Tuesday, 15 December 2020

भारत भ्रमण का 45वाँ दिन - अनुभव

आज 45वाँ दिन है, इतने दिनों में जो एक अच्छी चीज हुई है वो यह है कि मुझे मेरे आसपास की सढ़न पहले से कहीं अधिक सफाई से दिखने‌ लगी है, सोचता हूं उन चंद लोगों को उनके भीतर पल रहे जहर से, ढोंग से अवगत करा दूं फिर सोचता हूं जो पहले से ही रसातल में हैं वे अपने आपको बचाना तो छोड़िए, खुद आपको गड्ढे में खींचने की कोशिश करते हैं, अपनी मानसिक सढ़न थोपने की कोशिश करते हैं, इसलिए बेहतर है कि एक निश्चित दूरी बनाकर रखी जाए। असल में उन्हें खुद नहीं पता होता है कि जिंदगी जीना कैसे है। कुछ समय के लिए ऊपरी दिखावा कर लेते हैं कि जिंदगी का आनंद वही ले रहे, बाद में जब दिखावे का कवच फूटने लगता है तो उसे दबाने के लिए अपनी पूरी सढ़न रूपी ऊर्जा झोंक देते हैं। सुख-दुख, आनंद, निराशा आदि जीवन के कुछ मूलभूत तत्वों को कैसे जिया जाता है इसकी उन्हें समझ ही नहीं होती है, और यही लोग आपको जिंदगी जीने के तरीके सिखाते फिरते हैं। खुद गले आते तक समस्याओं में डूबे रहेंगे लेकिन फिर भी इन्हें पूरे संसार का भला करना होता है‌। भारत का समाज मोटा-मोटा ऐसा ही है।

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