Thursday, 26 May 2022

सोशल मीडिया के आने से लड़कियों की स्वतंत्रता बढ़ी है -

सोशल मीडिया के होने से लड़कियाँ मुखर हुई हैं, उन पर हिंसा की मात्रा कुछ हद तक कम हुई है, या इस तरीके से कह सकते हैं कि जिस तरह की हिंसा पहले होती थी, अब वह नहीं होती है। 

आज से पंद्रह साल पहले जब सोशल‌ मीडिया प्रचलन में नहीं आया था तब एक लड़की के लिए अपनी पहचान अपनी तस्वीर लोगों के सामने रखना अपने आप में एक बहुत बड़ी बात होती थी, खतरा ही समझते थे। मेरे जानने में अधिकतर लड़कियाँ ऐसी रही कि जिनकी कोई तस्वीर किसी के पास है, तो उन्हें अपने चरित्र को लेकर एक अजीब किस्म का अपराधबोध होता था, इस अपराधबोध के चलते वह लड़कों से बात तक कर लेती थीं कि वह उनकी क्लोज फोटो फेंक दे या डिलिट कर दे। 

तब उस समय आरकुट था, कैमरे वाले फोन भी नहीं थे, उस समय जो अपनी तस्वीरें शेयर करतीं, उनको बहुत एडवांस, चंट, फार्वर्ड न जाने क्या क्या कहा जाता। जब आरकुट मृत्यु की कगार पर था, और फेसबुक अपने पाँव पसार रहा था, तब एक तूफान सा आया, जिसमें लड़कियाँ खुलकर अपने आपको प्रस्तुत करने लगी, यानि सिर्फ लड़के ही क्यों सोशल मीडिया में मौज काटें। तब का समय याद है, इंटरनेट इतना सुलभ नहीं हुआ करता था, 3G भी नहीं था, लोग कैफे में घंटों बैठकर अपने स्कूल कालेज की लड़कियों की तस्वीरें देखकर ही चौड़े हो जाया करते। कुछ नल्लों का यही काम रहता कि वे तस्वीरों का कलेक्शन रखा करते। 

तब का समय देखिए, और आज, आज तो ऐसा हो गया है कि अब किसी को अगर कोई लड़की पसंद है तो उसे अलग से देखने के लिए घर के पास राउंड मारने तक की जरूरत नहीं है, कहीं घूमने जा रही हो तो पीछे जाकर छुपकर देखने का झंझट ही खत्म। लड़कों को अब वन टच में सोशल मीडिया में सीधे तरोताजा रील ही देखने मिल जाता है, लड़कियों के लिए भी चीजें थोड़ी आसान हुई है। लड़कियों ने खुद ही खुलकर अपने आप को सोशल मीडिया में अपडेट करते हुए लड़कों को बहुत हद तक शांत किया है, चीजें बहुत हद तक नार्मलाइज हुई हैं। अब किसी को किसी लड़की का फोटो चोरी करने, या सेव करने की जरूरत ही नहीं है, अब तो इतनी सारी जानकारी आसानी से उपलब्ध हैं कि किसी की तस्वीर का स्क्रीनशाॅट भी लेने‌ की आवश्यकता नहीं, निजता का भले भूस बन चुका हो फिर भी मैं इसे सकारात्मक रूप में देखता हूं।

लेकिन, लेकिन अटैक तो आज भी उतने ही हैं जितने पहले थे, पहले लड़के सामने फूल पत्र दिया करते, किसी दोस्त से बुलवाते या फिर जैसे किसी अनजान का पीछा करते, वैसे यह आज भी होता है, लेकिन आजकल सोशल मीडिया में इनबाक्स में हमले ज्यादा बढ़ गये हैं। कैसे भी एक बार चेहरा देख लेने की चाह ने व्हाट्सेप्प और रील तक की दूरी तय की है। इस दरम्यान लड़कियों ने लड़कों के भीतर की हिंसा को कुण्ठा को बहुत हद तक कम किया है। लड़कियों को साधुवाद। 

भारतीय इतने भ्रष्ट क्यों हैं?

दुनिया के भ्रष्टाचार मुक्त देशों में शीर्ष पर गिने जाने वाले न्यूजीलैंण्ड के एक लेखक ब्रायन ने भारत में व्यापक रूप से फैले भ्रष्टाचार पर अंग्रेजी में एक लेख लिखा है। 

लेख का हिन्दी अनुवाद -

भारतीय लोग होब्स विचारधारा वाले हैं (सिर्फ अनियंत्रित असभ्य स्वार्थ की संस्कृति वाले)
भारत में भ्रष्टाचार का एक सांस्कृतिक पहलू है। भारतीय भ्रष्टाचार को लेकर बिल्कुल असहज नहीं होते, भारत में भ्रष्टाचार व्यापक रूप से फैला हुआ है। भारतीय किसी भ्रष्ट व्यक्ति का विरोध करने के बजाय उसे सहन करते हैं। कोई भी नस्ल जन्मजात इतनी भ्रष्ट नहीं होती है।

ये जानने के लिये कि भारतीय इतने भ्रष्ट क्यों होते हैं उनके जीवनपद्धति और परम्पराएं देखिये।

भारत मे धर्म लेन-देन के व्यवसाय जैसा है। भारतीय भगवान को भी इस उम्मीद में पैसे देते हैं कि वो बदले में दूसरों की तुलना में इन्हें वरीयता देकर फल देंगे। यह तर्क इस बात को दिमाग में बिठाता है कि अयोग्य लोगों को इच्छानुसार कोई चीज पाने के लिये कुछ देना पड़ता है। मंदिर के चहारदीवारी के बाहर इसी लेनदेन को भ्रष्टाचार कहते हैं। धनवान भारतीय कैश के बजाय स्वर्ण और अन्य आभूषण आदि देता है। वो अपने यह तोहफे किसी गरीब को नही देता, भगवान को देता है। वह सोचता है कि किसी जरूरतमंद को देने से धन बर्बाद होता है।

