लोकतंत्र को चलायमान रखने के लिए बहुत से कामकाजी तत्व होते हैं उनमें गुटखा महत्वपूर्ण अवयवों में से एक है। जिस तरह नदी में पानी के बहाव को रोकने के लिए बांध की आवश्यकता होती है, उसी तरह गुटखा लोकतांत्रिक प्रक्रिया में एक चेक डेम की भांति कार्य करता है। एक ओर जहां पनबिजली का काम हो जाता है, यहां फाइलें निराकृत होती हैं। गुटखा का इस्तेमाल अधिकतर वही व्यक्ति करता है जिसे खामोश रहना होता है, जो यह समझ जाता है कि जुबान खोलने के अपने जोखिम अधिक हैं, वह व्यक्ति गुटखे को अपने व्यक्तित्व में शामिल कर लेता है।
इसके ठीक उलट एक बिरादरी ऐसी भी होती है जो गुटखे से दूर रहती है या यूं कह सकते हैं कि उन्हें इसकी जरुरत नहीं पड़ती है, यह जरुर है कि उनकी वजह से नीचे पायदान का व्यक्ति गुटखा खाता है। अमूमन होता यह है कि तनाव देने वाले को हमेशा जुबान नामक छुरी चलानी होती है, इसलिए वे गुटखा चबा ही नहीं सकते। गुटखा वही चबाता है जिन्हें निरंतर मिल रहे तनाव को सुपारी की तरह चबा कर पचाना होता है।
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