फिल्में वही दिखाती हैं जो समाज में घटित हो रहा होता है। साल 1995 में फिल्म आई थी - कुली नंबर 1. जिसे फिल्म की कहानी के बारे में नहीं पता उन्हें बताता चलूं कि एक करोड़पति बाप होता है, उसकी दो बेटियाँ रहती है, उस करोड़पति बाप की इच्छा रहती है कि अच्छे लड़कों से उन बेटियों की शादी हो जाए। फिल्म का किरदार राजू यानि गोविंदा जो कि कुली रहता है, फर्जी तरीके से करोड़पति के भेष में शादी रचा लेता है। उसके लिए तो चाँदी ही चाँदी हो जाती है, दामाद बनकर रातों रात करोड़पति जो हो जाता है, इसलिए अपनी साख बनाए रखने के लिए जमकर अपनी बीवी और अपने ससुर की तारीफ करता है। लेकिन अपनी असल हकीकत छुपाने के लिए वह लगातार प्रयासरत रहता है। मामला खराब न हो इसके लिए जुड़वा भाई की कहानी भी रचता है। खूब सारे तीन तिकड़म करता है, जमकर फील्डिंग बिछाता है। उस शादी को बचाए रखने के लिए तमाम तरह के झूठ प्रपंच गढ़ता है, लेकिन धीरे-धीरे वो और फंसता जाता है और एक दिन उसका पर्दाफा़श हो जाता है।
ये तो रही फिल्म की कहानी जिसमें दर्शक दीर्घा की माँग को ध्यान में रखते हुए हमेशा न्याय दिखाया जाता है और एक सुखद अंत हमारे सामने होता है। लेकिन वास्तविक जीवन में जो राजू सरीखे लोग होते हैं वे आजीवन पकड़ में नहीं आते हैं।
अपने आसपास हम देखें तो पता चलता है कि हममें से हर किसी ने अपने जीवन में राजू जैसे कुछ किरदारों को देखा ही होता है, जो बीवी और बीवी के खानदान की चौबीसों घंटे तारीफ करने के मोड में लगे रहते हैं, ऐसे लोग एक इंसान के रूप में कभी सही होते ही नहीं हैं। इसमें भी जो बहुत बड़े वाले होते है, वो तो जितने जोश में बीवी के खानदान की तारीफ करते हैं, उतने ही जोश में अपने खानदान की ऐसी तैसी भी करते हैं। अंत में यही कि जैसे ही कोई बीवी के घर वालों का गुणगान करे, कुली नंबर 1 फिल्म को याद कर लीजिएगा।
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ReplyDeleteपोस्टमार्टम ही कर दिए प्रभु।
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