जो बहुत अधिक संवेदनशील लोग होते हैं, उन पर हमेशा नैतिक मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक दबाव तुरंत असर करता है। उनकी संवेदनशीलता पर ये तीनों दबाव बड़ी आसानी से हावी हो जाते हैं। ऐसे लोगों को अमूमन इनकी उम्र से बड़ा व्यक्ति चाहे वह रिश्ते में इनका कुछ भी लगता हो, वह इन्हें अपना बाप बना लेता है और ख़ुद बेटा बन जाता है, अमुक व्यक्ति पर बाप जैसा मनोवैज्ञानिक दबाव तत्काल बन जाता है।
भारतीय समाज में यह एक ऐसी समस्या है जिसे अगर समय रहते आपने नहीं समझा तो आप शोषित होते रहेंगे और इस चक्कर में अपनी संवेदनशीलता गिरवीं रख जाएँगे।
बहुत अधिक संवेदनशील बच्चों को इस शोषण से बचाने के लिए माता-पिता को चाहिए कि इससे पहले कोई दूसरा आपके बच्चे को बाप के संबोधन का इस्तेमाल कर उसे दिग्भ्रमित करे, उसके कंधों पर बोझ लादे, इससे बेहतर माता-पिता स्वयं अपने बच्चे को माता/पिता बना लें ताकि उसकी नैतिक मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक सुरक्षा हो सके।
अपने आसपास ही परिवार में भी आप देखेंगे तो पाएंगे कि हमेशा एक व्यक्ति ऐसा होता है, जिस पर हर कोई हक से दुनिया जहाँ की जिम्मेदारियों को लाद देता है। किसी का स्कूल कॉलेज आदि में एडमिशन कराना हो, किसी को अस्पताल में भर्ती कराना हो, पैसे उधार देना हो, पारिवारिक कलह का निबटारा करना हो, मौसा फूफा मामा या ऐसे तमाम तरह के दूर के रिश्तेदारों के हर तरह के काम की जिम्मेदारी लेना हो या अन्य इस तरह के ढेरों काम हों, सामाजिक दायित्व हों। यह सब कुछ अमूमन एक किसी महा संवेदनशील टाइप के सिरफिरे व्यक्ति के ऊपर थोप दिया जाता है। अधिकांशतः आप पाएंगे कि ऐसे लोगों में पाचन और नींद की समस्या आजीवन बनी रहती है और यह स्वाभाविक भी है क्यूंकि जब आप एक सीमा और अपनी क्षमता से अधिक जिम्मेवारियों का वहन करते हैं, एक समय के बाद आपके साथ यह समस्या होती ही है।
ईश्वरीय अवधारणा के आधार पर देखें तो इस तरह के लोग ईश्वर को अपनी जेब में लेकर घूमते हैं, क्यूंकि पूरी दुनिया इनका इस्तेमाल कर रही होती है, फिर भी ये किसी को कभी महसूस नहीं करा पाते हैं कि उनके साथ ग़लत हुआ। ये भोगता भाव से ईश्वर की लीला मानते हुए सब कुछ सह जाते हैं।
वहीं तार्किकता के धरातल पर देखें तो वे लोग जो अपने ही व्यक्तित्व की सुरक्षा नहीं करते हैं, घेराबंदी नहीं करते हैं, दुनिया ऐसे लोगों का अपने हित साधने के लिए जमकर इस्तेमाल करती है और महानता का चोगा पहनाकर इन्हें हमेशा नज़रबंद करके रखती है ताकि शोषण की प्रक्रिया अनवरत जारी रहे।
इति।
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