Wednesday, 18 October 2023

दाल, थप्पड़ और गणित का विषय -

इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों की बात है। तब मैं फर्स्ट ईयर में था और हॉस्टल में रहता था। एक दिन हॉस्टल के मेस में जहां टेबल में ही सबके लिए दाल की बाल्टियां रख दी जाती थी, वहां से मैंने उस बाल्टी से दाल निकाला, अब चूंकि वह टेबल सनमाइका का था और नीचे हल्का सा पानी था तो दाल की पूरी बाल्टी जिसमें लगभग 10 लीटर तक दाल आ सकती थी, वह आधा भरा हुआ था और जैसे ही मैं दाल निकालने के लिए चम्मच डालने लगा, दाल की पूरी बाल्टी गिर गई और फिर इसके बाद मेरे दोस्त यार हंसने लग गए, मेस का प्रबंधक जो साउथ इंडियन था वह यह सब देख रहा था, उसे यह लगा कि मैंने जानबूझकर दाल की बाल्टी गिराई। और उसने इस बात की कम्पलेन हाॅस्टल के सीनियर्स से कर दी। 

बताता चलूं कि जिस हाॅस्टल में मैं रहता था, या जिस काॅलेज में मैं पढ़ता था, उसे मिनी केरला कहा जाता था, उसका कारण यह था कि 50% मैनेजमेंट कोटा साउथ इंडियन मलयाली छात्रों के लिए आरक्षित रहता था, इस कारण से जो अधिकतर छात्र आते थे वह हॉस्टल में ही रहते थे और हॉस्टल का पूरा स्टाफ भी अधिकतर मलयाली ही था, और हमारे मेस का मेनू भी ऐसा था कि हमको लगता था कि हम केरल में ही रहते हैं। छत्तीसगढ़ के 20-30% छात्र ही हाॅस्टल में रहते थे। इन सब कारणों से न चाहते हुए भी एक तरह से छत्तीसगढ़ बनाम केरला का एक गुट बन जाता था, जो कई सालों से प्रासंगिक था। लेकिन जिसका बहुमत उसका दबदबा वाली चीज थी ही जो मैंने खुद भी कई बार महसूस किया।

उस मेस के प्रबंधक ने जिसने मुझे दाल गिराते देखा, उसने मेरी कम्पलेन साउथ इंडियन सीनियर्स से कर दी। उन्होंने मुझे बुलाया, चार-पांच लोग थे सारे के सारे मलयाली और मैं उनके सामने खड़ा था। तब तो मैं 18 साल का नौजवान था, दाढ़ी तक नहीं उगी थी, और मेरे सामने वे चार पांच साउथ इंडियन जो बकरा दाढ़ी रखे हुए थे, जिस कारण से वे काफी उम्रदराज और गुंडे की माफिक लगते थे। बताता चलूं कि मुझे हॉस्टल में आए बमुश्किल दो सप्ताह ही हुआ था, सीनियर्स के साथ क्या अलग तरह से व्यवहार करना है, कैसे फंडे हैं, कायदे कानून हैं, इसके बारे में भी बहुत जानकारी नहीं थी बस इतना पता था कि जब सीनियर्स दिखें उन्हें गुड मॉर्निंग गुड इवनिंग विश करना है। तो जब मैं उनके सामने गया, मैं सीधे खड़ा था, एक सीनियर से सीधे मेरे गाल में एक थप्पड़ रसीद कर दिया और मेरी गर्दन को पकड़ कर जोर देकर झुका दिया और कहने लगा कि मुझे सीनियर्स के सामने खड़े होने की तमीज नहीं है। तब तक मुझे थर्ड बटन रूल पता ही नहीं था, मैंने कहा कि मुझे नहीं पता सर, मैं नया आया हूं‌। इसके बाद जवाब देने की वजह से उन्होंने फिर मुझे चिल्लाकर डांटा कि मैं जवाब क्यों दे रहा हूं, एक ने कहा कि क्या मैं कहीं का नवाब हूं, उसने कहा कि सीनियर्स के सामने जवाब नहीं दिया जाता, चुप रहा जाता है। यह सब होने के बाद उन्होंने मुझ पर आरोप लगाया कि मैंने जानबूझकर दाल की बाल्टी गिराई, जिस पर मैंने कहा कि मैं खेती किसानी वाले परिवार से हूं, भोजन का सम्मान करता हूं, मैंने जानबूझकर दाल की बाल्टी नहीं गिराई, सनमाइका में पानी गिरा था, इस वजह से मुझसे स्लिप हो गया, जिसका मुझे खेद है। इसके बाद उन्होंने मुझे धमकाते हुए जाने कह दिया और सीनियर्स के सामने हमेशा झुक कर रहने और जवाब न देने की हिदायत दी, साथ ही यह भी कहा कि यह एक थप्पड़ तो कुछ भी नहीं है इसलिए इसे मैं इसे सजा के तौर पर ना लूं, यह सिर्फ एक सीख है। 

