महीने भर के बाद अनिरुद्ध फिर शालिनी को फोन लगाता है।
अनिरुद्ध - शालिनी प्लीज फोन मत काटना, दो मिनट के लिए मुझे सुन लो कि मैं क्या कहना चाहता हूं फिर तुम्हारी मर्जी। विनती कर रहा हूं बस एक बार के लिए मुझे अपनी बात पूरी करने दो।
शालिनी - ठीक है बोलो।
अनिरुद्ध - तुम मेरे सपने में आई थी। पता है सपने में तुम बहुत खूबसूरत लग रही थी। तुमने गुलाबी और सफेद रंग का कोई ड्रेस पहना हुआ था। हम दोनों साथ में कहीं घूमने निकले थे, हम किसी बड़े से झरने के आसपास थे, वहाँ हम दोनों बैठकर बातें कर रहे थे, तुम बार-बार पलकें झपकाकर मुस्कुरा रही थी, तुम बहुत खुश थी मुझसे बात करके। अब ऐसा हो रहा था कि तुम बार-बार झरने को देखकर और उसकी आवाज को सुनकर आंखें बंद कर लेती थी और मैं फिर तुम्हें चुपके से देख रहा था, जो सुकून तुम्हें उस झरने से मिल रहा था, वो मुझे तुम्हें देखकर मिला। एक पल के लिए लगा कि कोई तितली किसी फूल पर बैठी हुई है और हिलने का नाम तक नहीं ले रही। मेरा मन कर रहा था कि धीरे से उस तितली को छू लूं और हमेशा के लिए अपने पास रख लूं।
सपने के दरम्यान मैं बार-बार प्रभु से यह प्रार्थना कर रहा था कि काश ये सिर्फ एक सपना मात्र न हो। लेकिन उठा तो समझ आया कि मैं एक दूसरी ही मायावी दुनिया का हिस्सा था।
इस सपने में आकर तुमने मेरे जहन में ऐसे भाव भर दिए हैं कि मुझे अभी तुम्हारे अलावा कुछ भी नहीं सूझ रहा। समस्त रिक्तियों को भरकर मानो तुम्हारे प्रेम ने मुझे अपने अंतर में रोक कर रख लिया है। सारी उर्जा, मन के सारे भाव और संवेदनाएँ हर जगह तुम अपना अधिकार जता रही हो। ऐसा लगता है कि तुमने मुझे एक ठहराव की ओर खींच लिया है, और उस ठहराव में सिर्फ तुम और मैं।
शालिनी तुम अभी भी मेरी आंखों के सामने झूल रही हो। मुझे नहीं पता कि भाग्य को क्या मंजूर है लेकिन मैं तुम्हें अपनाकर ही रहूंगा।
शालिनी - तो अपना लीजिए न मुझे किसने रोक रखा है। और एक बात याद रखिएगा आपके ऐसे सपनों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। मैं इन सब मामलों में अब नहीं बहने वाली, इन सब बातों से मेरा ह्रदय नहीं पिघलने वाला, बल्कि मुझे तो तकलीफ होती है। आप सपनों की ऐसी बातें कर मुझे कमजोर कर देते हैं, मेरा मन छोटा हो जाता है। ऐसे सपनों का जिक्र कर मुझे एक खोखली उम्मीद की ओर ना धकेलें तो इसी में मेरी भलाई है। आप बिना कुछ कहे मुझे अपना लें मैं सिर्फ इतना ही तो चाहती हूं।
अनिरुद्ध - ठीक है। पर मैंने जो सपने में देखा वही बात तुम्हारे सामने रखी है। मैं खुद को रोक नहीं पाया। मैं अगर तुम्हें बताता नहीं तो मेरे अंदर ये बातें रह-रहकर मुझे परेशान करती, इसलिए मैंने तुम्हें बताना जरूरी समझा। मैं नहीं कहता कि तुमसे अपनापन मिलने की उम्मीद में ये सब कह रहा हूं। जब लगा कि दिल भारी हो गया है नहीं बता पाया तो मन मसोस कर रह जाऊंगा। इसलिए मैंने बता दिया।
