मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि अपने लिए उगाऊँ ताजी सब्जियां,
सभी तरह के मसाले और खूब सारे फल,
और बाहरी खान-पान से दूरी बना लूं।
मैं चाहता हूं कि अपने लिए उगाऊँ ताजी सब्जियां,
सभी तरह के मसाले और खूब सारे फल,
और बाहरी खान-पान से दूरी बना लूं।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि मैं रहूं धरती के जिस हिस्से में,
वहाँ का जलस्तर मुझे ऊपर तक महसूस होता हो,
पानी से यह नजदीकी इतनी हो कि उसके होने का भाव,
आसपास की मिट्टी और पेड़-पौधों में साफ दिखता हो।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि क्रांक्रीट और टाइल्स मार्बल से अप्रभावित,
मिट्टी और पेड़-पौधों से हमेशा घिरा रहूं।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि खुद को हर तरह के तनाव से मुक्त करूं,
हर तरह की हिंसा से निजात पा लूं,
किसी भी प्रकार की कुण्ठा का प्रवेश अपने भीतर न होने दूं।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि पहले मैं खुद अपने भीतर कुछ बदल लूं,
कुछ चीजें जोड़ लूं, कुछ चीजें घटा लूं,
कुछ इस तरह खुद को नया करता चलूं।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि संगीत मेरे भीतर बहता रहे,
हवा के झोंके की तरह,
घने आसमानी बादलों की तरह,
किसी नदी के पानी की तरह।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि दुरूपयोग और सदुपयोग,
फिजूलखर्च और मितव्ययिता,
हमेशा इन तत्वों को मन देख पाता हो।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मेरी चाह है कि हर एक बहाव देख सकूं,
चाहे वह मन का हो या शरीर का,
चाहे वह तनाव का हो या लहू का,
इस मन रूपी शरीर की हर एक गतिविधि,
मेरी नजर में रहे।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि,
मेरे जीवंत अनुभव मुझे शिथिल ना करें,
और शाब्दिक ज्ञान मुझे अहंकारी न होने दें।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि स्त्रियों के प्रति सहज हो जाऊं,
उनके मन और शरीर का सम्मान करना सीख जाऊं,
कुण्ठा, लिप्सा, कामुकता और हिंसा से इतर,
उन्हें बेहतर बनते देखने की लालसा मुझमें हो।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं तो चाहता हूं कि मेरे मन शरीर का ताप,
बना रहे साम्यावस्था में,
और किसी को हानि न पहुंचाए।
मैं दुनिया नहीं बदलना चाहता,
मैं चाहता हूं कि मेरी दैनिक जरूरतों की माँग,
जीने लायक मेरी आवश्यकताएँ,
दुनियावी समझ की तमाम ऊंचाईयाँ,
न किसी के लिए बोझ बने,
न मैं किसी पर बोझ बनूं,
मेरी आत्मनिर्भरता सिर्फ प्रकृति से हो,
सब कुछ प्रकृति से शुरू करूं,
और प्रकृति पर खत्म करूं।
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