Tuesday, 22 December 2020

योग्यता के मायने -

इंजीनियरिंग के पहले सेमेस्टर में एक सीनियर सर का नाम सुना था, जब नाम सुना था तब तक वो किसी बढ़िया काॅलेज में मोटी तनख्वाह खाने वाले प्रोफेसर हो चुके थे‌। अपने समय के गोल्ड मेडलिस्ट रहे, उनका नाम जब स्वर्ण अक्षरों में अंकित हुए एक बोर्ड में देखा था, उस समय बड़ा गर्व महसूस हुआ था‌। प्रोफेसर साहब इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के विद्वान टाइप के रहे, विद्वान क्या उनका बेसिक अच्छा था, इंजीनियरिंग की भाषा में कहूं तो सिलेबस के लिहाज से उनके सारे फंडे क्लियर थे। भाषाई खिलंदड़ी का ककहरा तो मैंने इंजीनियरिंग के दौरान ही सीखा।

प्रोफेसर साहब अव्वल दर्जे के नशेड़ी थे, यानि आज भी हैं, काॅलेज हो या ट्यूशन हर जगह दारू पीकर ही बच्चों को पढ़ाते हैं, लोगों ने बताया कि इंजीनियरिंग के दौरान भी दारू गांजा मारकर ही पेपर दिलाते थे। कहा जाता है कि उनके बहुत से बैकलाॅग पेपर थे, उन्होंने एक झटके में ही खूब सारे पेपर एक साथ क्लियर किये और इसी तरह गोल्ड मेडल भी लिया। लोग उनकी इस सफलता के पीछे किसी लड़की को नहीं बल्कि दारू और गांजे को जिम्मेदार मानते थे। वैसे पेपर क्लियर करने की जहाँ तक बात है, मैंने भी एक बार 13 पेपर ( 2 Mercy, 3 Pre-mercy, 3 Backlog, 5 Regular subject) क्लियर किए थे। ज्यादा नहीं बस औसत नंबरों से पास हुआ था। उस समय मैं जहाँ रहता था, रोड में टहलते हुए जो भी मिलता हाथ मिलाकर जाता, क्या सीनियर क्या जूनियर हर कोई बधाई देकर जाता, कोई-कोई एक दो सीनियर जिनका पेपर ही क्लियर नहीं हो पा रहा था, वे जबरदस्ती चाय नाश्ता तक करा देते और पूछते कि भाई कैसे किया ये चमत्कार? कुछ लोग कहते - भाई मचाए तो तुम ही हो। इतने लोग आए दिन पार्टी माँगते कि लगता मानो कौन सा तीर मार लिया मैंने। तब इतनी ज्यादा तारीफें मिली कि बस पूछिए मत। काॅलेज की लड़कियों के फ्रेंड रिक्वेस्ट तक आने लगे थे, खैर।। मैं तब भी यही सोचता था कि ये सब के सब इतना मुझे उछाल क्यों रहे हैं, वो भी इतने फालतू काम के लिए, कुछ दिन दो चार चीजें दिमाग में बिठा के कागज में उतार के पेपर पास कर लिया, उसमें क्या बड़ी चीज हो गई। 

इंजीनियरिंग करने वाले हमारे करेंट सीनियर्स हमें ज्ञान दिया करते कि पेपर साफ लिखकर आना, दो कलर का पेन इस्तेमाल करना, काले वाले से हेडिंग बनाना, अंडरलाइन करना और नीले वाले से लिखना। अच्छी राइटिंग ही नंबर पाने का मूलमंत्र है, पेपर भर के आना आदि आदि। यही तरीके थे, और आप यकीन मानिए ये तरीके काम भी करते थे, आज भी काम करते हैं। मुझे आजतक इसमें एक बात समझ नहीं आई कि इन चीजों का किसी व्यक्ति की योग्यता से क्या संबंध है‌। अब इसमें आप सिर्फ इंजीनियरिंग या किसी ग्रेजुएशन की पढ़ाई बस को मत देखिए। भारत में जितनी भी लिखित प्रतियोगी परीक्षाएँ होती है एक सरकारी कर्मचारी से लेकर कलेक्टर बनने तक, हर जगह यही तरीका काम करता है और आगे भी यही तरीका काम करता रहेगा।

