Thursday, 19 October 2017

~ कश्मीर केसर शिलाजीत Trilogy ~

                             2014 की बात है। फरवरी का महीना था। हम चार दोस्त दिल्ली से वैष्णो देवी दर्शन के लिए जम्मू रवाना हो चुके थे। हम शाम को जम्मू पहुंचे और रात को वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन कर अगले दिन सुबह श्रीनगर की ओर अपनी कार से निकल गये। हमने कटरा (जम्मू) से एक लोकल टूर आपरेटर से पांच दिन का टूर पैकेज ले लिया था। जम्मू से जैसे-जैसे आगे बढ़ते गये, ठंड भी बढ़ती गई। जवाहर टनल आ चुका था, उससे पहले हमारी गाड़ी की चैकिंग हुई। जवाहर टनल दो किलोमीटर लंबा टनल है जो विश्व के सबसे महंगे नेशनल हाईवे 1-A पर बना है, यही श्रीनगर को शेष भारत से जोड़ता है। असल में जवाहर टनल के पहले एक जगह पुलिस की एक छोटी सी टुकड़ी थी जो बड़ी सख्ती से हमारी गाड़ी की चैकिंग कर रही थी, क्योंकि गाड़ी जम्मू की थी तो श्रीनगर प्रवेश करने से पहले जबरन आंखें दिखा-दिखाकर चैकिंग करना आम बात है। पुलिसवालों ने हम सब को लाइन से खड़े कर चैक किया, हमारे एक दोस्त से उन्हें सिगरेट का पैकेट मिला वो उन्होंने रख लिया फिर हम सबको थोड़े सख्त अंदाज में पूछा- दारू रखे हो तो दे दो। हमने कहा - नहीं है। फिर उन्होंने हमें वहाँ से जाने दे दिया।
                             श्रीनगर के पुलिसवालों की सख्ती को कुछ इस तरह समझा जाए कि वे गाड़ियों से शराब जब्त करते हैं और अपना मजे से पीते हैं। हमारे ड्राइवर ने पहले ही हमको समझा दिया था कि सख्त चैकिंग होगी अपनी जुबान से पलटना मत, सब एक सा जवाब देना कि हमारे पास शराब नहीं है। और हमारे ड्राइवर ने रम की बोतल पता नहीं किसी कोने में छुपा कर रख दिया था। हमारे चार दोस्तों में दो लोग पीते थे तो हमने जम्मू से ही रम की बोतल ले ली क्योंकि श्रीनगर में उसी बोतल की कीमत दुगुनी हो जाती है। पुलिसवालों ने जो हमारे दोस्त का सिगरेट का पैकेट रख लिया था वो उन्होंने बाद में वापस कर दिया। और हम श्रीनगर की ओर बढ़ने लगे।
                              अब चारों ओर हमें दूर-दूर तक बर्फ ही बर्फ दिखाई देने लगा। हमारा ड्राइवर जम्मू का ही था, वो भी चार साल बाद श्रीनगर जा रहा था। वो कह रहा था कि श्रीनगर बिल्कुल नहीं पसंद, हां खूबसूरती के नाम पर तो जन्नत हुआ पर यहां का असली रंग हमें पता है, यहाँ का माहौल हमारे लिए ठीक नहीं, इसलिए मैं इधर ज्यादा नहीं आता। हमने कहा- लगता है आपको श्रीनगर से वहाँ के लोगों से बहुत समस्या है। ड्राइवर बोला - नहीं समस्या वाली कोई बात नहीं है। मैं ऐसा क्यों बोल रहा हूं आपको श्रीनगर पहुंचने पर समझ आ जाएगा।