जून 2009 में द हिंदू ने कर्नाटक के एक मंत्री जनार्दन रेड्डी द्वारा स्वर्ण और हीरों के 45 करोड़ मूल्य के आभूषण तिरुपति को चढ़ाने की खबर छापी थी। भारत के मंदिर इतना ज्यादा धन प्राप्त कर लेते हैं कि वो ये भी नहीं जानते कि उसका करें क्या। अरबों की सम्पत्ति मंदिरों में व्यर्थ पड़ी है।

जब यूरोपियन भारत आए तो उन्होने यहाँ स्कूल बनवाए। जब भारतीय यूरोप और अमेरिका जाते हैं तो वो वहाँ मंदिर बनाते हैं।

भारतीयों को लगता है कि अगर भगवान कुछ देने के लिये धन रूपए पैसे चाहते हैं तो फिर ऐसा काम करने में कुछ गलत नहीं हैं। इसीलिए भारतीय इतनी आसानी से भ्रष्ट बन जाते हैं।

भारतीय संस्कृति इसीलिए इस तरह के व्यवहार को आसानी से आत्मसात कर लेती है, क्योंकि - 
1. नैतिक तौर पर इसमें चरित्र पर कोई दाग नहीं आता। एक अति भ्रष्ट नेता जयललिता दुबारा सत्ता में आ जाती है, जो आप पश्चिमी देशों में सोच भी नहीं सकते।

2. भारतीयों की भ्रष्टाचार के प्रति संशयात्मक स्थिति इतिहास में साफ देखने को मिलती है। भारतीय इतिहास बताता है कि कई शहर और राजधानियों के रक्षकों को गेट खोलने के लिये और कमांडरो को सरेंडर करने के लिये घूस देकर जीता गया। ये सिर्फ भारत में हुआ है। 

भारतीयो के भ्रष्ट चरित्र का ही परिणाम है कि भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत सीमित युद्ध हुए। ये चकित कर देने वाली बात है कि भारतीयों ने प्राचीन यूनान और माडर्न यूरोप की तुलना में कितने कम युद्ध लड़े। नादिरशाह का तुर्कों से युद्ध तो बेहद उग्र और अंतिम सांस तक लड़ा गया था। भारत में तो युद्ध की जरूरत ही नहीं थी, घूस देना ही सेना को रास्ते से हटाने के लिए काफी था।  कोई भी आक्रमणकारी जो पैसे खर्च करना चाहे भारतीय राजा को, चाहे उसके सेना में लाखों सैनिक क्यों न हों, हटा सकता था।

प्लासी के युद्ध में भी भारतीय सैनिकों ने मुश्किल से मुकाबला किया। क्लाइव ने मीर जाफर को पैसे दिये और पूरी बंगाल सेना 3000 लोगों में सिमट गई। भारतीय किलों को जीतने में हमेशा पैसों के लेनदेन का प्रयोग हुआ। गोलकुंडा का किला 1687 में पीछे का गुप्त द्वार खुलवाकर जीता गया। मुगलों ने मराठों और राजपूतों को मूलतः रिश्वत से जीता। श्रीनगर के राजा ने दारा के पुत्र सुलेमान को औरंगजेब को पैसे के बदले सौंप दिया। ऐसे कई केस हैं जहाँ भारतीयो ने सिर्फ रिश्वत के लिये बड़े पैमाने पर गद्दारी की।
सवाल यह है कि भारतीयो में सौदेबाजी का ऐसा कल्चर क्यों है जबकि तमाम सभ्य देशों में ये सौदेबाजी का कल्चर नहीं है।

3. भारतीय इस सिद्धांत में विश्वास नहीं करते कि यदि वे सब नैतिक रूप से व्यवहार करेंगे तो सभी तरक्की करेंगे क्योंकि उनकी "आस्था/धर्म" यह शिक्षा नहीं देती है। उनका कास्ट सिस्टम (जातिवाद) उन्हें बांटता है। वो यह हरगिज नहीं मानते कि हर इंसान समान है। इसकी वजह से वो आपस मे बंटे और दूसरे धर्मों में भी गये। कई हिंदुओ ने अपना अलग धर्म चलाया जैसे सिख, जैन, बुद्ध, और कई लोग ईसाई और इस्लाम में गये। परिणाम यही है कि भारतीय एक दूसरे पर विश्वास नहीं करते। भारत में कोई भारतीय नहीं है, वे हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई आदि आदि हैं। भारतीय भूल चुके हैं कि 1400 साल पहले वे एक ही धर्म के थे। इस बंटवारे ने एक बीमार संस्कृति को जन्म दिया है। ये असमानता एक भ्रष्ट समाज के रूप में परिणित हुई, जिसमें हर भारतीय दूसरे भारतीय के विरुद्ध है, सिवाय भगवान के जो उनकी आस्थानुसार खुद रिश्वतखोरी करता है।

Tuesday, 17 May 2022

भारतीय समाज में महिलाओं द्वारा की जाने वाली सूक्ष्म हिंसा की घटनाएँ -

                        कल एक करीबी मित्र ने कहा कि जहाँ स्त्री पुरुष द्वारा किए गये हिंसा और शोषण की बात आती है, तो आप सिर्फ एक ही पक्ष पर जोर देते हैं कि पुरूष ऐसा है, पुरूष वैसा है। पुरुषों पर आपका ध्यान जाता है, पुरूषों द्वारा की गई गलतियाँ उनके द्वारा किए गए अपराध आपको दिखते हैं, वो ठीक है, एक-एक बात से सहमति है, लेकिन स्त्रियाँ भी गलत होती हैं, वह भी हिंसा करती हैं, इस पर आप कभी बात नहीं करते हैं। 