Youtube Channel and Earning -

पिछले 50 से भी अधिक दिनों से जितने लोगों ने " यूट्यूबर हो क्या ? " पूछा है, अगर सचमुच होता तो अच्छे खासे लोग जुड़ जाते, लेकिन इन सब से दूर रहने की भी अपनी एक वजह है कि मैं अपना समय कहीं और दे रहा हूं। क्योंकि जितना समय वीडियो तैयार करने में लगना है, उतना समय मैं सोचता हूं लोगों से मिलूं, बातें करूं, और इन 50 दिनों में बहुत से नये पुराने लोगों से मिलना हुआ, उनसे इतना प्यार और अपनापन मिला कि लगता है यही तो असली कमाई है। मैं इसे लाखों व्यू लाइक कमेंट और उनसे मिलने वाले कुछ हजार रूपयों से बड़ी कमाई मानकर चल रहा हूं। मेरे लिए मेरा यूट्यूब चैनल और मेरी अर्निंग यही है।

Thursday, 17 December 2020

Leading towards a Social Break

उन सभी लोगों से निवेदन है कि कम से कम नये साल तक मुझे बेफिजूल के फोन मैसेज न‌ किए जाएं। ये समयावधि आप अपने सुविधानुसार बढ़ा भी सकते हैं, कोई आपत्ति नहीं होगी। संभव है कि फोन और मन दोनों कुछ समय तक सुप्तावस्था ग्रहण कर सकते हैं।

हमें अपने किसी भी कृत्य से किसी को समझने, समझाने, उपदेश देने, संचालित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, सरपरस्ती भी नहीं। कहीं जीवन जीने के बहुत अलग तौर-तरीके हो सकते हैं, उसमें भी व्यक्ति की एक सीमा होती है कि वह हिंसा को लम्बे समय तक ना झेले, खुद को अलग करता चले।

निर्मल वर्मा ने कहीं कहा था - भारतीय समाज ऐसा है कि कोई अगर कुछ समय एकांत में है तो समाज इस बात को हजम नहीं कर पाता है उल्टे उस पर तरह-तरह के प्रश्नचिन्ह लगाता है, अपनी चीजें थोपने लगता है।

बहुत पहले ही परिजनों को कह दिया गया था कि कोई बहुत अधिक इमरजेंसी हो, सुख या दु:ख की खबर हो, तभी याद करें, अन्यथा ना करें। क्या खाया, कहाँ रहा, इन सब रोजमर्रा के सवालों में ऊर्जा व्यर्थ ना करें। जिन‌ चीजों में दखल, सलाह की जरूरत हो तो याद करें वरना मुझे अकेला छोड़ दें। खुशी होती है कि वे समझते हैं।

आने वाले समय में शायद कुछ चीजें एक्सट्रीम हो जाएं, बहुत कुछ उथल-पुथल हो जाए, क्या पता कैसा जो होता है, सब हमेशा की तरह अस्तित्व के सहारे है। सबके जीवन की अपनी अपनी विद्रूपताएँ होती हैं, इधर भी हैं। सबको अपनी-अपनी सढ़ी गली विद्रूपताएँ मुबारक। वैसे इतने दिनों में एक दोस्त मिला, और वो मैं ही था, और ये कंपनी ठीक लगी। कोशिश रहेगी कि सोशल‌ मीडिया में निरंतरता बनी रहे, न भी हो तो भी कोई समस्या नहीं क्योंकि किसी प्रकार की कोई बाध्यता है नहीं। 

सांत्वना वाले कमेंट नहीं करेंगे, और सवाल-जवाब नहीं करेंगे, इसके लिए आप सभी का धन्यवाद।

Wednesday, 16 December 2020

All India घूमने के लिए कुछ निहायती जरूरी चीजें -

1. नेलकटर - क्योंकि घूमते हुए तेजी से नाखून बढ़ते हैं।

2. वाशिंग पाउडर - कम पकड़े रखो और धोते चलो।

3. कपड़े धोने का ब्रश - ये सिर्फ उनके लिए जरूरी है जिन कामचोरों को हाथ से कपड़ा धोना नहीं आता।

4. साबुन और साबुन रखने का एक डब्बा - क्यों क्योंकि इससे हैण्डवाश और बाॅडीवाश दोनों काम एक साथ हो जाएगा। हैण्डवाश का डब्बा धोखा है, छलावा है, और बहुत महंगा भी है।

5. एक ताला और चाबी का सेट - इसकी जरूरत तब समझ आएगी जब कभी किसी धर्मशाला में रूकना हो।


