Monday, 2 May 2022

इंसान नहीं हो सकता - एक कविता

जिस वजह से हमारी नींद खराब होती हो,
हमें जरूरत से अधिक सोना पड़ता हो,
हमारी भूख प्यास बर्बाद हो जाती हो,
यानि हम खुद कहीं खो जाते हों।

हमें जीना तक मुश्किल लगता हो,
हमारी सारी ख्वाहिशें, जीने की इच्छाएँ,
सब कुछ खत्म हो जाती हों,
मानो किसी ने उनका गला‌ दबा दिया हो,
यानि जो मन पर लगी चोट का कारण हो।

जो हमसे जीने की वजह ही छीन लेता हो,
हमारी खुशियाँ चौपट कर जाता हो,
यानि जो हमारी उम्र तक कम कर देता हो,
हमारे चेहरे से लेकर हमारे जीवन में,
निराशा और उदासियों की लकीर खींच देता हो,
प्रेम की लकीरें कुछ ऐसे मिटा कर जाता हो कि
हमारे भीतर प्रेम को पैदा होने से रोक देता हो,
यानि भीतर से हमारा खून सुखा देता हो,
हमारी पवित्र कोमल भावनाओं को जला देता हो,
हमें हमसे ही छीन लेता हो,
इंसानी संवेदनाएँ ही खत्म कर देता हो,
यानि जिसका एक ख्याल भर ही,
हमें किश्तों में खत्म कर रहा होता हो,
वह सब कुछ हो सकता है,
लेकिन एक इंसान नहीं हो सकता है।

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