टाटा कंपनी की जब भी बात आती है, सबके मन के भीतर से एक सम्मान का भाव उद्वेलित हो जाता है। या यूँ कहें की एक भरोसा कायम हो चुका है, मान्यता स्थापित हो चुकी है यह भाव विस्फोटित होता है। इस एक भरोसे को अमलीजामा पहनाने के लिए, इस मान्यता को इस छवि को स्थापित करने के लिए कंपनी ने खूब निवेश किया है। साथ ही सरकार से हमेशा समय पर फंडिंग और रियायत मिली है जिसने टाटा को एक श्रीमान भरोसेमंद कंपनी की तरह लोगों के बीच स्थापित कर दिया। जब भी इस कंपनी का नाम ज़हन में आता है, आम लोग इसे एक प्राइवेट कंपनी के रूप में नहीं देखते है बल्कि लगातार मिल रहे शासकीय समर्थन से टाटा ने विगत दशकों से ख़ुद को जिस एक लोककल्याणकारी सहकारी संस्था वाली छवि से अंगीकृत किया, वही लोगों को पहले दिखता है। भले वह अपने मूल में एक प्राइवेट कंपनी है लेकिन भावना के स्तर पर वह सहकारिता का तिलिस्म लिए दिखाई पड़ता है। टाटा ने इस तिलिस्म को बनाए रखने के लिए निःसंदेह खूब मेहनत की है।
बतौर कंपनी टाटा के काम का विश्लेषण किया जाए तो पहली नज़र में ही यह दिखाई पड़ता है कि यह एक तरह से सरकार और लोगों के बीच एक सेफ्टी वाल्व का काम करता है। तभी कंपनी बहुत घाटे में भी रही तब भी उसे बड़े-बड़े प्रोजेक्ट मिलते रहे। एक ओर कोई प्राइवेट कंपनी होती है जो खूब मेहनत कर आगे बढ़ती है, लगातार नवाचार करते हुए अपने लिए संसाधन जुटाती है, लेकिन टाटा की कार्यशैली बहुत अलग रही, यहाँ आपको वैसी मेहनत वैसा नवाचार कम ही दिखता है जिस पर विस्तार से आगे इस लेख पर बात करते हैं।
1.सबसे पहले टाटा की अपनी आई टी फर्म टीसीएस की बात करते हैं, इंजीनियरिंग बैकग्राउंड का होने के नाते अभी तक जितने भी दोस्तों को देखा है, उनमें से शायद ही कोई होगा जिनकी प्राथमिकता में ये कंपनी रही है, क्यूंकि इनका वर्क कल्चर बाकी कंपनियों की तुलना में बहुत अच्छा नहीं है, तनख़्वाह भी तुलनात्मक रूप से कम ही देते हैं।
2.टाटा की बहुचर्चित कार नैनो के बारे में हम सब जानते हैं। कार के नाम पर अगर “क्या बवासीर बना कर दिया है” हम कह दें तो यह बिल्कुल भी ग़लत नहीं होगा, आज की तारीख़ में शायद ही कोई होगा जो नैनो जैसी कार में बैठना चाहेगा। इस कार का प्रोजेक्ट ही बुरी तरह से फेल रहा लेकिन चूँकि सरकारी समर्थन प्राप्त है, पीआर मजबूत है, इसलिए घाटे के बावजूद छवि जस की तस बनी रही। यह कार तो रोड में देखने तक को नहीं मिलती है।
3.टाटा की ट्रक और बाकी कार के बारे में संयुक्त रूप से बात कर लेते हैं। सबसे पहली बात यह की इनकी गाड़ियों में कम्फर्ट नाम की चीज़ होती ही नहीं है, दूसरा आवाज़ बहुत करता है, कूड़ा है तो शोर करेगा ही। इसके अलावा इनकी बाक़ी कार में भी हैंडलिंग बहुत ही ज़्यादा ख़राब है, लोग मूर्खता की हद पार कर मजबूती के नाम पर ख़रीदते रहते हैं। इसमें एक सबसे मजेदार बात यह की ख़राब हैंडलिंग के कारण इसके एक्सिडेंट के मामले सर्वाधिक हैं। टाटा की गाड़ियों की आफ्टर सर्विस का हाल सबको मालूम है। सेल्स डिपार्टमेंट की झूठी रिपोर्ट्स भी अब तो सामने ही है।
