41. पब्लिक डोमेन में कभी कोई आर्थिक सामाजिक रूप से मजबूत व्यक्ति इनको खुलकर तवज्जो नहीं देता है, वो बात अलग है कि ये लोग उनके नाम का डंका जरूर पीटते हैं ताकि दुनिया के सामने अपना सीना चौड़ा कर सकें।
42. विडम्बना देखिए कि इनके लिए प्रेम बरसाने वाले हमेशा दबे कुचले या इनसे नीचे के लोग ही होते हैं।
43. ये जिस जीवन मूल्य को अपने जीवन का आधार मानते हैं, उस जीवन मूल्य के बारे में हमेशा बातें करते रहते हैं, आप देखिएगा कि उसी जीवन मूल्य के प्रति ये सबसे ज्यादा गैर-जिम्मेदार होते हैं।
44. इतनी बड़ी साख वाले ये महान आदमी। जाहिर है उस महानता वाली शख्सियत की अपनी व्यस्तता भी होगी। लेकिन फिर भी अपने चेले चपाटों को ज्ञान देने के लिए इनके पास भरपूर समय होता है।
45. मुख्यधारा के समाज में इन्हें कोई उस तरह से नहीं जानता, इनकी पहचान एक तरह से जीरो ही होती है, लेकिन जिन रसूख/पाॅवर वालों को ये टार्गेट किए होते हैं, उनके साथ अपनी पहचान गिनाकर खुद को महान बताते हैं।
46. चूंकि भारी भरकम रसूख वालों के साथ अपने संपर्क को गिनाते हैं तो भारत का अदना सा व्यक्ति कभी इनसे सीधे कुछ पूछने या आराम से बात करने लायक स्पेस नहीं बना पाता है। इन्होंने पहले ही खुद सारा स्पेस ब्लाक करके रखा होता है।
47. जैसे एक चपरासी एक अधिकारी को उनके पद अनुरूप उसका सम्मान करता है, इनके साथ आम लोगों के रिश्ते कुछ वैसे ही होते हैं। वे डर के मारे कभी सामान्य सी बात भी नहीं कह पाते हैं क्योंकि ये इतनी मजबूत आभा बनकर चलते हैं।
48. जिस डर/भय के तत्व को किसी धर्म या विचारधारा से जुड़ा व्यक्ति अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है। ये भी उसी तलवार का प्रयोग कहीं अधिक हिंसा से अपने हित साधने के लिए करते हैं।
49. राम रहीम दवा के मदद से भक्तों को नपुंसक बनाता था, ऐसे लोग अपनी बातों से मानसिक रूप से नपुंसक बनाते हैं।
50. कोई साफ मन से भलाई सोचकर भी कुछ कहे वह गलत नियत वाला हो जाता है। लेकिन चूंकि इन लोगों के पास नियत को नापने की भी मशीन होती है तो ये अपनी नियत को सही नियत का तमगा देकर आपको जलील भी कर सकते हैं, अपशब्द भी कह सकते हैं, आपका जीवन भी बर्बाद कर सकते हैं।
51. इनके जीवन का आधार-स्तंभ ही विरोधाभास होता है। इनका विरोधाभाषी चरित्र इनके लहू के एक एक कतरे में आजीवन बहता रहता है। अहिंसा की बात करते हैं और जमकर हर तरह की शाब्दिक वैचारिक हिंसा करते हैं, न्याय की बात करते हैं और जमकर धोखेबाजी करते हैं, प्रेम की बात करते हैं और खूब नफरत को जीते हैं, वस्तुनिष्ठता की बात कर जमकर व्यक्तिगत होते हैं, योग्यता मेधा की बात करते हैं और धूर्त लोगों की टोली के सरदार बने फिरते हैं, एक ओर मानवीय संबंधों रिश्तों की महत्ता गिनाते हैं वहीं दूसरी ओर अपने ही करीबी लोगों को मानसिक चोट पहुंचाते रहते हैं, बात-बात पर विनम्रता की दुहाई तो देते हैं लेकिन जब मौका पड़ा जमकर गुंडई दिखाते हैं, नियत को आधार बनाते हैं और नियतखोरी का पहाड़ खड़ा कर देते हैं, सामाजिकता की बात करते हैं जबकि खुद भयानक असामाजिक प्रवृति के होते हैं।
52. मुख्यधारा का आम आदमी इन जैसे लोगों से संपर्क को सोशल कैपिटल मानता है। और अपनी उस कैपिटल को चोट नहीं पहुंचाता है। कहीं गलती से आर्थिक वाला मामला सेट हो जाए तो ऐसी कैपिटल का भ्रम भी खत्म होता जाता है। मानव बम का असल रूप कभी नहीं दिख पाता।
अब कितना ही लिखा जाए , अब चूंकि हम महान नहीं हैं, सामान्य मनुष्य हैं तो अपनी भूख नींद और बाकी रूटिन की चीजें भी ये सब से प्रभावित होती ही है, (बारूद के ढेर में सफाई के लिए इंसान उतरे तो कपड़ों पर बारूद की परत लगती ही है, झाड़ने से काम नहीं चलता है, बार-बार कपड़े गंदे होते हैं, शरीर गंदा होता है तो बार-बार नहाना पड़ता है यही स्थिति है) क्या है इंसान की अपनी दैनिक दिनचर्या के काम भी होते हैं, परिवार होता है, जिम्मेदारियाँ होती है। और जिनका खुद का जीवन हर प्रकार से सुरक्षित हो जाए तो ऐसे मानव बम रूपी लोग किसी भी प्रकार की क्रांतिकारिता गढ़ सकते हैं।
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