Friday, 23 September 2022

मानव बम - 2

"मानव बम" रूपी चरित्र के बारे में लिखते हुए 50 प्वाइंट हो चुके हैं, ( मानव बम असल में पिछली पोस्ट का शीर्षक ही है) सोच रहा हूं कि आखिर कितनी व्याख्या कर पाया, अपनी बात के साथ कितना न्याय कर पाया। लगातार खुद का आंकलन भी करता चल रहा हूं कि कहीं हिंसा, प्रतिशोध जैसे भाव तो नहीं उमड़ रहे और क्या ऐसे भाव मेरे भीतर के मूल स्वभाव पर हावी तो नहीं हो रहे। जब हम ऐसे पड़ताल करते हैं बहुत अधिक सावधानी बरतनी पड़ती है क्योंकि बहुत से आयाम होते हैं, आप इनके फैलाए रायते के पीछे पड़ताल करते रह जाएंगे लेकिन कभी खत्म नहीं होगा। यह भी ध्यान रखना पड़ रहा है कि मैं अपने लिखे के प्रति कितना सहज हूं। कहीं मेरे लिखे किसी एक वाक्य में भी महानता का तत्व तो नहीं है। जितना समय इस पूरी पड़ताल में लग रहा है, उससे दुगुना समय खुद के लिए भी दे रहा हूं और पूरी कठोरता के साथ खुद का आंकलन करता चल रहा हूं कि इस पूरी प्रक्रिया में मेरे भीतर कैसे भाव उमड़ रहे हैं। बाकी एक बात तो पूरे अधिकार से कहना चाहता हूं कि अपने लिखे एक-एक वाक्य को लेकर हद से ज्यादा स्पष्ट हूं, हिमालय सा अडिग हूं। मुझे अपने बारे में कोई भी संदेह नहीं है। 

बम तो बम होता है, बम महान होता है, बम की अपनी व्यापकता होती है। बहुत सोचने विचारने के बाद मानव बम शीर्षक देने का सोचा। मानव बम रूपी इंसान की भी अपनी खूबसूरती होती है, लेकिन एक बम को नकारने के लिए उसके एक विस्फोटक चरित्र का होना ही काफी होता है।

एक संदेश यह भी जाता होगा कि मैं मानव बमों से गहरे प्रभावित हुआ होऊंगा लेकिन पूरी तरह ऐसा नहीं है। कुछ लोग किनारे में बैठकर ऐसे मानव बमों के असर को लगातार देख रहे होते हैं। मैं बहुत हद तक किनारे में रहा, इसलिए भी लिख पा रहा हूं। मेरे मूल स्वभाव के प्रति मेरा भरोसा, थोड़ी बहुत ईमानदारी, अस्तित्व की शक्ति और मेरे शुभचिंतको ने मुझे हमेशा संभाला है। जो लोग मानव बमों से बहुत अधिक प्रभावित होते हैं, ऐसे लोग या तो गुमनाम हो जाते हैं या हिंसा के साथ प्रतिक्रिया देने लगते हैं, खुद को बचा नहीं पाते हैं। उनकी प्रतिक्रिया में भी हिंसा कम और जीवन के प्रति पैदा हो चुकी कठोरता अधिक होती है। वे संतुलित विनम्र होकर अपनी बात कहने की क्षमता खासकर ऐसे मामलों में खो चुके होते हैं। जो कुछ भी झेले होते हैं, उससे पैदा हो रही पीड़ा झटके में फूटकर उन्हें प्रभावित कर ही देती है। 
मोटा-मोटा फिलहाल के लिए यही समझ आया कि जितनी सूक्ष्मता से गहराई में जाकर एक-एक चीज को महसूस कर रहा हूं, शायद उसका आधा भी लिखकर बताना संभव नहीं है‌, शायद ही किसी को अच्छे से समझा पाऊं। इसलिए अभी के लिए थोड़ा विश्रामावस्था में जाना बेहतर समझ रहा हूं।

इति।।

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