करीबी मित्र की बात पर संज्ञान लेते हुए चलिए आज बात कर ली जाए -

1. एक दोस्त की गर्लफ्रेंड रही, घर से संपन्न रही, इतनी तो संपन्नता थी ही कि अपनी बेसिक जरूरतों के लिए किसी से उसे उधार न लेना पड़े। उसकी एक आदत यह रही कि जब भी वह शापिंग माॅल जाती, जहाँ कैमरा न होता, वहाँ से कुछ छोटी-मोटी चीजें कपड़ों के भीतर छुपाकर ले आती यानी चुरा लाती और उनका कलेक्शन रखती। यह सब बड़े शौक से अपने प्रेमी को भी बताती। 

2. एक परिचित लड़की रही, उसे अपनी एक दोस्त से कुछ खुन्नस रही होगी, दोनों एक दुकान पर कहीं मिले होंगे, उसकी दोस्त ने कुछ सामान खरीदा होगा और दुकान की मालकिन जो कुछ देर के लिए अंदर गई थी उसे यह कह दिया कि पैसे यहीं रजिस्टर में दबा के रख दी हूं, इतना कहकर वह चली जाती है, दूसरी लड़की जिससे उसकी नहीं बनती थी, वह उसी समय वह पैसे चुरा लेती है और मालकिन  के आने के पहले दोनों चले जाते हैं, दुकान में चूंकि उनके अलावा और भी लोग मौजूद रहते हैं, तो चोर लंबे समय बाद पकड़ में आता है, तब तक वह लड़की अपने मकसद में कामयाब हो चुकी होती है कि मैंने उस लड़की के पैसे चुराकर उसको मानसिक रूप से तंग किया।

3. एक दोस्त की दीदी रही, हद महत्वाकांक्षी, क्लास में टाॅप करना उसके लिए मानो जीवन मरण का प्रश्न रहा, उसकी एक खास सहेली थी जो कि पढ़ाई के मामले में उसकी चिर प्रतिद्वंदी रही, बोर्ड परीक्षा आने के पहले उस अति महत्वाकांक्षी लड़की ने एक दिन क्लास में खुद को भूत पकड़ने का ढोंग किया, और रोते गिड़गिड़ाते बेहोश होकर लेट गई। उसकी सहेली खूब चिंतित रही, कई दिन उसके घर जाती, उसका हालचाल लेती, उधर वह लड़की जमकर पढ़ती रही, इधर उसकी सहेली चिंताविमुख होकर पढ़ाई में उतना ध्यान नहीं दे पाई। महत्वाकांक्षी लड़की ने परीक्षा में टाॅप किया, और एक दिन रोते हुए अपनी सहेली को बताया कि बहन मुझे जलन हुई तेरे से, इसलिए मैंने जानबूझकर ऐसा किया, मुझे कुछ नहीं हुआ था।

4. एक लड़की रही, उसके खूब सारे लड़के दोस्त रहे, वह अलग-अलग लड़कों से दोस्ती रखती, लड़कों से रोने धोने वाले दुखियारे अंदाज में प्यार भरी बातें करती, पता नहीं उसमें क्या जादू था, लड़के उसके पीछे ऐसे पागल होते कि बिना मिले ही शादी तक के लिए परेशान हो जाते, और लड़की बीच रास्ते छोड़कर भागती जाती। कई लड़के उसकी वजह से हाॅस्पिटलाइज हुए, कुछ एक पेशेवर शराबी बन गये, कुछ लोगों को उस मानसिक आघात से निकलने में लंबा समय लग गया। उसकी मीठी बातों से लोग इतना खौफ खाते कि पलटकर उसे जवाब भी देते या गुस्सा भी करते तो उन्हें फिर माफी माँगने का म‌न हो जाता। बाद में पता चला कि उस लड़की को अलग-अलग तरह के लड़कों के दिमाग से खेलने में मजा आता था। उसकी वजह से इतने सारे लोग व्याकुल होते हैं, इस बात से उसके इगो को संतुष्टि मिलती थी।

5. एक औसत दिखने वाली काॅलेज की लड़की रही, वह अपने से अधिक सुंदर दिखने वाली छरहरी काया वाली लड़कियों से खूब चिढ़ती। ऐसी लड़कियों की वह खूब तारीफ करती, उनकी मदद भी करती, उनके लिए खुद को समर्पित करती, बड़ी दीदी या माता-पिता की तरह भूमिका अदा करती लेकिन भीतर से उनके प्रति खूब ईर्ष्या रखती, कई बार तो उनका चेहरा अच्छा न दिखे, खराब हो जाए, उस उद्देश्य से ऐसे क्रीम पाउडर लोशन में कुछ मिलावट भी कर जाती। हमेशा उनके दिमाग से खेलती, उनको कमजोर करती, उनको अपने हिसाब से संचालित करती, किससे दोस्ती करनी है, किससे प्रेम‌ करना है, माता-पिता से क्या कैसे बात करना है, सब कुछ कंट्रोल करने लगती। वह कहती कि चूंकि वह औसत दिखती और उसे कोई न पूछता तो उसे बाकी लड़कियों जिनको हर कोई तवज्जो देते, उन्हें प्रेम में और बाकी दुनियावी चीजों में हारा हुआ देखकर, निराश हताश देखकर उसको बहुत बेहतर महसूस होता था, यह बात उसने खुद स्वीकारा।


                    असल में हम जिस समाज में रहते हैं, वहाँ अधिकांशः लड़कियाँ ऐसे ही सूक्ष्म तरीके से जमकर बड़ी-बड़ी हिंसा की घटनाओं को अंजाम दे जाती हैं, अभी उनके माता बनने के बाद की जाने वाली हिंसा की बात ही नहीं की जा रही है, सिर्फ एक लड़की रहते हुए वह कितनी हिंसा करती है, अभी उसी की बात की जा रही है, और यह तो सिर्फ छुटपुट हिंसा और द्वेष वाले उदाहरण ही मैंने प्रस्तुत किए हैं जो आपमें हममें से बहुत लोगों ने अपने आसपास देखा होगा लेकिन संज्ञान में नहीं लिया होगा। असल में यही सब आगे जाकर ज्वालामुखी बनकर फटता है।