4.अब अस्पताल पर आते हैं। टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल सरकारी जमीनों पर बने होते है। अस्पताल को ग्रांट भारत सरकार के Department of Atomic Energy द्वारा मिलती है। इसके बाद भी यहां इलाज का खर्च किसी दूसरे प्राइवेट हॉस्पिटल से कम नहीं है। ऐसा क्यों है कि एम्स पीजीआई जैसे हॉस्पिटल की जगह प्राइवेट हॉस्पिटल्स सरकारी जमीन और अनुदान पर खोले जाए।
5.हम सबके घरों में रसोई में सबसे जरूरी चीज़ होती है - नमक।वहाँ भी टाटा का एकाधिकार है। ऐसा क्यों किया गया कि नमक जैसी मूलभूत जरूरत जैसी चीज को एक कंपनी का एकाधिकार बना दिया गया और जो चीज लगभग फ्री में उपलब्ध होनी चाहिए थी उसके दाम निरंतर बढ़ते रहे। इसके साथ ही किसी और को बढ़ने भी नहीं दिया गया।
6.अडानी अंबानी सरकार से मिलीभगत करके अपने बिजनेस में कमाई करते है, कानूनों को अपने हिसाब से उलटते पलटते है तो सबको बुरा लगता है लेकिन यही काम टाटा कंपनी ने किया तो क्यों नहीं यहां पर कोई कार्यवाही हुई या क्यों नहीं किसी को खटका।
7.कोई व्यक्ति छोटा भी बिजनेस शुरू करना चाहता हो उसे लोन आदि के लिए इतने पापड़ बेलने पड़ जाते है कि वह अपना आइडिया ड्रॉप करना बेहतर समझता है लेकिन दूसरी और यही सब लाखों करोड़ों के फंड जमीनें तरह तरह के रास्ते निकाल कर इन सब को उपलब्ध कराए जाते है। इस बिनाह पर न कि देश में छोटे बिजनेस का कल्चर पनप ही न पाए।
8.फिर भी मेरी समझ से बाहर है कि टाटा कंपनी को पब्लिक में इतनी मान्यता किस बात की वजह से है। जबकि अधिकतर लोग टाटा का कोई सामान जल्दी से खरीदते भी नहीं है। और मान्यता भी ऐसी की जैसे टाटा प्राइवेट कंपनी न हो कर सरकारी कंपनी हो। पारसी लोगो का पहनावा सादगी भरा होता है। लेकिन क्या केवल कोई ढीली शर्ट पेंट पहनता हो केवल इसलिए देश का भला करने वाला हो जाता है?
9.यह बात मान लेते है कि उद्योग वाला विकास हमें पसंद है तो बाकी उद्योग कि जैसे घड़ी बनाना, सरिया, स्टील बनाना तो यह सब काम तो और बहुत लोग भी बहुत बढ़िया से करते आ रहे। वैसे ही जैसे टाटा मोटर्स के सामने और कई कंपनियां है जो टाटा से बहुत बेहतर कार आदि बनाती है और लोगों को भी ज्यादा पसंद है। फिर भी देश का भगवान टाटा ही है, आखिर हमें भगवान पालने का इतना शौक क्यों ?
फिर भी कोई बताना चाहे तो बता सकता है कि उसके मन में टाटा को लेकर क्या मान्यता है और उस मान्यता का क्या कारण है। मान्यता का कोई कारण न भी हो तब भी चलेगा।
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