शालिनी - बहुत अच्छा किया आपने। आपको तो मानो एक मौका मिल गया और इस सपने के माध्यम से आपने अपनी भावनाएँ मेरे सामने रख दी। आप बड़े हिम्मतवाले जान पड़ते हैं तभी आप इतना कुछ कर लेते हैं पर क्या आप कभी ये सोचते हैं कि मेरे मन में कितने भाव उमड़ते होंगे, कितनी ऐसी बातें हैं जो मुझे तंग करती है, कितने ऐसे मौके आते हैं जहाँ लगता है कि काश आप पल भर के लिए मेरे पास होते तो क्या हो जाता, मैं कितनी परेशान होती हूं, मुझे कितनी पीड़ा होती होगी ये तो मैं आपकी तरह बोलकर बता भी नहीं सकती। स्त्री हूं, सब झेल लूंगी मैं, मेरे प्रभु ने मुझे इतनी ताकत दी है।
अनिरुद्ध - ठीक है मान लिया कि मैं तुम्हारी पीड़ा समझ पाने में असमर्थ हूं। पर रोज तुमसे बात करने की जिद भी तो नहीं करता। और अगर मैं सप्ताह में या महीने में कभी बात कर लेता हूं तो इसमें क्या बुराई है। माना कि हम दोनों के जीवन में अभी अधूरापन है और हमारे बीच दूरियां हैं। पर इस एक बात को लेकर हम दोनों एक-दूसरे को और कितनी चोट पहुंचाएंगे। इसीलिए मैं बात कर लेता हूं कि हम दोनों को थोड़ी खुशी मिले।
शालिनी - खुशी? क्या अब आप मुझे रूलाना चाहते हैं। मुझे नहीं पता आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। अब सुनिए मुझे आपसे बात करके खुशी नहीं मिलती, उल्टे मेरा मनोबल टूटता है। आप मेरे से दूर हैं, मुझसे बात नहीं करते हैं, ये मेरी ताकत है। मैं उम्मीद करती हूं आप समझेंगे। अब आप फोन रख सकते हैं। मुझे कुछ काम है।
अनिरुद्ध - सुनो, एक आखिरी बात। फिर फोन रख लेना। आज ब्लाक मत करना, प्लीज।
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और फिर हमेशा की तरह शालिनी फोन काट देती है। नंबर ब्लाक कर शालिनी फिर से अपनी दुनिया में वापस लौट जाती है।
क्रमशः .....
अनिरुद्ध - शालिनी प्लीज फोन मत काटना, दो मिनट के लिए मुझे सुन लो कि मैं क्या कहना चाहता हूं फिर तुम्हारी मर्जी। विनती कर रहा हूं बस एक बार के लिए मुझे अपनी बात पूरी करने दो।
शालिनी - ठीक है बोलो।
अनिरुद्ध - तुम मेरे सपने में आई थी। पता है सपने में तुम बहुत खूबसूरत लग रही थी। तुमने गुलाबी और सफेद रंग का कोई ड्रेस पहना हुआ था। हम दोनों साथ में कहीं घूमने निकले थे, हम किसी बड़े से झरने के आसपास थे, वहाँ हम दोनों बैठकर बातें कर रहे थे, तुम बार-बार पलकें झपकाकर मुस्कुरा रही थी, तुम बहुत खुश थी मुझसे बात करके। अब ऐसा हो रहा था कि तुम बार-बार झरने को देखकर और उसकी आवाज को सुनकर आंखें बंद कर लेती थी और मैं फिर तुम्हें चुपके से देख रहा था, जो सुकून तुम्हें उस झरने से मिल रहा था, वो मुझे तुम्हें देखकर मिला। एक पल के लिए लगा कि कोई तितली किसी फूल पर बैठी हुई है और हिलने का नाम तक नहीं ले रही। मेरा मन कर रहा था कि धीरे से उस तितली को छू लूं और हमेशा के लिए अपने पास रख लूं।
सपने के दरम्यान मैं बार-बार प्रभु से यह प्रार्थना कर रहा था कि काश ये सिर्फ एक सपना मात्र न हो। लेकिन उठा तो समझ आया कि मैं एक दूसरी ही मायावी दुनिया का हिस्सा था।
इस सपने में आकर तुमने मेरे जहन में ऐसे भाव भर दिए हैं कि मुझे अभी तुम्हारे अलावा कुछ भी नहीं सूझ रहा। समस्त रिक्तियों को भरकर मानो तुम्हारे प्रेम ने मुझे अपने अंतर में रोक कर रख लिया है। सारी उर्जा, मन के सारे भाव और संवेदनाएँ हर जगह तुम अपना अधिकार जता रही हो। ऐसा लगता है कि तुमने मुझे एक ठहराव की ओर खींच लिया है, और उस ठहराव में सिर्फ तुम और मैं।