हम सुबह 7 बजे जम्मू से निकले थे श्रीनगर पहुंचते अंधेरा हो चुका था, बारिश भी होने लगी थी। बढ़ते ठंड की वजह से हमें पेशाब लगी तो हमने गाड़ी किनारे लगाई और जैसे ही पेशाब के लिए उतरे, उतने में ही आर्मी वाले चिल्लाने लगे और दौड़ते हुए हमारी ओर आने लगे। हम दौड़कर वापस गाड़ी में बैठ गए। और हम वहाँ से निकल गये। असल में श्रीनगर में हाईवे में गाड़ी खड़े करना मना है इसलिए ऐसा हुआ। खैर हम श्रीनगर प्रवेश कर चुके थे। हमें अगले तीन दिन डल झील के बोटहाउस में ठहरना था। ठंड काफी बढ़ चुकी थी शायद तीन या चार डिग्री के आसपास तापमान होगा, मैदान के मौसम से इस बर्फीले ठंड में प्रवेश करना, हम चारों दोस्तों के लिए ऐसे मौसम में आना एक नया अनुभव था। जैसे ही हमने बोटहाउस में प्रवेश किया, हम तो अंदर की कारीगरी देखकर ही खुश हो गये। बोटहाउस शानदार था। अब हमने इलेक्ट्रिक बैड चालू किया और जो हम सोये अगले दिन सुबह दस बजे उठे।
                              आज सुबह हमें गुलमर्ग घूमने जाना था। लगभग 12 बजे हम गुलमर्ग के लिए निकले। रास्ते में एक होटल में हम चाय नाश्ता करने रुके। वहाँ हमें आर्मी के कुछ जवान मिल गये। उनमें से एक सरदार जी थे उन्होंने हमसे कहा- यार ये कहाँ घूमने आ गये हो, हम तो परेशान हैं यहाँ की ठंड से और यहाँ के माहौल से भी। हमने उनकी बात को नजरअंदाज करते हुए उनके साथ फोटो खिंचवा ली। अब हम गुलमर्ग पहुंच चुके थे। तापमान शून्य से नीचे जा चुका था। इतनी भयंकर बर्फबारी हो रही थी कि सामने दस फीट से आगे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
                              हमने वहाँ स्लेज की सवारी की और स्केटिंग भी किया और शाम तक वापस अपने बोटहाउस आ गये। इलेक्ट्रिक बैड आन किया और कंबल में घुसने के बाद हम सब पेट पकड़-पकड़कर हंसने लगे। असल में आज हम चारों दोस्त बेवकूफ बने थे। चाहे वो स्लेज हो,स्केटिंग हो या ऊपर गुलमर्ग तक जाने के लिए दस किलोमीटर के रास्ते के लिए वो अलग से हमारा 1400 रुपए चुकाना और उस नाममात्र सी गाड़ी में बैठने वाले व्यक्ति का गाइड बनकर जबरन नाक रगड़ के हमसे 600 रुपए ले लेना। कुल मिलाकर हमें बुरी तरीके से ठग लिया गया और हममें से कोई उस वक्त इस बात पर ध्यान नहीं दे पाए। हम ये सब याद करके हंस रहे थे तभी किसी ने हमारे कमरे का दरवाजा खटखटाया, बोटहाउस में काम करने वाले ने कहा कि एक कोई व्यक्ति आया है शिलाजीत जड़ी बूटियां वगैरह लेकर, अगर आप देखना चाहें तो। हमने हां कर दी। जो सामान बेचने आया था उसके हावभाव देखकर ही हमने मना कर दिया कि भैया हमें नहीं लेना। फिर उसने कहा- ठीक है पर देख तो लीजिए, दिखाने के पैसे नहीं लूंगा सर। फिर उसने शिलाजीत निकाला और फिर उसकी मार्केटिंग शुरू हो गई।
