वे जीव जो किसी अन्य जीव पर आश्रित (भोजन तथा आवास) होते हैं, परजीवी जन्तु (parasite) कहलाते हैं जैसे: जोंक, फीताकृमि, जूं आदि। मोटे तौर पर यदि देखा जाए तो जन्तु समुदाय के सभी सदस्य किसी न किसी जन्तु या पौधे पर निर्वाह करने के कारण 'परजीवी' कहे जाने चाहिए।
परजीविता का यह गुण सिर्फ जन्तु या पादप तक सीमित न होकर मनुष्यों में भी है। मनुष्यों में भी अलग-अलग तरह के परजीवी होते हैं। सुभीते के लिए मनुष्यों में पाई जाने वाली परजीविता को मैं दो भागों में विभक्त कर रहा हूं -
1. सामान्य परजीवी - सामान्य परजीवी वे होते हैं जो अपने भोजन, आवास एवं अन्य दैनिक आवश्यकताओं के लिए स्वयं कोई कार्य जैसे : नौकरी, खेती, व्यापार आदि करते हैं और इसके अलावा अपनी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरे सामान्य परजीवियों से समन्वय स्थापित करते हैं। सामान्य परजीवियों में सहजीवन, उत्तरदायित्व, कर्तव्यबोध का गुण विद्यमान होता है। सामान्य परजीवी खुद को पहली प्राथमिकता देते हैं लेकिन दूसरों को जरा भी नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, उन्हें भी साथ लेकर चलने का गुण इनमें होता है। एक स्वस्थ समाज के निर्माण में ये प्राथमिक घटक के रूप में होते हैं।
2. विलक्षण परजीवी - विलक्षण परजीवी वे होते हैं जो अपने भोजन, आवास एवं अन्य दैनिक आवश्यकताओं के लिए स्वयं कोई कार्य अलग से नहीं कर रहे होते हैं बल्कि आपात स्थिति में कार्य करने का दिखावा करते हैं। विलक्षण परजीवियों का योगदान समाज में शून्य होता है बावजूद इसके वे अपनी सारी जरूरतों के लिए सामान्य परजीवियों पर आश्रित होते हैं। विलक्षण परजीवियों में सहभोजिता भी बहुत अलग तरह की होती है, अमूमन जंतुओं में सहभोजिता का गुण ऐसा होता है कि एक जंतु दूसरे जंतु से लाभ लेगा लेकिन दूसरे जंतु को न लाभ होता है न हानि होती है लेकिन विलक्षण परजीवी अपने सामान्य परजीवी से लाभ भी लेता है और बदले में उसे नुकसान भी पहुंचाता है। इन्हीं सब गुणों की वजह से इन्हें विलक्षण परजीवी कहा जाता है।
उदाहरण : पिताजी की बनाई बिल्डिंग से प्राप्त होने वाले किराए की वसूली कर जीवन यापन करने वाला बेटा, पोथी पुराण रटकर आमजन को मूर्ख बनाकर उनसे उगाही करने वाले बाबा, दिन रात ज्ञान देने वाले स्वयंभू विशेषज्ञ आदि।
गृहकार्य : विलक्षण परजीवियों की सूची बनाइए और उनकी परजीविता को दर्शाने वाला एक गुण लीखिए।
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