                      जिनका जिक्र किया गया है, ऐसी लड़कियाँ फिर आगे परिवार भी सँभालती हैं, बच्चे पैदा करती हैं, बच्चों को तालीम के नाम‌ पर वही मिलता है, जो माता के पास देने को होता है। बच्चे बचपन से सबसे ज्यादा अपनी माँ के साथ ही रहते हैं, तो वे खूब हिंसा का शिकार होते हैं, और आगे जाकर यही बच्चे अलग-अलग रूपों में हिंसा दिखाते हैं। इसी तरह इस हिंसात्मक मानसिकता का हस्तांतरण पीढ़ी दर पीढ़ी होता रहता है। 
                       ऊपर जितने उदाहरण लिखे हैं, कहीं कम कहीं ज्यादा, समाज ऐसे ही लोगों से अटा पड़ा है, ऐसे उदाहरणों की रेल बनाई जा सकती है, 101 कहानियाँ जैसी पुस्तक तैयार की जा सकती है, लेकिन स्त्री विमर्श कमजोर न हो जाए, इसलिए इन सब से परहेज ही करता हूं, बाकी अपनी-अपनी सोच है।

Saturday, 14 May 2022

हमारा देश सच नहीं स्वीकारता -

A - हमारे यहाँ परिवार बचा हुआ है, संस्कृति बची हुई है,
B - दुनिया के और देशों में भी बची हुई है,
A - विदेशों में तो शादी तलाक रिश्ते आदि मजाक की तरह होता है,
B - आप कितने देशों में रहकर आए हैं या सिर्फ गूगल में पढ़ के यह सब कह रहे, 
A - नहीं मैंने सुना है, उन देशों में आज उनकी अपनी संस्कृति बची नहीं है,
B - उनकी छोड़िए, अपने देश का अपने परिवार समाज का बताइए,
A - क्या बताना है, यहाँ का आपको नहीं मालूम?
B - आप अनजान बन रहे, इसलिए कह रहा,
A - हमारे यहाँ वैसा कुछ नहीं होता,
B - तो फिर इतने तलाक, झगड़े फसाद क्यों होते हैं,
A - वो कुछ एक अपवाद मामले होते हैं,
B - अच्छा वो सव छोड़िए, छोटे बच्चों के साथ चाइल्ड एब्यूज, बैड टच  के मामले में हम कितने आगे हैं आपको पता भी है,
A - आप कुछ मामलों के आधार पर कह रहे होगे,
B - मैं तो ठोक के कहता हूं, भारत की लगभग हर लड़की बचपन में चाइल्ड एब्यूज या बैड टच झेल चुकी होती है, अपवादों में अपवाद बच पाते हैं,
A - मैं आपकी इस बात को नहीं मानता,
B - ठीक है, आप शादीशुदा हैं न, अपनी पत्नी का बताइए,
A - उसके साथ कभी कुछ नहीं हुआ होगा, नहीं तो वह जरूर बताती।
B - क्या पता आपके इगो को चोट न पहुंचे इसलिए छुपा ली हो।
A - ऐसी बात नहीं है, वह मुझसे कुछ नहीं छुपाती,
B - फिर भी आप एक बार भरोसे में लेकर अच्छे से पूछकर देखिएगा।

कुछ दिन बाद...
A - आपने सही कहा था,
B - अब आपको यकीन हुआ?
A - मुझे नहीं पता मैं इस सच को स्वीकार पाऊंगा या नहीं
B - क्यों नहीं स्वीकार पाएंगे?
A - मैं जो महसूस कर रहा हूं, मैंने बता दिया।
B - आप सही कह रहे, पूरा भारत यही करता है, सच नहीं स्वीकारता है।

Wednesday, 11 May 2022

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता -

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि अपने लिए उगाऊँ ताजी सब्जियां,
सभी तरह के मसाले और खूब सारे फल,
और बाहरी खान-पान से दूरी बना लूं।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि मैं रहूं धरती के जिस हिस्से में,
वहाँ का जलस्तर मुझे ऊपर तक महसूस होता हो,
पानी से यह नजदीकी इतनी हो कि उसके होने का भाव,
आसपास की मिट्टी और पेड़-पौधों में साफ दिखता हो।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि क्रांक्रीट और टाइल्स मार्बल से अप्रभावित,
मिट्टी और पेड़-पौधों से हमेशा घिरा रहूं।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि खुद को हर तरह के तनाव से मुक्त करूं,
हर तरह की हिंसा से निजात पा लूं,
किसी भी प्रकार की कुण्ठा का प्रवेश अपने भीतर न होने दूं।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि पहले मैं खुद अपने भीतर कुछ बदल लूं, 
कुछ चीजें जोड़ लूं, कुछ चीजें घटा लूं,
कुछ इस तरह खुद को नया करता चलूं।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि संगीत मेरे भीतर बहता रहे, 
हवा के झोंके की तरह,
घने आसमानी बादलों की तरह,
किसी नदी के पानी की तरह।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि दुरूपयोग और सदुपयोग,
फिजूलखर्च और मितव्ययिता,
हमेशा इन तत्वों को मन देख पाता हो।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मेरी चाह है कि हर एक बहाव देख सकूं,
चाहे वह मन का हो या शरीर का, 
चाहे वह तनाव का हो या लहू का,
इस मन रूपी शरीर की हर एक गतिविधि,
मेरी नजर में रहे।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि, 
मेरे जीवंत अनुभव मुझे शिथिल ना करें,
और शाब्दिक ज्ञान मुझे अहंकारी न होने दें।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि स्त्रियों के प्रति सहज हो जाऊं,
उनके मन और शरीर का सम्मान करना सीख जाऊं,
कुण्ठा, लिप्सा, कामुकता और हिंसा से इतर,
उन्हें बेहतर बनते देखने की लालसा मुझमें हो।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं तो चाहता हूं कि मेरे मन शरीर का ताप,
बना रहे साम्यावस्था में,
और किसी को हानि न पहुंचाए।

मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि मेरी दैनिक जरूरतों की माँग,
जीने लायक मेरी आवश्यकताएँ,
दुनियावी समझ की तमाम ऊंचाईयाँ,
न किसी के लिए बोझ बने,
न मैं किसी पर बोझ बनूं,
मेरी आत्मनिर्भरता सिर्फ प्रकृति से हो,
सब कुछ प्रकृति से शुरू करूं,
और प्रकृति पर खत्म करूं।

Sunday, 8 May 2022

साहित्य अकादमी पुरूस्कार विजेता के खिलाफ यौन शोषण का मामला -

साहित्य अकादमी विजेता के खिलाफ शोषण का आरोप लगाने वाली महिला को सामने आकर अपनी बात कहने के लिए 10 साल लग गये। मुख्यधारा का समाज स्त्री-पुरूष दोनों इस बात पर चटकारे ले रहे हैं कि पढ़ी लिखी लड़की इतनी बेवकूफ कैसे हो सकती है कि रिश्ते में रहते हुए भी समझ नहीं पाई, इतना समय लगा दिया। मुझे यह बात सुनकर लोगों पर तरस आ रहा है, क्योंकि अधिकांश लोगों को आजीवन यह पता ही नहीं चल पाता है कि उनके अपने जीवन में क्या चल रहा है, क्यों चल रहा है, कैसे चल रहा है, लेकिन दूसरों की समस्याओं का मखौल जरूर बनाना‌ है।

एक स्त्री पुरूष के बीच क्या खिचड़ी पकती है, कितना प्रेम है, कैसा रिश्ता है यह सब दुनिया का कोई तीसरा व्यक्ति, कोई न्यायालय नहीं समझ सकता है, वह उन दोनों को ही पता होता है कि वे किस भाव से रिश्ते को निभा रहे थे। इसीलिए मुझे खुद नहीं पता कि सही गलत क्या है, आप सोशल मीडिया में लड़की की पीड़ा को उसके पोस्ट से पढ़कर बस महसूस कर सकते हैं, साहित्यकार भाई के साथ आपकी बढ़िया मित्रता रही हो तो उसके लिए भी संवेदना महसूस कर सकते हैं। फिर अंतत: अपना एक पक्ष चुनकर उसके समर्थन या विरोध में अंदाजा लगा सकते हैं, आवाज बुलंद कर सकते हैं, जितना आपके पास समय हो, जितनी आपकी समझ हो।

ऐसे मामलों में सही गलत क्या कितना है, कभी समझ नहीं आता है, क्योंकि रिश्तों में दोनों तरफ से बराबर इनपुट आता है, लेकिन जिस तरह से लड़की ने अपनी बात कही है, अभी के लिए मान लेते हैं कि बातें बनाकर कहा हो, मान लेते हैं कि लड़की का चरित्र खराब है और साहित्यकार साहब से इतनी नफरत है कि उसके चरित्र को नुकसान पहुंचाने के लिए एक लड़की होकर अपने चरित्र की परवाह न करती हो आदि आदि। लेकिन मुझे तो लड़की की तकलीफ साफ दिख रही है, भाव महसूस करने की बात है। भले साहित्यकार साहब शब्दों के जादूगर आदमी हों लेकिन लड़की ने जितने साफ तरीके से अपनी बात कही है वह उनकी पूरी साहित्यिक यात्रा पर भारी जान पड़ती है। फिलहाल बवाल इस बात का बना है कि साहित्यकार साहब ने विपश्यना का बहाना बनाकर शादी रचा ली और अब लड़की ने पुलिस केस किया है और फेसबुक में पोस्ट करके घसीटना शुरू किया तो लड़के ने फेसबुक अकाउंट ही डिएक्टिवेट कर दिया है, खैर इस पर अभी फिलहाल कुछ कहना सही नहीं है। क्योंकि ऐसा कुछ भी होता है लोग दो धड़ों में बंट जाते हैं और जमकर हिंसा दिखाने में लग जाते हैं। कोई उस लड़की को चारित्रिक आधार पर कोसने में लगा है, वहीं दूसरी ओर साहित्यकार साहब को फलाना ढिमकाना क्रांतिकारी कहकर लानतें भेजी जा रही है, समझ नहीं आता लोग बिना हिंसा दिखाए, बिना व्यक्तिगत दोषारोपण किए, बिना लांछन लगाए अपनी बात क्यों नहीं रख पाते हैं। कभी किसी अधिकारी किसी नेता का तलाक ले लेना दूसरी शादी कर लेना या कोई अन्य ऐसा मामला हो, इन सब में लोगों को इतना मसाला क्यों मिलता है, क्योंकि लोग खुद भी तो यही सब अपने जीवन में जी रहे होते हैं।