                               हमारे जो दो दोस्त पीने वाले थे, वे रम पीकर नीचे ही बैठे हुए थे। मैं और एक और दोस्त हम दोनों कंबल में घुसे हुए थे। तो फिर उस विक्रेता ने बताया कि साहब खास आपके लिए लाया हूं, ये शिलाजीत मामूली नहीं है, लद्दाख से लेकर आया हूं। वहीं के पहाड़ों का जो पसीना है उसी का ये बना है। बाकी जगह के पहाड़ों के पसीने से बने शिलाजीत से कहीं अलग। और ऐसी तरह-तरह की लुभावनी बातें। हमारे रम पीने वाले दोस्त अब उसकी बातों में दिलचस्पी लेने लगे। अब उन दोनों को अपने दादा याद आ गये कि मेरी दादाजी को कमजोरी है, ढंग से आजकल चल नहीं पाते हैं, उनके लिए लेना ही है वगैरह वगैरह। अब पता नहीं उन्हें अपने लिए चाहिए था या अपने दादाजी के लिए पर वे तो अपने दादा के नाम पर दो-दो सौ रुपए का शिलाजीत खरीद लिए। फिर जब उस विक्रेता को लगा कि शिलाजीत का मामला खत्म तो अब वो इत्र दिखाने लगा।
                              उसने बताया कि श्रीनगर के फूलों को बाहर ईरान और अरब भेजा जाता है, वहाँ से ये बनकर वापस श्रीनगर आता है, देख लीजिए एक बार क्योंकि आपको ये कहीं और नहीं मिलेगा। इत्र की खुशबू अच्छी थी लेकिन कीमत थी 600 रुपए।  कीमत की वजह से हमारे दोस्त पीछे हटे वरना वे इत्र भी खरीद लेते। अब जब उस विक्रेता को लगा कि और मेरी बिक्री नहीं होगी तो वो जाने की तैयारी करने लगा।जाते-जाते उसने कंबल में लेटे हम दोनों  को देखकर कहा कि आप भी कुछ ले लो, कश्मीर आए हो, हमने साफ मना कर दिया। जैसे ही वो गया, हमने दरवाजा बंद किया और फिर से पेट पकड़ के हंसने लग गये।
                              जो दोस्त मेरे साथ लेटा हुआ था, उसने अन्य दो लोगों को कहा कि तुम लोग को समझ नहीं आया क्या बे, वो बेवकूफ बना के चला गया, मेरे को तो उसे देख के ही शक हो रहा था। शिलाजीत खरीदने वाले ने भी तुनककर कहा- साले उस टाइम बोल नहीं सकता था। और फिर हम सब शिलाजीत की सत्यता प्रमाणित करने में लग गये। हमने पहले नेट में असली शिलाजीत पहचानने के तरीके देखे और उसी तरीके से जांच शुरू कर दी। एक दोस्त ने विधि अनुसार अपने हथेली में शिलाजीत के छोटे टुकडों को लिया और कुछ बूंद पानी डालकर रगड़ना शुरू किया। अगर रंग नहीं छोड़ता तो असली वरना नकली। वो नेट में वीडियो देख शिलाजीत मलता और हम हंस-हंस कर लोट-पोट हो जाते। क्योंकि समय बीतता जा रहा था और हम किसी निष्कर्ष पर पहुंच नहीं पा रहे थे कि असली है या नकली। और फिर हमने उस समस्या को वहीं छोड़ दिया और सो गये।
                               अगले दिन हम 11 बजे उठे आज हमें डल झील का मार्केट घूमने जाना था। चूंकि मार्केट डल झील में ही था तो हम 12 बजे शिकारा(बोट) की सवारी करते हुए मार्केट की ओर निकले, मार्केट यानि फिर से खरीददारी और हमारा पिछला दो बार का ठगे जाने का अनुभव। रास्ते में हमें चिप्स और बिस्किट बेचने वाले मिले, साथ ही केसर बेचने वाले भी मिले पर हमने मार्केट जाने से पहले कुछ भी नहीं खरीदा। हम सबने मार्केट जाकर अपने घरवालों के लिए कश्मीरी कपड़े शाल वगैरह खरीदे। साथ ही एक केसर की दुकान थी, चूंकि यह मार्केट सरकार द्वारा बसाई हुई थी तो गुणवत्ता में कमी या नकली होने का खतरा नहीं था। इसलिए मैंने और मेरे एक दोस्त ने उस दुकान से एक-एक ग्राम केसर तीन सौ रुपए में खरीद लिया।
