Tuesday, 24 January 2023

हिंसा के प्रतिगामी -

कठोर संघर्ष से उठे हुए व्यक्ति के भीतर अगर प्रेम खत्म हो जाए तो वह बहुत अधिक हिंसक हो जाता है। जिसने बचपन से अपने दैनिक जीवन में भयानक शोषण, गरीबी, अपमान और ऐसी तमाम तरह की आर्थिक सामाजिक विद्रूपताएं झेली होती हैं, जो जीवन के पग-पग पर समझौता करते ही जीवन बिताकर आया होता है, ऐसा व्यक्ति जब ऊपर उठकर कहीं पहुंचता है, जब आराम और सुविधाएँ उसके हिस्से आती है, तो ऐसी स्थिति में अमूमन दो तरह की चीजें होती हैं। पहला तो यह कि वह व्यक्ति जीवन के प्रति सहज हो जाता है, कृतज्ञता से भर जाता है, प्रेम उसके भीतर बहने लगता है, ऐसा व्यक्ति जीवन की कठोरताओं को अपने भीतर हावी नहीं होने देता है। दूसरे जो लोग होते हैं वे जीवन की इन परीक्षाओं से लड़ते-जूझते कहीं खो से जाते हैं, भीतर से बहुत अधिक कठोर हो जाते हैं, प्रेम इनके भीतर मर जाता है, कुशल कूटनीतिज्ञ बन जाते हैं, घाघपना इनके खून में बहता है, येन-केन-प्रकारेण हर तरह का वर्चस्व हासिल कर लेना ही इनके जीवन का अंतिम लक्ष्य बन जाता है चाहे उसके लिए कोई भी रास्ता क्यों न चुनना पड़े, अमूमन ऐसे लोगों को न प्रेम का ताप छू पाता है न ही कोई तूफान इन्हें हिला पाता है, अपनी कठोरता को ओढ़े ये अडिग अविचल सतत अपने अदृश्य हिंसा रूपी पथ पर अनवरत बने रहते हैं, ऐसे लोग समाज में भयानक अंतर्विरोध पैदा करते हैं। 

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