उन सभी लोगों से निवेदन है कि कम से कम नये साल तक मुझे बेफिजूल के फोन मैसेज न किए जाएं। ये समयावधि आप अपने सुविधानुसार बढ़ा भी सकते हैं, कोई आपत्ति नहीं होगी। संभव है कि फोन और मन दोनों कुछ समय तक सुप्तावस्था ग्रहण कर सकते हैं।
हमें अपने किसी भी कृत्य से किसी को समझने, समझाने, उपदेश देने, संचालित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, सरपरस्ती भी नहीं। कहीं जीवन जीने के बहुत अलग तौर-तरीके हो सकते हैं, उसमें भी व्यक्ति की एक सीमा होती है कि वह हिंसा को लम्बे समय तक ना झेले, खुद को अलग करता चले।
निर्मल वर्मा ने कहीं कहा था - भारतीय समाज ऐसा है कि कोई अगर कुछ समय एकांत में है तो समाज इस बात को हजम नहीं कर पाता है उल्टे उस पर तरह-तरह के प्रश्नचिन्ह लगाता है, अपनी चीजें थोपने लगता है।
बहुत पहले ही परिजनों को कह दिया गया था कि कोई बहुत अधिक इमरजेंसी हो, सुख या दु:ख की खबर हो, तभी याद करें, अन्यथा ना करें। क्या खाया, कहाँ रहा, इन सब रोजमर्रा के सवालों में ऊर्जा व्यर्थ ना करें। जिन चीजों में दखल, सलाह की जरूरत हो तो याद करें वरना मुझे अकेला छोड़ दें। खुशी होती है कि वे समझते हैं।
आने वाले समय में शायद कुछ चीजें एक्सट्रीम हो जाएं, बहुत कुछ उथल-पुथल हो जाए, क्या पता कैसा जो होता है, सब हमेशा की तरह अस्तित्व के सहारे है। सबके जीवन की अपनी अपनी विद्रूपताएँ होती हैं, इधर भी हैं। सबको अपनी-अपनी सढ़ी गली विद्रूपताएँ मुबारक। वैसे इतने दिनों में एक दोस्त मिला, और वो मैं ही था, और ये कंपनी ठीक लगी। कोशिश रहेगी कि सोशल मीडिया में निरंतरता बनी रहे, न भी हो तो भी कोई समस्या नहीं क्योंकि किसी प्रकार की कोई बाध्यता है नहीं।
सांत्वना वाले कमेंट नहीं करेंगे, और सवाल-जवाब नहीं करेंगे, इसके लिए आप सभी का धन्यवाद।
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