Sunday, 6 December 2020

पिताजी का हार्ट अटैक -


मेरे पिताजी एक औसत सरकारी कर्मचारी रहे, अभी रिटायर्ड हैं। जब वे 57 साल के थे तब यानि आज से 5 साल पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था। पिताजी ने आज तक कभी गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि को कभी हाथ नहीं लगाया, दूध वाली चाय भी नहीं पीते हैं और पिछले दो दशक से शाकाहारी हैं। खान-पान बहुत ही संतुलित रहा साथ ही खेतों में लगातार काम करते रहे, आज भी कुदाल, फावड़ा लेकर उतर जाते हैं, यह कहना गलत न होगा कि किसान पहले हैं, सरकारी कर्मचारी बाद में हैं। आज भी शारीरिक रूप से बहुत ही मजबूत हैं। मेरी तरह वे भी दुनिया जहाँ की अलग-अलग चीजें खाने के शौकीन हैं। घर के बाकी सदस्य हार्ट अटैक आया था ये मत खाइए वो मत खाइए कहकर बार-बार समझाइश देते रहते हैं, मैंने आजतक इस बारे में कुछ नहीं कहा और न ही आगे कभी कुछ कहूंगा क्योंकि मुझे पता है कि मेरे पिता के हार्ट अटैक का उनके खानपान से कोई संबंध ही नहीं था। 

लगभग तीन चार दशक पुरानी बात है। पिताजी दो भाई थे, उनका एकलौता छोटा भाई यानि मेरे चाचा पढ़ाई से कुछ खास कर नहीं पाए तो गाँव में ही खेती संभालने लगे। हमारे दादाजी जो प्राचार्य रहे, शुरू से ही उनका अपने छोटे बेटे के प्रति झुकाव अधिक था, अब पता नहीं किधर झुकाव था लेकि‌न उन्होंने अपने दोनों बेटों को जमीन बंटवारे के नाम‌ पर खूब लड़वाया। आपको भले यकीन न हो लेकिन दोनों भाइयों के बीच अगर खाई किसी ने पैदा की तो वह मेरे दादाजी ही थे। वे मेरे पिता से बहुत अधिक नफरत करते थे, जबकि योग्यता से लेकर सभी मामलों में मेरे पिता ठीक रहे फिर भी, यानि अपने माता-पिता के प्रति इतना प्रेम रहा, समर्पण भाव से उनके लिए इतना कुछ किया कि शायद ही माता-पिता अपने बच्चों के लिए इतना करते हों, बिल्कुल श्रवण अपने माता-पिता के लिए जैसे थे बिल्कुल वैसा ही समझ लीजिए। मेरे पिता आजीवन अपने माता-पिता को भगवान की तरह पूजते रहे। प्रताड़नाएँ झेलते रहे लेकिन एक पल के लिए पूजना नहीं छोड़ा। मेरे दादाजी ने मेरे पिता के ऊपर तमाम तरह की भावनात्मक और मानसिक हिंसाओं की बौछार कर दी, मेरे पिता सब कुछ प्रेमभाव से झेलते रहे, कभी एक शब्द जवाब न दिया, देते भी कैसे कभी सीखा ही नहीं था, बस प्रेम और समर्पण लुटाना सीखा था। जबकि चाचा इसके ठीक उलट रहे, उन्होंने कभी अपने माता-पिता का सम्मान नहीं किया शायद इसलिए भी वे इन मानसिक प्रताड़नाओं से वंचित रह गये। फिर एक दिन अचानक चाचाजी बिजली के झटके की वजह से चल बसे और ठीक उस के एक साल बाद दादाजी भी मस्तिष्क में लकवा की वजह से शांत हो गये। और दादाजी के जाने के कुछ महीने बाद ही पिताजी को हार्ट अटैक आया था।

दादाजी की हिंसा की बानगी के रूप में एक बात याद आती है, एक बार उन्होंने अपने ही बेटे को यानि‌ मेरे पिता को पत्र लिखा था, चार-पाँच पन्ने का पत्र रहा होगा, उसका सार यह था - तू नकारा है, बेकार है, क्या ज्यादा दिन जिएगा, तुझे तो अब तक मर जाना चाहिए था, तू मेरे लिए मर चुका है, बेटे के नाम पर कलंक है आदि आदि। अपने ही पिता के द्वारा यह पत्र पाकर वे कई कई दिन तक सो नहीं पाए, खामोश से हो गये थे, पता नहीं क्या कितना महसूस करते होंगे, कितनी उनको भीतर तक चोट पहुंची होगी। अपने पिता द्वारा ऐसा पत्र पाकर भी वे आजीवन उनकी सेवा करते रहे लेकिन अंदर ही अंदर उनको मानसिक पीड़ा तो होती ही होगी और ये पीड़ाएँ किसी न किसी तरीके से एक दिन बाहर निकलने का द्वार खोज ही लेती है। और हुआ भी यही, एक दिन अचानक ही मेरे पिताजी को दिल का दौरा पड़ गया। अगले ही दिन भर्ती कराना पड़ा, स्टैंट लगा, सब सही हो गया, अब चंगे हैं। रिटायरमेंट के बाद भी बेरोजगार नहीं है, खेती कर रहे हैं।

मुझे इस बात पर कोई भी संदेह नहीं है मेरे पिता के हार्ट अटैक का सबसे बड़ा या यूं कहें कि एकमात्र कारण उनके पिता द्वारा लगातार कई दशकों तक की गई भावनात्मक हिंसा है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह भी लगता है कि मेरे पिताजी अपने पिता द्वारा दी ‌गई प्रताड़नाओं को अब लगभग भूल चुके हैं। शायद मेरे दादाजी आज जीवित होते तो उन्हें वे और भी कोई बीमारी हो जाती, और इन बीमारियों का कारण शरीर न होता।

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