इंजीनियरिंग के पहले सेमेस्टर में एक सीनियर सर का नाम सुना था, जब नाम सुना था तब तक वो किसी बढ़िया काॅलेज में मोटी तनख्वाह खाने वाले प्रोफेसर हो चुके थे। अपने समय के गोल्ड मेडलिस्ट रहे, उनका नाम जब स्वर्ण अक्षरों में अंकित हुए एक बोर्ड में देखा था, उस समय बड़ा गर्व महसूस हुआ था। प्रोफेसर साहब इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के विद्वान टाइप के रहे, विद्वान क्या उनका बेसिक अच्छा था, इंजीनियरिंग की भाषा में कहूं तो सिलेबस के लिहाज से उनके सारे फंडे क्लियर थे। भाषाई खिलंदड़ी का ककहरा तो मैंने इंजीनियरिंग के दौरान ही सीखा।
प्रोफेसर साहब अव्वल दर्जे के नशेड़ी थे, यानि आज भी हैं, काॅलेज हो या ट्यूशन हर जगह दारू पीकर ही बच्चों को पढ़ाते हैं, लोगों ने बताया कि इंजीनियरिंग के दौरान भी दारू गांजा मारकर ही पेपर दिलाते थे। कहा जाता है कि उनके बहुत से बैकलाॅग पेपर थे, उन्होंने एक झटके में ही खूब सारे पेपर एक साथ क्लियर किये और इसी तरह गोल्ड मेडल भी लिया। लोग उनकी इस सफलता के पीछे किसी लड़की को नहीं बल्कि दारू और गांजे को जिम्मेदार मानते थे। वैसे पेपर क्लियर करने की जहाँ तक बात है, मैंने भी एक बार 13 पेपर ( 2 Mercy, 3 Pre-mercy, 3 Backlog, 5 Regular subject) क्लियर किए थे। ज्यादा नहीं बस औसत नंबरों से पास हुआ था। उस समय मैं जहाँ रहता था, रोड में टहलते हुए जो भी मिलता हाथ मिलाकर जाता, क्या सीनियर क्या जूनियर हर कोई बधाई देकर जाता, कोई-कोई एक दो सीनियर जिनका पेपर ही क्लियर नहीं हो पा रहा था, वे जबरदस्ती चाय नाश्ता तक करा देते और पूछते कि भाई कैसे किया ये चमत्कार? कुछ लोग कहते - भाई मचाए तो तुम ही हो। इतने लोग आए दिन पार्टी माँगते कि लगता मानो कौन सा तीर मार लिया मैंने। तब इतनी ज्यादा तारीफें मिली कि बस पूछिए मत। काॅलेज की लड़कियों के फ्रेंड रिक्वेस्ट तक आने लगे थे, खैर।। मैं तब भी यही सोचता था कि ये सब के सब इतना मुझे उछाल क्यों रहे हैं, वो भी इतने फालतू काम के लिए, कुछ दिन दो चार चीजें दिमाग में बिठा के कागज में उतार के पेपर पास कर लिया, उसमें क्या बड़ी चीज हो गई।
इंजीनियरिंग करने वाले हमारे करेंट सीनियर्स हमें ज्ञान दिया करते कि पेपर साफ लिखकर आना, दो कलर का पेन इस्तेमाल करना, काले वाले से हेडिंग बनाना, अंडरलाइन करना और नीले वाले से लिखना। अच्छी राइटिंग ही नंबर पाने का मूलमंत्र है, पेपर भर के आना आदि आदि। यही तरीके थे, और आप यकीन मानिए ये तरीके काम भी करते थे, आज भी काम करते हैं। मुझे आजतक इसमें एक बात समझ नहीं आई कि इन चीजों का किसी व्यक्ति की योग्यता से क्या संबंध है। अब इसमें आप सिर्फ इंजीनियरिंग या किसी ग्रेजुएशन की पढ़ाई बस को मत देखिए। भारत में जितनी भी लिखित प्रतियोगी परीक्षाएँ होती है एक सरकारी कर्मचारी से लेकर कलेक्टर बनने तक, हर जगह यही तरीका काम करता है और आगे भी यही तरीका काम करता रहेगा।