ये कुछ बहुत ही जरूरी चीजें हैं बाकी आप फिजूल की चीजें जितनी चाहे अपने साथ ले सकते हैं। बाकी ये जो हीरो लोग चाकू लेकर ट्रिप में घूमते हैं भगवान जाने इनको किनसे खतरा होता है, एक तो कुछ सूतिए जंगलों में ट्रैकिंग करने वाले चाकू तो ऐसे लेकर घूमते हैं जैसे चाकू से भालू चीता मार लेंगे। ये सब फिजूल के दिखावे हैं बाबा। 

आखिर में यही कि जितना कम सामान रहेगा, उतना सफर आसान रहेगा, जितनी अधिक जरूरतें होंगी, उतना तू हैरान रहेगा।

Tuesday, 15 December 2020

भारत भ्रमण का 45वाँ दिन - अनुभव

आज 45वाँ दिन है, इतने दिनों में जो एक अच्छी चीज हुई है वो यह है कि मुझे मेरे आसपास की सढ़न पहले से कहीं अधिक सफाई से दिखने‌ लगी है, सोचता हूं उन चंद लोगों को उनके भीतर पल रहे जहर से, ढोंग से अवगत करा दूं फिर सोचता हूं जो पहले से ही रसातल में हैं वे अपने आपको बचाना तो छोड़िए, खुद आपको गड्ढे में खींचने की कोशिश करते हैं, अपनी मानसिक सढ़न थोपने की कोशिश करते हैं, इसलिए बेहतर है कि एक निश्चित दूरी बनाकर रखी जाए। असल में उन्हें खुद नहीं पता होता है कि जिंदगी जीना कैसे है। कुछ समय के लिए ऊपरी दिखावा कर लेते हैं कि जिंदगी का आनंद वही ले रहे, बाद में जब दिखावे का कवच फूटने लगता है तो उसे दबाने के लिए अपनी पूरी सढ़न रूपी ऊर्जा झोंक देते हैं। सुख-दुख, आनंद, निराशा आदि जीवन के कुछ मूलभूत तत्वों को कैसे जिया जाता है इसकी उन्हें समझ ही नहीं होती है, और यही लोग आपको जिंदगी जीने के तरीके सिखाते फिरते हैं। खुद गले आते तक समस्याओं में डूबे रहेंगे लेकिन फिर भी इन्हें पूरे संसार का भला करना होता है‌। भारत का समाज मोटा-मोटा ऐसा ही है।

Monday, 14 December 2020

विवाह मंथन

 1. जानवर भी अपने बच्चों को पाल पोसकर बड़ा करते हैं।

2. सिर्फ बच्चे पैदा कराने के लिए सूली पर मत चढ़ाइए। शादी करते हैं, सिर्फ इसलिए शादी नहीं करनी है।

3. जबरदस्ती जब चेहरा और फिगर देख के ही शादी करवाना है तो जिससे मर्जी चाहे करवा लीजिए, कोई आपत्ति नहीं।

4. वर्तमान में शादी के लायक मेरी अपनी कोई सेटिंग नहीं है, बस इतनी सी बात है कि अभी मन नहीं है।

5. जिन रिश्तेदारों को बहुत अधिक शक हो रहा हो उनके लिए उचित मूल्य पर विक्की डोनर बनके खुद को सिध्द करने से मुझे कोई आपत्ति नहीं है।

6. अपनी जाति में लड़की देखना बंद कर दीजिए, मेरा अपना मन है कि अगर मैं कभी शादी करूं, ऐसी अगर विवशता हो तो किसी पंजाबन या पहाड़न से ही शादी करूं, अन्यथा ना करूं। 


कोई लंका भेदी विभीषण टाइप का रिश्तेदार अगर प्रोफाइल में बचा हुआ है, तो मेरे घर तक ये पाइंट्स बेझिझक पहुंचा सकता है।