                               अब हम वापस मार्केट से अपने बोटहाउस की ओर लौट रहे थे। जब हम मार्केट से वापस लौट रहे थे। तो केसर बेचने वाले एक के बाद मिलने लगे। पहले एक मिला उसने 200 रुपए प्रति ग्राम बताया। दिखने में हूबहू वैसा का वैसा उस 300 रुपए ग्राम वाले केसर की तरह। हमारे एक दोस्त ने तो एक ग्राम खरीद भी लिया। फिर हम आगे बड़े, एक और बोट वाला आया, उसने 200 रुपए और 100 रुपए प्रति ग्राम वाले दो अलग तरह के केसर दिखाए। जो  दोस्त अभी कुछ मिनट पहले 200 रुपए प्रति ग्राम के केसर खरीदा था उसके होश उड़ गये। अब हम तीन दोस्तों ने तो केसर खरीद  लिया था, बच गया एक, उसने भी 100 रुपए देकर एक ग्राम केसर खरीद लिया। हम फिर से हंसने लग गये। अब कुछ देर बाद एक और बोट वाला आया, उसने तो हदें पार कर दी। कहने लगा एक ग्राम 50 रुपए,  टिन का डिब्बा खुला और केसर दिखने में बिल्कुल असली सा। हम चारों दोस्त एक दूसरे को देखकर हंसने लग गये। और फिर हम सब ने मिलकर उस 50 रुपए वाले से चार ग्राम केसर लिया वो भी 100 रुपए में।
                               आज जब शाम को बोटहाउस पहुंचे तो हमने अपना सामान किनारे रख केसर के पैकेट को निकाला। 25,100,200,300 रूपए, सभी तरह के केसर हमने निकाले और फिर पोस्टमार्टम शुरू। चूंकि केसर और शिलाजीत को जांचने की क्रियाविधि एक सी थी। तो हम सबने वही केसर का रेशा लिया और पानी की बूंदे डालकर मलना शुरू कर दिया। 5 मिनट, 10 मिनट, 15 मिनट समय बीतता गया। हम फिर एक दूसरे को देख हंसने लगते, हंसी ऐसी कि रुकने का नाम न ले। फिर जब लगा कि ये हमारे समझ से बाहर की चीज है तो हमने हाथ धोया और सो गये।
                                आप हम चारों की हरकतों के बारे में जानकर ये सोच रहे होंगे कि हम लोगों का दिमाग कहाँ था या हम लोग क्यों इतनी बेवकूफी किए जा रहे थे। असल में हर रात बोटहाउस पहुंच कर खाना खाकर कंबल ओढ़कर हम भी यही सोचते थे कि हम चार बदमाश इंजीनियर्स को कोई कैसे ठग सकता है। आखिरकार पैसे व्यर्थ में जाने की चिंता हमें भी थी। असल में हम चारों पहली बार इतनी ठंड झेल रहे थे,हमारे लिए सब कुछ नया था। बाद में समझ आया कि कश्मीर की उस ठंड में हम हाइपोथर्मिया का शिकार हुए थे।


 Gulmarg-1


 Gulmarg-2


 Gulmarg-3


 Gulmarg-4




 Gulmarg-5


Dal lake


Traffic jam at Gulmarg Road


Passing through Anantnag district


Majestic view Before entering jawahar tunnel


Repose & Gulshan gulshan-  Two Beautiful shikaras(boat) at my left side.


Our Ride


Inside Boathouse- 1




Inside Boathouse- 2


 Boating at dal lake


With army people at a tea stall

Snowfall in Gulmarg

 

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