बहुत लोगों के साथ ऐसा होता है कि उनके दो अलग-अलग जन्मदिन होते हैं, अमूमन एक उसमें से स्कूल वाला होता है, जिसमें हमारे भारतीय माता-पिता एक दो साल कम कराकर एंट्री करा देते हैं, और एक होता है असली वाला, जिस दिन वह पैदा हुआ होता है। मेरे साथ भी यही दोनों हैं, लेकिन इसके अलावा भी दो और हैं। असल में मुझे अपनी असली जन्मतिथि पता ही नहीं है। अभी तक सब तुक्के में ही चल रहा है। बहुत छोटी उम्र से ही इसलिए धार्मिक कर्मकांड, ग्रह नक्षत्र दिशा कुंडली आदि सब आड़े हाथों ही लेता हूं। अपनी जरूरत के सारे पूजा मंत्रजाप वाले काम खुद ही निपटा लेता हूं, वाहन पूजा भी खुद ही किया था।
चार जन्मतिथियाँ होने की कहानी भी गजब है। जो बच्चे गाँव में पैदा होते हैं, उनके साथ यह हुआ होता है कि घरों में कोई पेन पकड़कर रजिस्टर में लिख देता है, जैसे किसी उधार लेने वाले का नाम लिख दिया जाता है, बिल्कुल उसी तरह, मतलब कोई गंभीरता नहीं। तब तो समय ऐसा था कि कैलेण्डर भी गिने चुने घरों में होता था। तो जिस रजिस्टर में मेरी जन्मतिथि लिखी गई। उसमें लिखा है कि मेरा जन्म सोमवार को हुआ, शुक्ल पक्ष को हुआ। माताजी कहती हैं कि कृष्ण पक्ष को मैं पैदा हुआ। माताजी से जब यह कहा जाता है कि 4 सितंबर का दिन आपके अनुसार तो बुधवार हुआ, तो उनका तर्क यह रहता है कि मैं तुझे पैदा की हूं, तू मुझसे ज्यादा जानेगा क्या? तो इस तरह से एक शुक्ल पक्ष वाला जन्मदिन अलग, एक कृष्ण पक्ष वाला अलग बन जाता है, और ये दोनों की माध्यिका ये 4 सितंबर जिसे असली जन्मदिन मानकर काम चलाया जा रहा है, अव इसे जिन्होंने एंट्री की थी वे अब दुनिया में नहीं है तो उनके साथ ही सच चला गया और इसके अलावा एक आखिरी स्कूल वाला है। कुछ इस तरह हो गये टोटल चार जन्मदिन। जब-जब चार सितंबर आता है, ये सारा कुछ याद आ जाता है। 😀
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