Saturday, 12 December 2020

मूंगफली वाला -

                  आज एक मूंगफली बेचने वाले के पास गया। सेडिस्टिक आनंद के लेन-देन के लिए बात नहीं लिखी जा रही है। चुपचाप दस रूपए की मूंगफली खरीदकर आ गया। मैं, मेरी जेब और मेरा पेट इससे ज्यादा उसका भला‌ नहीं कर सकता था। आज उस वृध्द के हिम्मत के सामने हर चीज बौनी नजर आने लगी, अभी पर्यटन स्थलों में खासकर ऋषिकेश में सन्नाटा है, लोग हैं ही नहीं, फिर भी इतनी बड़ी चुनौती के साथ बाजार में एक ठेला लगाकर सुबह से शाम टिके रहना। कितने ही लोग मूंगफली खा लेते होंगे। कितना बिकेगा, कोई भरोसा नहीं, फिर भी, सब कुछ अस्तित्व के सहारे। सोचता हूं ऐसे कितने पेशे होंगे जिनमें प्रतिदिन ऐसी चुनौतियाँ होती होंगी। सेवा और समाजकार्य का प्रपंच करने वालों के लिए ऐसे तमाम पेशे सेवा की श्रेणी में कभी नहीं आएंगे, क्योंकि यहाँ हर दिन रिस्क है। इनका बस चले तो मूंगफली, चाय, गोलगप्पे आदि में भी कुछ समाजकार्य का रस मिलाकर स्टार्ट-अप बना दें। खैर...

सफलता, चुनौती की आए दिन पेपर में छपने वाली मनोरम कहानियाँ फर्जी हैं, सब ढोंग है, छलावा है। किताब रट के एक जगह सुरक्षित कर लेने के तिलिस्म को ही जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष मानने वाले विषैले समाज से इससे ज्यादा की उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए।

Friday, 11 December 2020

My take on Backpacker Hostel and homestay -

अभी पिछले 40 दिनों की यात्रा में एक मित्र की संगत में 2 दि‌न एक बैगपैकर हाॅस्टल टाइप के होमस्टे में रहना हुआ।‌ मेरे लिए तो काफी महँगा हो गया। मेरा अपना अनुभव यह कहता है कि अगर आप बहुत ज्यादा बजट ट्रेवल कर रहे हैं, कुछ भी खा सकते हैं, कहीं भी सो सकते हैं, तो ये आपके लिए ये उतने अच्छे आॅप्शन नहीं हैं। ये खासकर उन लोगों के लिए है जो विदेश से आते हैं, विंटेज वाली, गाँव वाली लाइफ देखना चाहते हैं या फिर उन लोगों के लिए है जो शहरों में रहकर महीने का लाखों रूपया कमाते हैं, और जीवन में थोड़ा सुकून चाहिए होता है, तो उनके लिए ये आॅप्शन बहुत किफायती भी मालूम होता है, इसी में एक श्रेणी यह भी जोड़ लीजिए कि ये उनको भी बहुत पसंद आता है जिन्होंने कभी अपने जीवन में गाँव घर की जीवनशैली नहीं देखी होती है। अब मैं इनमें से एक भी श्रेणी में नहीं आता हूं, वैसे मैंने हर तरह का जीवन जिया है, मेट्रो सिटी वाली जीवनशैली से लेकर धूर आदिवाली इलाके की गाँव वाली जीवनशैली, जहाँ लोग रहने में भी कन्नी काटते हों, ऐसी जीवनशैली में लंबे समय तक प्योर देहाती की तरह रहना हुआ है। तो मुझे अभी तो इस बजट ट्रेवल में होमस्टे, बैगपैकर हाॅस्टल टाइप की जगहें पसंद नहीं आ रही है, जिक्र इसलिए कर रहा हूं क्योंकि जब घर से निकला था तो सोचा यही था अधिकतर होमस्टे में ही रूकूंगा, कुछ होमस्टे टूरिज्म प्रमोशन टाइप का हो जाएगा। लेकिन मुझे कुछ इससे भी बहुत सस्ते विकल्प मिल गये इसलिए मामला स्किप हो गया। ऐसे विकल्प जहाँ अमूमन रहना लोगों को रास नहीं आता है, लेकिन मुझे पसंद है, मैं धर्मशालों में लंबे समय तक रूक सकता हूं।

Sunday, 6 December 2020

पिताजी का हार्ट अटैक -


मेरे पिताजी एक औसत सरकारी कर्मचारी रहे, अभी रिटायर्ड हैं। जब वे 57 साल के थे तब यानि आज से 5 साल पहले उन्हें हार्ट अटैक आया था। पिताजी ने आज तक कभी गुटखा, बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि को कभी हाथ नहीं लगाया, दूध वाली चाय भी नहीं पीते हैं और पिछले दो दशक से शाकाहारी हैं। खान-पान बहुत ही संतुलित रहा साथ ही खेतों में लगातार काम करते रहे, आज भी कुदाल, फावड़ा लेकर उतर जाते हैं, यह कहना गलत न होगा कि किसान पहले हैं, सरकारी कर्मचारी बाद में हैं। आज भी शारीरिक रूप से बहुत ही मजबूत हैं। मेरी तरह वे भी दुनिया जहाँ की अलग-अलग चीजें खाने के शौकीन हैं। घर के बाकी सदस्य हार्ट अटैक आया था ये मत खाइए वो मत खाइए कहकर बार-बार समझाइश देते रहते हैं, मैंने आजतक इस बारे में कुछ नहीं कहा और न ही आगे कभी कुछ कहूंगा क्योंकि मुझे पता है कि मेरे पिता के हार्ट अटैक का उनके खानपान से कोई संबंध ही नहीं था। 

