Friday, 17 September 2021

Letter to the Unknown -

1.
तुम दूर रहना,
दूर ही बेहतर हो,
दूरी बनाना इस समाज से,
इसलिए मैं दूर हो रहा हूं,
ताकि मैं माध्यम ना बनूं,
दूर से ही देखूंगा,
एक आखिरी बार,
जब लगेगा कि
तुम करीब आने लगी,
तो दूर रहने कहूंगा,
दूर रह लेने की
अहमियत समझाऊंगा,
ताकि तुम बच सको,
खुद को बचा सको,
तुम्हारा पास आ जाने से कहीं ज्यादा,
दूर रह जाना जरूरी है।
क्योंकि अधिकतर अरैंज मैरिज,
अरैंज रेप के समान होते हैं।

2. 
तुम खास हो,
तुम बहुत खास हो,
यह मैं जानता हूं,
और तो और,
यह समाज भी जानता है,
इसीलिए हिस्सेदारी चाहता है,
समाज पा लेना चाहता है,
उपयोग कर लेना चाहता है,
छीन लेना चाहता है,
तुम्हें तुमसे,
वह छीनता है,
मीठे चाशनीनुमा शब्दों से,
रिश्तों के पवित्र बंधन से,
सामाजिक सुरक्षा से,
आर्थिक सुरक्षा से,
रीति-रिवाजों से,
मान्यताओं से,
परंपराओं से, 
संस्कारों से।
तुम खुद से पूछना,
कि तुम्हें क्या चाहिए,
पूछना खुद से कि क्या,
तुम्हारे हिस्से की आजादी,
तुम्हारे हिस्से का रिश्ता,
तुम्हारे हिस्से की ख्वाहिशें,
तुम्हारे हिस्से की सुरक्षा,
एक असुरक्षित समाज दे पाएगा?

3.
जहाँ किसी को बदलने की जिद होगी,
वहाँ अराजकता होगी।
जहाँ किसी को सुरक्षा देने की चाह होगी,
असुरक्षा का जन्म वहीं होगा।
जहाँ किसी को हासिल करने का हठ होगा,
निजता की हत्या वहीं होगी।


4.
होंगे तुम्हारे कई रंग,
लेकिन तैयारी यही होगी,
कि तुम एक‌ रंग में रंग जाओ,
क्या तुम सीमित हो जाओगी?
होंगी आसमान सी ख्वाहिशें,
लेकिन कहा यह जाएगा,
कि किस्मत में जो है वही होगा,
क्या तुम ऐसे ठगी जाओगी?
होगी तुम निडर और बेबाक
लेकिन संस्कार आकर कहेंगे,
कि सहना सुनना पड़ता है,
क्या तुम चुप रह जाओगी?

5.
होती है तुम्हें झुकाने की कोशिशें,
जिस दिन तुम जन्म लेती हो।
मिलते हैं परंपरा रूपी नियम कानून,
तुम्हें जन्म के तोहफे के रूप में।
तुम्हें खूब लाड़ प्यार दिया जाता है,
तुम्हें घर की लक्ष्मी कहा जाता है,
तुम्हें सृष्टि की रचयिता कहा जाता है,
बहुत सी महान उपमाएँ दी जाती है।
लेकिन हर एक उपमा के पीछे, 
छिपी होती है एक पतली चादर,
चादर एक अदृश्य स्वार्थ की,
धर्म की बेड़ियों की,
उससे जुड़ी आस्था की।
तुम्हें यह समाज गढ़ता है,
अपने साँचे में ढालता है, 
ऋचाएँ लिखी जाती है तुम‌ पर।
तुम्हारा भला कर लेने के लिए,
समाज गिध्द की तरह तैयार रहता है,
समाज की सारी खोजी इकाईयाँ,
तुम्हारे पीछे लगा दी जाती हैं,
ताकि तुम्हारी एक-एक गतिविधि,
उनकी नजर में रहे।
तुम्हें बनाया जाता है,
त्याग और समर्पण का प्रतीक,
ताकि तुम कभी सवाल न करो,
पीड़ा को भी बलिदान समझो,
कुछ इस तरह,
तुम्हें हर पल छला जाता है,
इन अघोषित नियमों से,
अदृश्य आस्थारूपी कानून से,
ऐसा कानून जिसके सामने,
लोकतंत्र रूपी कानून बौना है।
तुम कभी फुर्सत में पूछना कि यह समाज,
तुम्हें जस का तस क्यों नहीं स्वीकारता?

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