Thursday, 26 October 2017

~ देवी दर्शन ~

                 अप्रैल 2017 की बात है। दोपहर के तीन बजे थे। मैं उस रोज कुछ एक कारणों से बहुत परेशान सा था। इतना परेशान कि मैं सब कुछ नष्ट कर देना चाहता था। हिमनगरी मुनस्यारी में मेरी खिड़की के सामने हिमालय का अद्भुत दृश्य था, फिर भी वो मुझे सुकून नहीं दे रहा था। कोई भी चीज, सुख-सुविधाएं, मनोरंजन के साधन कुछ भी मुझे राहत नहीं दे पा रहे थे। फिर मैं, जो अब तक अपने कमरे में बंद था, बाहर रोड की ओर निकला और अपने दोस्त की दुकान पर चला गया। मैं वहाँ दुकान के बाहर खड़ा हुआ था। ठीक उसी वक्त विवेकानन्द विद्या मंदिर की छुट्टी हुई थी, बच्चे पैदल अपने घर को लौट रहे थे। इतने में एक बच्ची मुझे देखकर रूक गई और मुझे बड़े आश्चर्य से एकटक देखने लग गई।
                 वो बच्ची मुझे कुछ इस तरह देखे जा रही थी कि मैंने अपनी नजरें फेर ली। फिर कुछ सेकेण्ड बाद मैंने उस बच्ची को देखा, वो अभी भी मुझे वैसे ही देखे जा रही थी, फिर मैंने अपनी नजरें दूसरी ओर कर ली। लगभग मिनट भर उसने मुझे देखा फिर वो नजरें झुकाकर निराशा का भाव लिए वहाँ से चली गई। मुझे एक पल के लिए समझ नहीं आया कि मेरे साथ आखिर ये हो क्या रहा है?
उस बच्ची की उम्र चार या पांच साल रही होगी फिर भी वो मुझे ऐसे देख रही थी मानो वो मुझे समझ रही हो।
मेरे मन में तरह-तरह के सवाल आने लगे कि वो बच्ची आखिर क्यों मेरे पास आकर रुकी, क्यों मुझे इस तरह आश्चर्य से देखकर चली गई।
उस बच्ची के वहाँ से जाने के बाद उसके देखे जाने का प्रभाव थोड़ा कम होने के बाद मुझे ऐसा लगा कि वो कोई सामान्य बच्ची नहीं थी, वो कोई और ही थी, कोई और जो मुझे उस बच्ची के सहारे देख रही थी। और जब मेरा ये एहसास मजबूत हुआ, मैं भागते हुए इधर-उधर गलियां छानने लगा, मैं उस बच्ची को खोजने लगा, पर वो कहीं नहीं दिखी। वो शायद अपने घर जा चुकी होगी।
अब मैं उस बच्ची की आंखों को देखने के लिए तड़प रहा था, मैं उससे बात करना चाहता था, बहुत कुछ पूछ लेना चाहता था। पर उस दिन के बाद वो बच्ची मुझे कभी नहीं दिखी।
                 और इन सब के बीच जो सबसे अद्भुत था वो ये कि मैं पूरी तरह से भूल चुका था कि मुझे कोई परेशानी थी। ऐसा लगा जैसे किसी ने आहिस्ते से मेरे माथे पर और आंखों पर हाथ फेरकर मुझे शांत कर दिया हो। ऐसा लगा जैसे किसी ने एक झटके में ही कोई जादू कर सब ठीक कर दिया हो। आज भी जब उस बच्ची की आंखे मुझे याद आती है तो मेरा विश्वास और मजबूत हो जाता है कि वो एक सामान्य बच्ची नहीं थी। वैसे भी उतने छोटे उम्र के बच्चों में ऐसी दृष्टि और आंखों में इतनी गहराई का होना असाधारण ही कहा जाएगा।

Maa Nanda Mandir, Munsyari

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