इस वाले मामले में शायद मेरा अंदाजा गलत निकले लेकिन मुझे लगता है कि लड़के ने विश्वास तोड़ा है, मानसिक रूप से तोड़ के रख दिया है, जिंदगी और मौत के बीच लाकर पटक दिया है, वरना कोई भी लड़की इतना बड़ा जोखिम नहीं उठाती है। चलिए मान लिया कि आप रिश्ते में थे, लंबे समय तक रहे फिर आपको समझ आया कि जीवन भर इसके साथ नहीं रहा जा सकता तो आप सामने वाले के साथ बैठकर स्पष्ट करिए, बार बार इस बात को साफ करिए कि शादी संभव नहीं है, लेकिन क्या लोग रिश्तों में इतनी स्पष्टता लेकर चलते हैं। रिश्ता निभाएंगे 5 साल और उम्मीद रखेंगे कि बस 5 दिन में सब खत्म हो जाना चाहिए। अमूमन होता क्या है इंसान जब तक कहीं और शादी कर नहीं लेता तब तक पुराने रिश्तों को स्टैण्ड बाई मोड में खींचता रहता है, फिर एक दिन ऐसे ही बवाल होता है। आप एक रिश्ते को बनाए रखने के लिए इतना समय इतनी ऊर्जा लगाते हैं, उस रिश्ते को अगर आगे नहीं बढ़ाना है इस पर आप चाहते हैं कि बिना बात किए, बिना चर्चा किए अपने आप किसी चमत्कार की तरह चीजें स्पष्ट हो जाए और झटके में सब खत्म हो जाए, वाह, इतनी मासूमियत। आप तो अपने लिए खुद ही वोल्केनो बना रहे हैं। यह सब बातें सिर्फ एक इसी मुद्दे को लेकर नहीं कही जा रही है, आप पर हम पर सभी पर यह लागू है कि आप और हम रिश्तों में कितनी अधिक स्पष्टता लेकर चलते हैं।

Saturday, 7 May 2022

Yoga Realizations -

1. When you are seriously into awarenss, when you start your journey towards awareness with a do or die attitude, when you start understanding things around you. Then you will slowly realize that even the first morning droplets of water in your face has a different effect, also when water reaches your eyes, you will be filled with a whole new level of energy, because you start seeing that set of emotion/feeling/thought/expression which is generated when water start touching different parts of your body.

Wednesday, 4 May 2022

बहनबाज -

यह शीर्षक पाठकों को असहज कर सकता है लेकिन हम‌ जिस समाज में रहते हैं, वहाँ तरह-तरह के लोग होते हैं। जैसे बहुत अधिक शराब पीने वालों को दारूबाज, लगातार धोखा देने वालों को धोखेबाज, बहुत अधिक कुटिलता से ग्रसित लोगों को चालबाज, बहुत अधिक बोलने वाला बतोलेबाज, मुक्कों का प्रहार करने वाला मुक्केबाज, बेट चलाने वाला बल्लेबाज और जैसे बहुत अधिक महिलाओं के साथ प्रेम संबंधों में लिप्त रहने वालों को लड़कीबाज कहा जाता है, ठीक उसी तरह कुछ लड़के ऐसे भी होते हैं जिन्हें सभी लड़कियों को बहन बनाने का शौक चर्राया होता है, इन्हें मैं बहनबाज कहता हूं। 

बहनबाज एक विशिष्ट प्रजाति है, स्कूल से लेकर काॅलेज तक हर जगह हर क्लास में एक न एक इस प्रजाति का व्यक्ति होता ही है। ये अमूमन बहुत ही अधिक‌ डरपोक किस्म के लोग होते हैं, इनमें आत्मविश्वास की घोर कमी होती है। चूंकि इनका अपना खुद का कोई व्यक्तित्व नहीं होता है, खुद पर थोड़ा भी भरोसा नहीं होता है, लगातार अस्तित्व के संकट से जूझ रहे होते हैं इसलिए इनके अपने जीवन में कभी कोई खास रचनात्मक चीजें घटित नहीं होती है। आसपास के लोग भी इसलिए इनसे एक निश्चित दूरी बनाकर चलते हैं या इन्हें तवज्जो नहीं देते हैं, लड़कियाँ ऐसे नीरस उबाऊ लड़कों को अपना मित्र तक नहीं चुनती हैं, ये खुद भी अपने व्यक्तित्व के साथ इतने असहज होते हैं कि लड़कियों से मित्रता तक नहीं कर पाते हैं, घबराते हैं। ऐसे लड़के इस हद तक डरपोक होते हैं कि लड़कों से भी बराबर घबराते हैं। अंतत: दूसरों के जीवन में दखल देना उनकी बातें इधर से उधर करना इनका‌ प्रिय शगल होता है। इस काम में इन्होंने मास्टरी कर ली होती है। चूंकि ये रिश्तों को लेकर अजीब किस्म की बीमारी से ग्रसित होते हैं इसलिए अपने भीतर की हिंसा, भीतर की कुण्ठा को जीने के लिए वह बहुत ही घटिया रास्ता चुनते हैं, वे सभी लड़कियों को अपनी बहन बनाते हैं और खुद सबके लिए एक प्यारे भाई, भैया की भूमिका निभाते हैं। कई बार तो ऐसा भी देखने में आता है कि लड़की की शादी तक हो जाती है लेकिन अपनी बहनबाजी नहीं छोड़ते हैं, आजीवन लगे रहते हैं। 

ये बहनबाज भैया सरीखे लोग शुरूआत में अपनी नींव मजबूत करते हैं, भरोसा कायम करते हैं, सगे भाई से अधिक केयर करते हैं, खुद को इसके लिए पूरी तरह झोंक देते हैं, चूंकि ये अच्छी दोस्ती कायम नहीं कर पाते हैं, इसके अलावा भी अगर देखें तो इतनी क्षमता नहीं होती है कि किसी के साथ ईमानदारी से प्रेम संबंधों को भी जी पाएं। तो इनके पास अपनी‌ उन सारी भीतरी लालसाओं को जीने का एकमात्र रास्ता या यूं कहें कि संपर्क बनाने का जो एकलौता रास्ता बच जाता है, वह बहन वाला‌ होता है, इसलिए वे सभी को बहन बना लेते हैं। किसी भी लड़की को अमूमन ऐसे लड़कों से शिकायत नहीं रहती है जो खुद आगे से आकर भाई या भैया की भूमिका निभाना चाह रहा हो, लड़कियाँ प्रथम दृष्टया इस बात को सकारात्मक रूप में ही लेती हैं, और ऐसे लड़कों को अपना भाई/भैया बना ही लेती हैं, राखी भी बाँधती हैं।