शालिनी तुम अभी भी मेरी आंखों के सामने झूल रही हो। मुझे नहीं पता कि भाग्य को क्या मंजूर है लेकिन मैं तुम्हें अपनाकर ही रहूंगा।
शालिनी - तो अपना लीजिए न मुझे किसने रोक रखा है। और एक बात याद रखिएगा आपके ऐसे सपनों से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। मैं इन सब मामलों में अब नहीं बहने वाली, इन सब बातों से मेरा ह्रदय नहीं पिघलने वाला, बल्कि मुझे तो तकलीफ होती है। आप सपनों की ऐसी बातें कर मुझे कमजोर कर देते हैं, मेरा मन छोटा हो जाता है। ऐसे सपनों का जिक्र कर मुझे एक खोखली उम्मीद की ओर ना धकेलें तो इसी में मेरी भलाई है। आप बिना कुछ कहे मुझे अपना लें मैं सिर्फ इतना ही तो चाहती हूं।
अनिरुद्ध - ठीक है। पर मैंने जो सपने में देखा वही बात तुम्हारे सामने रखी है। मैं खुद को रोक नहीं पाया। मैं अगर तुम्हें बताता नहीं तो मेरे अंदर ये बातें रह-रहकर मुझे परेशान करती, इसलिए मैंने तुम्हें बताना जरूरी समझा। मैं नहीं कहता कि तुमसे अपनापन मिलने की उम्मीद में ये सब कह रहा हूं। जब लगा कि दिल भारी हो गया है नहीं बता पाया तो मन मसोस कर रह जाऊंगा। इसलिए मैंने बता दिया।
शालिनी - बहुत अच्छा किया आपने। आपको तो मानो एक मौका मिल गया और इस सपने के माध्यम से आपने अपनी भावनाएँ मेरे सामने रख दी। आप बड़े हिम्मतवाले जान पड़ते हैं तभी आप इतना कुछ कर लेते हैं पर क्या आप कभी ये सोचते हैं कि मेरे मन में कितने भाव उमड़ते होंगे, कितनी ऐसी बातें हैं जो मुझे तंग करती है, कितने ऐसे मौके आते हैं जहाँ लगता है कि काश आप पल भर के लिए मेरे पास होते तो क्या हो जाता, मैं कितनी परेशान होती हूं, मुझे कितनी पीड़ा होती होगी ये तो मैं आपकी तरह बोलकर बता भी नहीं सकती। स्त्री हूं, सब झेल लूंगी मैं, मेरे प्रभु ने मुझे इतनी ताकत दी है।
अनिरुद्ध - ठीक है मान लिया कि मैं तुम्हारी पीड़ा समझ पाने में असमर्थ हूं। पर रोज तुमसे बात करने की जिद भी तो नहीं करता। और अगर मैं सप्ताह में या महीने में कभी बात कर लेता हूं तो इसमें क्या बुराई है। माना कि हम दोनों के जीवन में अभी अधूरापन है और हमारे बीच दूरियां हैं। पर इस एक बात को लेकर हम दोनों एक-दूसरे को और कितनी चोट पहुंचाएंगे। इसीलिए मैं बात कर लेता हूं कि हम दोनों को थोड़ी खुशी मिले।
शालिनी - खुशी? क्या अब आप मुझे रूलाना चाहते हैं। मुझे नहीं पता आप ऐसा क्यों कर रहे हैं। अब सुनिए मुझे आपसे बात करके खुशी नहीं मिलती, उल्टे मेरा मनोबल टूटता है। आप मेरे से दूर हैं, मुझसे बात नहीं करते हैं, ये मेरी ताकत है। मैं उम्मीद करती हूं आप समझेंगे। अब आप फोन रख सकते हैं। मुझे कुछ काम है।
अनिरुद्ध - सुनो, एक आखिरी बात। फिर फोन रख लेना। आज ब्लाक मत करना, प्लीज।
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और फिर हमेशा की तरह शालिनी फोन काट देती है। नंबर ब्लाक कर शालिनी फिर से अपनी दुनिया में वापस लौट जाती है।
क्रमशः .....
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