लगभग तीन चार दशक पुरानी बात है। पिताजी दो भाई थे, उनका एकलौता छोटा भाई यानि मेरे चाचा पढ़ाई से कुछ खास कर नहीं पाए तो गाँव में ही खेती संभालने लगे। हमारे दादाजी जो प्राचार्य रहे, शुरू से ही उनका अपने छोटे बेटे के प्रति झुकाव अधिक था, अब पता नहीं किधर झुकाव था लेकि‌न उन्होंने अपने दोनों बेटों को जमीन बंटवारे के नाम‌ पर खूब लड़वाया। आपको भले यकीन न हो लेकिन दोनों भाइयों के बीच अगर खाई किसी ने पैदा की तो वह मेरे दादाजी ही थे। वे मेरे पिता से बहुत अधिक नफरत करते थे, जबकि योग्यता से लेकर सभी मामलों में मेरे पिता ठीक रहे फिर भी, यानि अपने माता-पिता के प्रति इतना प्रेम रहा, समर्पण भाव से उनके लिए इतना कुछ किया कि शायद ही माता-पिता अपने बच्चों के लिए इतना करते हों, बिल्कुल श्रवण अपने माता-पिता के लिए जैसे थे बिल्कुल वैसा ही समझ लीजिए। मेरे पिता आजीवन अपने माता-पिता को भगवान की तरह पूजते रहे। प्रताड़नाएँ झेलते रहे लेकिन एक पल के लिए पूजना नहीं छोड़ा। मेरे दादाजी ने मेरे पिता के ऊपर तमाम तरह की भावनात्मक और मानसिक हिंसाओं की बौछार कर दी, मेरे पिता सब कुछ प्रेमभाव से झेलते रहे, कभी एक शब्द जवाब न दिया, देते भी कैसे कभी सीखा ही नहीं था, बस प्रेम और समर्पण लुटाना सीखा था। जबकि चाचा इसके ठीक उलट रहे, उन्होंने कभी अपने माता-पिता का सम्मान नहीं किया शायद इसलिए भी वे इन मानसिक प्रताड़नाओं से वंचित रह गये। फिर एक दिन अचानक चाचाजी बिजली के झटके की वजह से चल बसे और ठीक उस के एक साल बाद दादाजी भी मस्तिष्क में लकवा की वजह से शांत हो गये। और दादाजी के जाने के कुछ महीने बाद ही पिताजी को हार्ट अटैक आया था।

दादाजी की हिंसा की बानगी के रूप में एक बात याद आती है, एक बार उन्होंने अपने ही बेटे को यानि‌ मेरे पिता को पत्र लिखा था, चार-पाँच पन्ने का पत्र रहा होगा, उसका सार यह था - तू नकारा है, बेकार है, क्या ज्यादा दिन जिएगा, तुझे तो अब तक मर जाना चाहिए था, तू मेरे लिए मर चुका है, बेटे के नाम पर कलंक है आदि आदि। अपने ही पिता के द्वारा यह पत्र पाकर वे कई कई दिन तक सो नहीं पाए, खामोश से हो गये थे, पता नहीं क्या कितना महसूस करते होंगे, कितनी उनको भीतर तक चोट पहुंची होगी। अपने पिता द्वारा ऐसा पत्र पाकर भी वे आजीवन उनकी सेवा करते रहे लेकिन अंदर ही अंदर उनको मानसिक पीड़ा तो होती ही होगी और ये पीड़ाएँ किसी न किसी तरीके से एक दिन बाहर निकलने का द्वार खोज ही लेती है। और हुआ भी यही, एक दिन अचानक ही मेरे पिताजी को दिल का दौरा पड़ गया। अगले ही दिन भर्ती कराना पड़ा, स्टैंट लगा, सब सही हो गया, अब चंगे हैं। रिटायरमेंट के बाद भी बेरोजगार नहीं है, खेती कर रहे हैं।

