझे प्रभावित करता ही, जहाँ भी जाता, रहता खाता, घूमता फिरता, हर एक पहलू को प्रभावित करता, यह तो उन रूपयों के मुकाबले बहुत ही बड़ा नुकसान था, इसलिए मैंने जाने दिया, यकीन मानिए यह बहुत फायदे का सौदा था। 
अब मैं मनाली गया तो दूसरे जगह रूकना हुआ, जिस हाॅस्टल में रूकना हुआ वहाँ मेरठ के गुरसिमरन भाई और दिल्ली के निशांत भाई ( ये आदमी सोशल मीडिया का इस्तेमाल ही नहीं करता है) मिल गये। एक तो मैं बहुत कम‌ लोगों के साथ ही सहज हो पाता हूं, ऐसे में दो नये लोग, शुरू में हिचकिचाहट हो रही थी लेकिन फिर तो क्या ही बढ़िया ट्यूनिंग हो गई, नियति को शायद यही मंजूर था। हम‌ तीनों की तिकड़ी ऐसी जमी कि अगले दो दिन हम सब साथ रहे, खूब मौज काटा। अब निशांत और मुझे दिल्ली वापस आना था, 31 दिसंबर का दिन था, हम दोनों ने फैसला किया कि साल के आखिरी दिन कुछ तूफानी किया जाए, फिर क्या था, फैसला हुआ कि पैराग्लाईडिंग करेंगे, वो भी छोटा मोटा कूल्लू मनाली वाला नहीं, एशिया के सबसे बड़े पैराग्लाइडिंग पाइण्ट से ही करेंगे, तो हम वहाँ चले गये, गुरसिमरन भाई ने अगले कुछ दिनों के लिए मनाली के किसी गाँव में अपना ठिकाना जमा लिया, और हम आ गये थे आसमान की ऊंचाइयों में, लेकिन कमबख्त कोहरा नहीं था। 
साल भर बाद दिल्ली‌ में निशांत की शादी थी, ठीक उसी समय मैं किसान आंदोलन के अंतिम क्षणों को कवर करने के लिए दिल्ली पहुंचा था, हम तीनों की‌ फिर से वहाँ मुलाकात हुई। मैं सोचता हूं अगर वो 2000 रूपयों का बढ़िया नुकसान न होता ( उसे तो फायदा ही समझता हूं) तो‌ मुझे जीवन भर के लिए ये दो बेशकीमती दोस्त न‌ मिलते।
भारत घूमने के अनुभवों के बारे में जो पूछते हैं कि अच्छा बुरा क्या अनुभव था, उसमें बस यही कहना है कि अच्छा बुरा जैसा कुछ होता नहीं है, आपका अपना एप्रोच क्या है सब कुछ उसी पर निर्भर करता है, आप पर है कि आप जीवन में कितना अधिक तनाव लेकर जीना चाहते हैं, मुद्रा के खोल से इतर अपने जीवन‌ को अपने स्वास्थ्य को कितनी प्राथमिकता दे पाते हैं, खुद के भीतर कितना झांक पाते हैं। 




Sunday, 3 April 2022

Creative आदमी कुछ कसकर नहीं पकड़ता -

कुछ भी अलग और रचनात्मक करने के लिए आपमें एक तरह का पागलपन ज़रूरी है। इसीलिए ज़्यादातर बेहतरीन काम कम उम्र में ही किए जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ आपकी सोच पर विचार हावी हो जाते हैं। आपके पागलपन पर होश सवार हो जाता है। बहुत कुछ करने के लिए आप over grow कर जाते हैं। वो मस्ती और शरारत जो आपके काम को ताज़ा बनाती है, आपके काम से गायब या कम हो जाती है। इसे ही creative block भी कहा जाता है। 
आपको अससास होता है कि आप खुद को ही दोहरा रहे हैं क्योंकि जीवन को लेकर, समाज को लेकर जो भी आपकी प्राथमिक observation थी, वो आप लिख-बोल चुके। यहीं से किसी भी रचनात्मक इंसान का असली चैलेंज शुरू होता है, खुद को improvise करने का। 
जिस आंख से हम चीज़ों को देखते आए हैं, उसमें नयापन कैसे लाया जाए। अपनी सभी Senses में फिर से उत्तेजना कैसे जगाई जाए। नयापन लाने के साथ सबसे बड़ी चुनौती ये है कि हम अपनी मान्यताओं को, अपने शौक को, अपनी चिढ़ को बदलते नहीं हैं। जो फिल्में, खाना, लेखक, विचार दस साल पहले पसंद थे, जिन चीज़ों से पहले नफरत थी आज भी वो ज्यों-की-त्यों बनी हुई हैं। उसे न बदलने को लेकर हम एक तरह ज़िद्द पाल लेते हैं।
इंसान के तौर पर शायद हमारी सबसे बड़ी मासूमियत ही यही है कि हम अपने विचारों को , अपने जाति-धर्म को अपना वजूद मान बैठते हैं। और इन्हीं विचारों, को डिफेंड करते हुए हम मानते हैं कि हम अपना वजूद बचा रहे हैं। अपनी इस झूठी छवि को बचाए रखने की ज़िद्द, उसे हर हाल में उसे डिफेंड करने का अहंकार ही रचनात्मकता का सबसे बड़ा दुश्मन है।
उपाय ये है कि हम खुद को गंभीरता से न लें। न मान-सम्मान को और न ही अपने सही होने को। हम अपने राजनीतिक विचारों, जातिय और धार्मिक पहचान से कहीं ज़्यादा बड़े हैं। लेकिन हमने चीजों को जो यूं कसकर पकड़ रखा है, यही हमें कुछ नए के लिए उपलब्ध नहीं होने देता, इसीलिए हम बासे पड़ने लगते हैं, सड़ने लगते, सार्थक नहीं रह जाते और उम्र के साथ कड़वे होते जाते हैं।
-Neeraj Badhwar