कुछ इनमें उम्र से बड़े दूर के भैया या रिश्तेदारी वाले भैया होते हैं, ये तो उम्र में छोटी बहनों को अपनी यौन कुण्ठा का शिकार बनाना अपना नैतिक अधिकार समझते हैं, हक से बदतमीजी करते हैं, अपने भैया होने के तत्व को जमकर भुनाते हैं और शुरू से अपनी कुण्ठा को स्थापित करने के लिए एक विशेष किस्म का नैतिक दबाव बनाकर चलते हैं। इसमें कोई होते हैं जो थोड़ा कम फ्लर्ट करते हैं, वहीं कुछ एक लोग ऐसे होते हैं जो सारी सीमाएँ लांघ जाते हैं, आधार वही होता है बहन वाला, क्योंकि इससे बड़ा सेफ्टी वाल्व और कोई दूसरा है ही नहीं। अधिकतर लड़कियों के लिए कई बार बड़ा मुश्किल हो जाता है कि वह इस अजीब सी समस्या के बारे में आखिर किसी को बताए तो बताए कैसे। इस बात का भी खतरा रहता है कि उसी के चरित्र पर सवाल उठाया जाएगा। इसीलिए अधिकतर लड़कियाँ आजीवन ऐसे दंश झेलती रहती हैं।

सब कुछ ऐसे ही चलता रहता है, कई बार आजीवन चीजें पकड़ में ही नहीं आती है, ये अपनी नियत का प्रदर्शन करते रहते हैं लेकिन बहनें नजर अंदाज कर जाती हैं क्योंकि भाई मानती हैं। लेकिन भाई की भूमिका निभा रहे ये लोग शुरूआत‌ में तो भाई बनकर पहले भरोसा कायम करते हैं लेकिन जब भरोसे का लेयर चढ़ जाता है फिर उसके बाद निजी जीवन की सारी जानकारियाँ जुटाते हैं, पसंद नापसंद सारी चीजें उन्हें पता होती है, तस्वीरों और तमाम मीडिया फाइल्स का कलेक्शन लेकर चलते हैं, ये सामान्य बातें हैं, जो सगा भाई भी करता ही है, इसमें कोई समस्या की बात नहीं है। लेकिन जब ऐसे भाई रिश्तों और प्रेम संबंधों को लेकर दखल देना शुरू करते हैं, किससे दोस्ती करनी है, किससे नहीं करनी है इसका फैसला करने लगते हैं, माता-पिता से अधिक सही गलत बताने लगते हैं, यहाँ से फर्क दिखना शुरू हो जाता है। 

वे अपनी मुंह बोली बहन के प्रेम संबंधों के ठेकेदार की भूमिका निभाते हैं, रिश्ते बनाने का काम करते हैं, रिश्ते तोड़ने का भी काम करते हैं, इस बीच अपनी छवि को इंच मात्र भी आँच नहीं आने देते हैं, एक अच्छे भाई की भूमिका में बने रहते हैं जो बहुत ही अधिक हर चीज का ख्याल रखता है। इतना खयाल रखता है कि लड़कों से मध्यस्थता कराकर सेटिंग भी करवा देता है, और जब उसका इगो जवाब देता है तो रिश्ते तुड़वा भी देता है। 

ऐसे भाई इस हद तक खतरनाक होते हैं कि वे अपनी बहनों के सामने सारी सीमाएं लांघते हुए तमाम तरह की बदतमीजी कर जाते हैं। वह सारी बातें कह जाते हैं जो शायद एक प्रेम में आकंठ डूबा प्रेमी अपनी प्रेमिका तक को न कह पाता हो। ऐसे भैया लोगों के लिए लव यू, किस यू, मिस यू कह जाना ये सब बहुत छोटे और मामूली शब्द होते हैं, इन शब्दों के आधार पर मैं कोई धारणा नहीं बना रहा हूं लेकिन बात नियत की है। आधार वही होता है कि अरे भैया हूं, कभी कभी मस्ती करता हूं, मेरा तो यही स्वभाव है, बुरा मत मानना। थोड़ा सा रो गा के दुःखी भी हो जाते हैं और इस बात को मजबूती से सामने रख देते हैं कि तुम मेरी प्यारी बहन हो और मैं तो तुम्हारा भैया/भाई हूं।

यहाँ तक कि लड़की को किससे दोस्ती करनी है, किससे प्रेम करना है, सभी चीजों का फैसला करने लगते हैं, निजी जीवन में जमकर हस्तक्षेप करते हैं। कब किस उम्र में किससे शादी करनी चाहिए, इसका निर्धारण भी करने लगते हैं, कई बार लड़की के माता-पिता तक को भी ज्ञान देने में पीछे नहीं हटते हैं। एक और चीज यह कि ऐसे भैया अपनी हर मुंह बोली बहन को यह एक ज्ञान जरूर देते हैं कि उनका रिश्ता इस दुनिया में बहुत अलग तरह का है, ठीक ये वैसा ही ज्ञान है जैसा नया नया प्रेम में आया हर आशिक अपनी प्रेमिका को कहता फिरता है कि वे तो इस दुनिया के ही नहीं हैं।

अधिकतर लड़कियाँ यह सब सह लेती हैं, उनको भीतर का चोर दिख रहा होता है,‌ नियत साफ पता चल रही होती है, लेकिन ऐसे लोग निजी जीवन से लेकर घर परिवार हर जगह इतने गहरे तक घुस चुके होते हैं कि लड़कियाँ भी एक सीमा के बाद नजर अंदाज करने में ही भलाई समझती हैं।

ये उन लड़कियों को और अधिक परेशान कर जाते हैं जिनकी अपनी कोई खास समझ विकसित नहीं हुई होती है, ऐसी लड़कियों को ये जमकर अपने मन मुताबिक संचालित करते हैं, उनका खूब मानसिक शोषण करते हैं, इन्हें इस काम में बड़ा मजा आता है। इन्हें अच्छा लगता है कि लोग इन्हें अपना मान रहे हैं, इतनी अधिक तवज्जो दे रहे हैं, क्योंकि दोस्त या प्रेमी बनने पर वे तुरंत लतिया कर बाहर कर दिए जाएंगे।