इसके बाद मैं अपने कमरे में आ गया, अपने गुस्से को पता नहीं क्यों उस दिन संभाल नहीं पा रहा था, कमरे मैं और भी दोस्त रहते थे जिन्होंने दाल की बाल्टी गिरने के बाद हंसने का अभूतपूर्व योगदान दिया था, वह मुझे सांत्वना दे रहे थे लेकिन उनकी सांत्वना काम नहीं कर रही थी। मैं इस बात को पचा नहीं पा रहा था कि बिना किसी गलती के मुझे क्यों थप्पड़ मारा गया। फिर एक साउथ इंडियन सीनियर मेरे कमरे में आया और मुझे समझाते हुए कहा की यह सामान्य सी बात है, और इस बात को मैं अपने मन में ना रखूं, यह सीनियर उस थप्पड़ मारने वाले सीनियर से अलग था। मैंने उस सीनियर की ओर देखा भी नहीं और पीठ करते हुए ही चुपचाप हां कहकर अपनी मौन असहमति जता दी। मेरा गुस्सा अभी तक बरकरार था जो शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था, मुझे किसी को फेस करने का मन नहीं कर रहा था, फिर मैं बाथरूम चला गया और खुद को बंद कर लिया, लोहे को उस दरवाजे को इतनी जोर से बंद किया कि शायद आधे हॉस्टल ने सुना होगा, फिर गुस्से की वजह से मेरे आंसू आ गए और इसके बाद बाथरूम में लगे टाइल्स को मैं इतना जोर से पंच मारा कि वह टूट कर नीचे बिखर गया।

फिर यह घटना मेरे स्मृति से हट गई और हम सब अपने काॅलेज में व्यस्त होने लगे। 4 साल पूरा हो चुका था और मैं काॅलेज से पास आउट हो चुका था। लेकिन जिस सीनियर ने मुझे बिना मेरी किसी गलती के थप्पड़ मारा था, उसका एक पेपर मैथ्स ( M-3 ) रूक गया, वह पढ़ाई में बहुत अच्छा था, उसके सारे पेपर क्लियर हो जाते लेकिन वही एक पेपर रूक जाने की वजह से वह एक साल पीछे हो गया। अब वह फाइनल ईयर में हमारे साथ पेपर दे रहा था। वह सीनियर बहुत ही ज्यादा टैलेंटेड आदमी था, एक तो कोई कार या ट्रक का प्रोटोटाइप उसने अपने इंजीनियरिंग के पांचवें सेमेस्टर में ही बना लिया था, जिसका ट्रायल वह पूरे काॅलेज कैम्पस में किया करता‌। स्पोर्ट्स, मंच संचालन और अन्य गतिविधियों में भी अव्व्ल। एक तरह से सबका चहेता था। लेकिन उस एक पेपर ने उसे पीछे कर दिया। फाइनल ईयर में जब उसके बैच के सारे लोग कालेज छोड़कर जा चुके थे, वह कैम्पस में अकेला घूमता, और जब भी मैं उसके सामने आता, वह पता नहीं क्यों हमेशा मुझसे खुद आकर हाथ मिलाता और गले मिलता, यह सिलसिला हमेशा चलता रहा। वह जब-जब मेरे से गले मिलता तो मुझे हमेशा उसका थप्पड़ याद आता, एक बार तो उसने शायद मुझसे माफी भी मांगी, मैंने कहा कि सर कोई बात नहीं, शर्मिंदा मत करिए। मुझे उससे मिलना अटपटा ही लगता कि आखिर क्यों ही मिल के घाव ताजा करना। 

फाइनल सेमेस्टर का पेपर हुआ। मैं पास हो गया और काॅलेज से मुक्त हो चुका था। काॅलेज खत्म होने के छह महीने बाद एक दिन जब मैं अपना टीसी लेने गया, तब मुझे वह सीनियर दिख गया और हमेशा की तरह फिर से मुझसे आकर गले मिलने लगा, और बहुत दुःखी होकर मुझे बताने लगा कि मैथ्स का‌ पेपर उसके लिए नासूर बन चुका है, और मैं कुछ उसे उपाय बताऊं, मुझे पता नहीं क्यों उस दिन उसके लिए बहुत खराब लगा, मैंने मन ही मन उसके पेपर क्लियर हो जाने की दुआ कर दी और इस बोझ से खुद को मुक्त कर लिया। 

कभी कभी सोचता हूं कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। वह सीनियर जो इतना होनहार था, वह लगातार एक ही विषय में फेल होने के बाद जब एक साल पीछे होकर हमारे साथ आ गया, तब ही उसने मुझसे हाथ मिलाने और गले मिलने की औपचारिकता क्यों शुरू की। क्या वास्तव में कुदरत का कानून हम पर इतना हावी हो जाता है कि हम अपना अहं, अपनी क्षुद्रता त्याग देते हैं और उसके सामने खुद को सौंप देते हैं, क्या सचमुच सब के साथ ऐसा होता है ?

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