मुझे इस बात पर कोई भी संदेह नहीं है मेरे पिता के हार्ट अटैक का सबसे बड़ा या यूं कहें कि एकमात्र कारण उनके पिता द्वारा लगातार कई दशकों तक की गई भावनात्मक हिंसा है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर यह भी लगता है कि मेरे पिताजी अपने पिता द्वारा दी ‌गई प्रताड़नाओं को अब लगभग भूल चुके हैं। शायद मेरे दादाजी आज जीवित होते तो उन्हें वे और भी कोई बीमारी हो जाती, और इन बीमारियों का कारण शरीर न होता।

Thursday, 3 December 2020

A day well spent in Rishikesh

- All India Solo Winter Ride 2020 -

- Day 32 -

बहुत ‌कम ही ऐसे मौके आए हैं जब कभी ग्रुप फोटो डालने का मन किया हो। इस फोटो में बीच में प्रनीश है जो अभी 15 साल का ही है, कल संभवत: हमारे साथ ट्रैक करेगा, रिवर राॅफ्टिंग करेगा या फिर और पता नहीं क्या क्या। और दूसरा विवेक है, जो मुझे तुंगनाथ ट्रैक‌ पर पहली बार मिला था, वहीं दोस्ती हुई थी, प्रनीश विवेक का भांजा है जो कुछ दिन पहले ही अहमदाबाद से घूमने आया है। तो आज मैं रूद्रप्रयाग से ऋषिकेश के लिए निकला ही था कि विवेक ने फोन कर कहा कि "आ रहे हो न" और कुछ इस तरह हम फिर से ऋषिकेश में मिल‌ गये, मैंने अपने ठह



रने का जुगाड़ वैसे तो पहले से देख लिया था लेकिन वे जहाँ रूके हुए थे, उन्होंने मुझे भी वहीं बुला लिया। तुंगनाथ ट्रैक में असम का एक और दोस्त मिला था, जो आज सुबह ही मुझे रूद्रप्रयाग संगम में दुबारा मिल गया था, और फिर तीसरा इत्तफाक ये कि वो भी आज ऋषिकेश आया और मुझे फोन किया, उस असम वाले दोस्त की कहानी फिर कभी।

तो इस तस्वीर के अपलोड करने की सबसे बड़ी वजह यह है कि भले ही हम घूमते हुए एक दूसरे से मिले लेकिन आज हमने यात्रा आदि की बातें ना करते  हुए अचानक ही घंटों सामाजिक मुद्दों पर चर्चाएँ की। इससे पहले हम दोनों की बात ही नहीं हुई थी तो यही पहली बातचीत थी। सामाजिक मुद्दों को लेकर मेरी और विवेक की बातचीत ऐसी चली कि बस रूकने का नाम नहीं। बातचीत के शुरूआत में ही विवेक ने मेरी एक बात को सुनते ही पता नहीं क्या हुआ, मुझे बीच में ही रोक दिया और कहा रूकिए, ये फिर से रिपीट करना, ये प्रनीश को भी सुनना चाहिए और उसने 15 वर्षीय प्रनीश को भी मेरे कमरे में बुलाया और प्रनीश ने बड़ी उत्सुकता से हमारी बातें सुनी और अपनी सहभागिता भी दी, मुझे यह सब देखकर इतनी खुशी हुई कि बस क्या कहूं। और दोस्त की तरह हम तीनों लंबी लंबी चर्चाएँ करने लगे और रात को दस बजे गंगा किनारे खाना खाने के लिए गये। विवेक ने एक बात कही = "हम दूसरों की मदद करना ही क्यों चाहते हैं, पहले अपनी मदद तो कर लें, फिर दूसरों की मदद अपने आप हो जाएगी।" 

आज के दिन को आम से खास बनाने का शुक्रिया मेरे भाई।

" मेरे लिए जीवन में खूबसूरती के मायने बहुत बहुत अलग हैं, आपके लिए नदी पहाड़ बर्फ आदि हो सकते हैं, आप उसे देखकर चौड़े हो सकते हैं, लेकिन मैं इन चीजों को वहाँ के लोगों में, वहाँ के समाज में, वहाँ की संस्कृति में देखता हूं, महसूस करता हूं और इन सबके बीच जो रिश्ते बुनकर आते हैं, मेरे लिए वही खूबसूरत होता है, और इस खूबसूरती को वही समझ सकता है, इसका रसास्वादन वही कर सकता है जिन्होंने रिश्तों को ईमानदारी से जीया होता है। "

आज दोस्ती का दूसरा दिन।।

#allindiasolowinterride2020