खून के रिश्तों के अलावा भी भाई बहन के बहुत अपवाद सरीखे रिश्ते भी होते हैं, उन पर मैं कोई सवालिया निशान नहीं उठा रहा हूं, मैं खुद ऐसे रिश्तों को जीता हूं, खुद को खुशकिस्मत भी मानता हूं कि तीन सगी बहनों के अलावा भी कुछ ऐसी दीदी बहनें जीवन में मिलीं जिनसे वास्तव में अपनापन महसूस होता है। भाई बहन के रिश्ते के लेकर मेरी सोच बहुत अलग तरह की है और मेरा यह मजबूती से मानना है कि बात सिर्फ और सिर्फ नियत की है। जहाँ नियत साफ नहीं है वहाँ व्यक्ति बहन मानकर भी कुंठा को जी सकता है, और अगर नियत साफ है तो अलग से जबरन बहुत अधिक रिश्तों को बोझ की तरह लेकर चलने की आवश्यकता नहीं रहती है। इसलिए जो लड़कियाँ जबरन भाई/ भैया वाले रिश्तों को थोपने लगती हैं, उनसे मैं निश्चित दूरी बनाकर चलता हूं, साफ कह भी देता हूं कि मेरी नियत साफ है, आप अपना देख लीजिए कि बिना खांचे के साफ नियत से आप इंसानी रिश्तों को जीने की ताकत रखते हैं या नहीं।

मैं आए दिन अपने आसपास ऐसे मामले सुनता रहता हूं कि फलां दूर के भैया ने, चचेरे मौसेरे भाई ने मुझे कुछ आपत्तिजनक बातें कह दी। निजी जीवन की सारी जानकारियाँ जुटाते रहते हैं और दखल देते रहते हैं, जबरदस्ती बात करने के लिए दबाव बनाते हैं, अचानक रात को मना करने के बावजूद वीडियो काॅल करते हैं, आदि आदि। पहले यह सब सुन के बहुत आश्चर्य होता था, लेकिन अब इतने मामले देखना हो चुका है कि सामान्य लगता है। समाधान के तौर पर इसमें यही कहना है कि आप एकसूत्री कार्यक्रम चलाकर ऐसे दीमक सरीखे लोगों को अपने जीवन से दफा कर जीवन को थोड़ा हल्का कीजिए, ये लोग आपसे संपर्क न भी रखें तब भी बैकग्राउंड में रहकर दीमक की तरह आपको मानसिक रूप से कुतरने की क्षमता रखते हैं, इन सब चीजों से खुद को मुक्त करिए, जीवन इन सबसे आगे की चीज है, कितना ही अतिरिक्त तनाव लेकर चलेंगे, भगाइए ऐसे लोगों को अपने जीवन से, कुछ लोगों के लिए खराब बन जाइए। 

Tuesday, 3 May 2022

The biggest blessing

The biggest blessing, or in other words the biggest protection one can give to their partner is to trust them like anything and set them free. let him/her learn and explore life on their own. If they have that thing inside them, they will never disappoint you, they prosper, they bloom and they will stand by you throughout the course of life. No hurdle can break them, because you already gave the biggest protection. Trust your instincts mercilessly.

Monday, 2 May 2022

इंसान नहीं हो सकता - एक कविता

जिस वजह से हमारी नींद खराब होती हो,
हमें जरूरत से अधिक सोना पड़ता हो,
हमारी भूख प्यास बर्बाद हो जाती हो,
यानि हम खुद कहीं खो जाते हों।

हमें जीना तक मुश्किल लगता हो,
हमारी सारी ख्वाहिशें, जीने की इच्छाएँ,
सब कुछ खत्म हो जाती हों,
मानो किसी ने उनका गला‌ दबा दिया हो,
यानि जो मन पर लगी चोट का कारण हो।

जो हमसे जीने की वजह ही छीन लेता हो,
हमारी खुशियाँ चौपट कर जाता हो,
यानि जो हमारी उम्र तक कम कर देता हो,
हमारे चेहरे से लेकर हमारे जीवन में,
निराशा और उदासियों की लकीर खींच देता हो,
प्रेम की लकीरें कुछ ऐसे मिटा कर जाता हो कि
हमारे भीतर प्रेम को पैदा होने से रोक देता हो,
यानि भीतर से हमारा खून सुखा देता हो,
हमारी पवित्र कोमल भावनाओं को जला देता हो,
हमें हमसे ही छीन लेता हो,
इंसानी संवेदनाएँ ही खत्म कर देता हो,
यानि जिसका एक ख्याल भर ही,
हमें किश्तों में खत्म कर रहा होता हो,
वह सब कुछ हो सकता है,
लेकिन एक इंसान नहीं हो सकता है।

माँ - एक कविता

वह खड़ी रहती है एक दीवार की तरह,
जो हमेशा हमें संभालती रहती है।
बचपन में हमारे शरीर को चोट से बचाती है,
और जवानी में मन को घायल होने से रोकती है,
वह माँ होती है।

उसे पता होता है हम घायल हैं,
हमारे मन के घाव उसे अपने घाव लगते हैं,
वह कोशिश करती है कि,
उन घावों पर दुबारा चोट न लगे।
दुआ सलामती करते हुए कुछ यूं,
वह मरहम पट्टी करती रहती है।

यह काम वह रोज करती है,
क्योंकि उसे पता होता है कि,
मन के घाव ठीक होने में समय लेते हैं।
वह जानती है कि,
शरीर की चोट से तो खून बहता है,
लेकिन मन पर लगी चोट से,
खून बहना तक रूक सकता है।
इसलिए वह एक साथी दोस्त की तरह,
दूर रहकर भी पास ही होती है।

ये अहसास‌, ऐसा विश्वास,
जब तक कहीं और महसूस न हो,
तब तक लोगों से बचना ही चाहिए।